लोकसभा कार्यवाही का भाषाई विस्तार: संस्कृत रूपांतरण पर विवाद

भारतीय लोकतंत्र की विविधता और समावेशिता को ध्यान में रखते हुए लोकसभा की कार्यवाही का रूपांतरण पहले से ही हिंदी, अंग्रेज़ी समेत 10 क्षेत्रीय भाषाओं में किया जाता था। लेकिन अब इस सूची में छह और भाषाओं को जोड़ा गया है, जिससे अब कुल 16 भाषाओं में लोकसभा कार्यवाही का अनुवाद होगा। इस नई पहल का उद्देश्य संसद में भाषाई समावेशिता को बढ़ावा देना और अधिक से अधिक लोगों तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करना है।
नई भाषाओं को शामिल करने की घोषणा
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हाल ही में घोषणा की कि अब बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू भाषाओं में भी लोकसभा कार्यवाही का रूपांतरण किया जाएगा। इस निर्णय के साथ, भारतीय संसद दुनिया की एकमात्र विधायी संस्था बन गई है, जहाँ एकसाथ इतनी भाषाओं में कार्यवाही का अनुवाद किया जा रहा है।
संस्कृत भाषा पर उठे सवाल
इस घोषणा के बाद डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संस्कृत भाषा को कार्यवाही के रूपांतरण में शामिल करने पर आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में केवल 73,000 लोग संस्कृत बोलते हैं, तो फिर करदाताओं के पैसे को इस पर क्यों खर्च किया जा रहा है? उनके अनुसार, यह एक गैर-जरूरी निवेश हो सकता है, जिसे अन्य आवश्यक क्षेत्रों में खर्च किया जाना चाहिए।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की कड़ी प्रतिक्रिया
दयानिधि मारन की इस आपत्ति पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “आप किस देश में रह रहे हैं? भारत की मूल भाषा संस्कृत रही है। आपको संस्कृत पर आपत्ति क्यों हुई? हम तो सभी 22 भाषाओं में रूपांतरण की बात कर रहे हैं।”
ओम बिरला ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार का उद्देश्य भाषाई विविधता को संरक्षित करना और सभी भाषाओं को समान महत्व देना है। उनका कहना था कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा की आधारशिला रही है। इस संदर्भ में, इसका संसद में उपयोग ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
भाषाई समावेशिता और लोकतंत्र
लोकसभा कार्यवाही का बहुभाषीय रूपांतरण भारतीय लोकतंत्र के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है। भारत एक बहुभाषी देश है, जहाँ विभिन्न राज्यों और समुदायों की अपनी-अपनी भाषाएँ हैं। इस पहल से उन नागरिकों को भी फायदा होगा, जो अपनी मातृभाषा में संसद की कार्यवाही को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।
हालाँकि, संस्कृत को लेकर उठे विवाद से यह स्पष्ट होता है कि भाषाई नीतियों पर राजनीतिक और वैचारिक बहसें हमेशा बनी रहेंगी। लेकिन सरकार की मंशा यह सुनिश्चित करना है कि संसद की कार्यवाही को अधिकतम नागरिकों तक उनकी भाषा में पहुँचाया जाए, ताकि वे अपनी सरकार के निर्णयों और चर्चाओं को समझ सकें।
लोकसभा कार्यवाही में अधिक भाषाओं को शामिल करने का निर्णय एक सकारात्मक कदम है, जो भारतीय लोकतंत्र को और अधिक समावेशी बनाएगा। संस्कृत भाषा पर उठे सवालों के बावजूद, सरकार और संसद की मंशा स्पष्ट है—भारतीय भाषाओं का सम्मान और संरक्षण। यह कदम न केवल भाषाई विविधता को संरक्षित करने में मदद करेगा, बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी सशक्त बनाएगा।
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