सेवानिवृत्त सैनिकों की विकलांगता पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

भारतीय सशस्त्र बलों के सम्मान और उनके हक की रक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई है। मामला एक सेवानिवृत्त सैनिक की विकलांगता पेंशन से जुड़ा था, जिसे केंद्र सरकार ने चुनौती दी थी। न्यायालय ने इसे ‘ओछी याचिका’ करार देते हुए सरकार से सख्त सवाल किए और नीति निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार
गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने सरकार के रवैये पर गंभीर आपत्ति जताई। अदालत ने केंद्र सरकार को स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऐसी याचिकाएं दाखिल कर सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पीठ ने सवाल किया कि क्या सरकार इस विषय पर कोई ठोस नीति बनाने के लिए तैयार है।
सरकार को नीति बनाने के निर्देश
पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि यदि सरकार निरर्थक अपीलें दायर करती रही, तो सुप्रीम कोर्ट भारी जुर्माना लगाना शुरू कर देगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) से राहत पाने वाले सैनिकों को हर बार शीर्ष अदालत में घसीटने की कोई आवश्यकता नहीं है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक सेवानिवृत्त रेडियो फिटर से जुड़ा था, जिसे AFT द्वारा विकलांगता पेंशन प्रदान करने का आदेश दिया गया था। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अदालत ने सरकार के इस कदम को अनुचित बताते हुए व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत बताई।
सैनिकों के सम्मान की रक्षा जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कड़े शब्दों में कहा कि सैनिक 15-20 साल तक सेवा देने के बाद यदि किसी विकलांगता से ग्रस्त होते हैं और AFT उन्हें पेंशन देने का आदेश देती है, तो ऐसे मामलों को बार-बार अदालत में घसीटना अनुचित है। पीठ ने कहा कि सरकार को एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए, जिसमें ऐसे मामलों की समीक्षा हो सके और सैनिकों को अनावश्यक कानूनी प्रक्रियाओं से बचाया जा सके।
सुरजागढ़ खदान आगजनी मामला टला
सुप्रीम कोर्ट ने सुरजागढ़ खदान आगजनी मामले में सुनवाई अगले हफ्ते के लिए टाल दी है। यह सुनवाई वकील सुरेंद्र गाडलिंग की याचिका पर होगी। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश होने वाले एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल राजा ठाकरे की अनुपस्थिति के चलते मामले की सुनवाई अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल सैनिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए भी बाध्य करता है। यदि सरकार इस पर उचित नीति बनाती है, तो यह सशस्त्र बलों के कल्याण और देश की सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करेगा।
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