सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ लोकपाल के आदेश पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ लोकपाल द्वारा दिए गए आदेश पर रोक लगा दी है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। साथ ही लोकपाल रजिस्ट्रार और शिकायत दर्ज कराने वाले शिकायतकर्ता को भी नोटिस भेजा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय ओक शामिल थे, ने इस मामले की सुनवाई के दौरान नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि यह बेहद परेशान करने वाली स्थिति है कि लोकपाल ने उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत को सुना। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के संदर्भ में इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और न्यायाधीश के नाम को सार्वजनिक करने पर भी रोक लगा दी। इसके साथ ही शिकायतकर्ता को निर्देश दिया कि वे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के नाम को गोपनीय रखें।
क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं?
इस पूरे प्रकरण का मुख्य प्रश्न यही है कि क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं या नहीं? इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में पक्ष रखा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के दायरे में नहीं लाया जा सकता। यह एक संवैधानिक मसला है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है।
अब इस मामले पर अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या लोकपाल को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं।
लोकपाल का विवादास्पद आदेश
27 जनवरी को लोकपाल, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एएम खानविलकर कर रहे थे, ने अपने आदेश में कहा कि लोकपाल अधिनियम के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। यह आदेश एक शिकायत की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक निजी कंपनी से जुड़े मामले में उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश और एक अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को प्रभावित करने की कोशिश की थी।
लोकपाल ने इस संदर्भ में भारत के मुख्य न्यायाधीश से स्थिति स्पष्ट करने की मांग भी की थी। इस आदेश ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों की सीमाओं को लेकर एक संवैधानिक बहस छेड़ दी है।
मामले का संवैधानिक महत्व
यह मामला भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकपाल के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं से जुड़ा हुआ है। यदि सुप्रीम कोर्ट लोकपाल के इस आदेश को असंवैधानिक घोषित करता है, तो यह न्यायपालिका की स्वायत्तता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। वहीं, यदि सुप्रीम कोर्ट इस पर विस्तृत बहस के बाद कोई अलग निर्णय लेता है, तो इससे भारतीय न्यायिक प्रणाली में एक नई परिभाषा जुड़ सकती है।
अब इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सबकी नजरें 18 मार्च को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट अपना अंतिम निर्णय सुना सकता है।
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