चुनाव से पहले मुफ्त सुविधाओं की घोषणा पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

देश में चुनावों से पहले मुफ्त सुविधाओं और योजनाओं की घोषणा की परंपरा पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने इस प्रथा को समाज के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि इससे लोगों में काम करने की इच्छा समाप्त हो रही है। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं का लालच देकर वोट बटोरने की रणनीति लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो रही है।
मुफ्त राशन और पैसे की जगह मुख्यधारा में शामिल करने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट में शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय स्थल मुहैया कराने की मांग को लेकर सुनवाई हो रही थी। इस दौरान अदालत ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसे देने के बजाय, अगर इन लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल कर देश के विकास में योगदान देने का अवसर दिया जाए, तो यह अधिक उपयुक्त होगा। अदालत ने यह भी कहा कि मुफ्त सुविधाओं के कारण समाज में परिश्रम करने की प्रवृत्ति कम हो रही है, जो दीर्घकालिक रूप से देश के विकास को प्रभावित कर सकती है।
सरकार की नीतियों पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से इस संबंध में जानकारी मांगी कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी मिशन को कब तक अंतिम रूप देगी। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि सरकार इस योजना को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसमें शहरी बेघरों के लिए आश्रय के प्रावधान सहित विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जाएगा। इस पर अदालत ने केंद्र सरकार से स्पष्ट समय सीमा निर्धारित करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद निर्धारित की।
पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त सुविधाओं के मुद्दे पर टिप्पणी की है। इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी शीर्ष अदालत ने राज्यों की मुफ्त योजनाओं को लेकर सवाल उठाए थे। अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों के पास मुफ्त योजनाओं के लिए धन है, लेकिन जजों की सैलरी और पेंशन के लिए पर्याप्त धन नहीं है।
इसके अलावा, पिछले वर्ष अक्टूबर में भी सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान मुफ्त की घोषणाओं के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। इस याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को यह निर्देश दिया जाए कि राजनीतिक दल चुनावों से पहले मुफ्त की योजनाओं के वादे न करें।
लोकतंत्र के लिए चुनौती
सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणियां यह दर्शाती हैं कि मुफ्त सुविधाओं की घोषणा लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। राजनीतिक दल वोट बैंक मजबूत करने के लिए इस प्रकार की घोषणाएं करते हैं, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव समाज पर नकारात्मक पड़ता है। जरूरत इस बात की है कि सरकारें रोजगार के अवसर बढ़ाने और नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करें, ताकि लोगों को मुफ्त सुविधाओं पर निर्भर न रहना पड़े।
मुफ्त योजनाओं का मुद्दा अब केवल राजनीति तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह देश की आर्थिक स्थिति और विकास को भी प्रभावित कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख इस ओर संकेत करता है कि सरकारों को इस प्रथा को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अब समय आ गया है कि नागरिकों को मुफ्त योजनाओं का लाभ देने के बजाय उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्य किया जाए।
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