भारत के वंचित बच्चों के सपनों को पंख देने वाली पहल: टीच फॉर इंडिया

इस साल की शुरुआत में, जब मैंने दिल्ली के छतरपुर में एक सरकारी स्कूल के 13 वर्षीय बच्चों की कक्षा में स्वयंसेवक के रूप में काम किया, तो मैंने उनसे एक साधारण प्रश्न पूछा: “आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?”
अगले एक घंटे तक, 15 कलमों की आवाज़ से कक्षा गूंजती रही।
बाद में, जब मैं उनके लेख चेक कर रहा था, तो मैंने महसूस किया कि शायद मेरे प्रश्न का अर्थ बच्चों ने अलग तरीके से लिया। मैं उम्मीद कर रहा था कि उनके जवाब में डॉक्टर, इंजीनियर, या अन्य पेशों के बारे में लिखा होगा। लेकिन उन्होंने जो लिखा, वह इससे कहीं अधिक प्रेरणादायक था।
हार्दिक ने लिखा कि वह “एक अच्छा इंसान” बनना चाहता है।
सूर्यांश ने कहा कि वह “गरीबी खत्म” करना चाहता है।
युवराज ने लिखा कि वह “ऐसा सुपरपावर चाहता है जिससे गांव के लड़कों के साथ उनकी बहनें भी स्कूल जा सकें।”
मैंने उनके उत्तरों को पढ़ते हुए महसूस किया कि शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबों तक सीमित नहीं हो सकता।
शिक्षा का अर्थ: कक्षा से बाहर की दुनिया
टीच फॉर इंडिया (TFI) की संस्थापक शहीन मिस्त्री कहती हैं, “शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य एबीसी सीखना नहीं है। शिक्षा को बच्चों के सोचने के तरीके में बदलाव लाना चाहिए ताकि वे समाज के लिए परिवर्तनकारी नेता बन सकें।”
इसी सोच के साथ, शहीन ने 2009 में टीच फॉर इंडिया की शुरुआत की। यह पहल शैक्षिक समानता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी। आज, यह संगठन 50 लाख बच्चों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रहा है।
प्रेरणा का स्रोत: अलमास मुखरी की कहानी
अलमास मुखरी सिर्फ 11 साल की थीं, जब उन्होंने पहली बार टीएफआई कक्षा में कदम रखा। इससे पहले, गणित उनके लिए सबसे कठिन विषय था। “हमारे पुराने स्कूल में गणित को सिर्फ रटा दिया जाता था। शिक्षक यह नहीं पूछते थे कि हमने समझा या नहीं,” अलमास कहती हैं।
लेकिन कक्षा 6 में टीएफआई की कक्षा में, उनका गणित से दोस्ताना रिश्ता शुरू हुआ। आज, अलमास खुद एक टीएफआई फेलो हैं और अपने छात्रों को गणित से प्यार करना सिखाती हैं।
“मेरे टीएफआई शिक्षक ने मेरे लिए अतिरिक्त कक्षाएं लीं, मुझे बार-बार सवाल समझाया, जब तक कि मुझे सही जवाब नहीं मिल गया। उनके इस प्रयास ने मुझे प्रेरित किया कि मैं भी अपने छात्रों के लिए वही करूं।”
शहीन मिस्त्री का सफर
शहीन मिस्त्री ने 1989 में अकांक्षा फाउंडेशन की स्थापना की, जो वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का काम करता है। इस अनुभव ने उन्हें शिक्षा की ताकत को समझने में मदद की। “बच्चे न केवल अच्छे जॉब पाने लगे, बल्कि उनके मूल्य और सोच में भी बदलाव आया,” शहीन कहती हैं।
उनके अनुसार, अकांक्षा के कई बच्चे अपने परिवारों की मदद करने लगे, अपने समुदायों में बदलाव लाने लगे, और सामाजिक मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने लगे।
टीच फॉर इंडिया की नींव
शहीन को टीच फॉर अमेरिका के चार वॉलंटियर्स ने इस दिशा में प्रेरित किया। उनकी बातचीत के बाद शहीन ने टीच फॉर इंडिया के मॉडल की नींव रखी।
आज टीएफआई के कई पहलू हैं
1. फेलोशिप प्रोग्राम: जहां उत्साही युवा वंचित सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए चुने जाते हैं।
2. फिरकी: शिक्षकों और स्कूल लीडर्स के लिए ऑनलाइन लर्निंग प्रोग्राम।
3. इनोवेटएड: शिक्षा में बदलाव लाने के इच्छुक उद्यमियों को ट्रेनिंग और समर्थन प्रदान करता है।
4. टीएफआइएक्स: शिक्षा उद्यमियों के लिए एक इनक्यूबेटर, जो अपनी जगह के अनुसार टीएफआई का मॉडल अपनाना चाहते हैं।
बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना
शहीन का मानना है, “शिक्षा का असली उद्देश्य बच्चों को अपने और दूसरों के लिए परिवर्तनकारी नेता बनाना है। यह केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के लिए बेहतर भविष्य बनाने की प्रक्रिया है।”
शहीन की यह सोच क्रिसमस पार्टी के दौरान एक बच्ची के अनुभव में झलकती है। जब उस बच्ची ने अपना वैनिला आइसक्रीम खाने से इनकार कर दिया और कहा, “मैं इसे अपने छोटे भाई के साथ साझा करना चाहती हूं।”
चुनौतीपूर्ण लेकिन प्रेरक काम
टीच फॉर इंडिया का काम आसान नहीं है। शहीन बताती हैं, “हमारे कई फेलो युवावस्था में ही बड़ी-बड़ी चुनौतियों से जूझते बच्चों को पढ़ाते हैं। ये फेलो हर संभव कोशिश करते हैं कि बच्चों को सही मार्गदर्शन मिल सके।”*
यह कहानी न केवल टीच फॉर इंडिया के क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे शिक्षा समाज में गहरी जड़ें जमा सकती है।
“सपनों को हकीकत में बदलने का सबसे बड़ा जरिया शिक्षा ही है।”
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