सुप्रीम कोर्ट ने दी न्यायाधीशों को जीवनशैली व आचरण पर सलाह

सुप्रीम कोर्ट:- गुरुवार को कहा कि न्यायाधीशों को एक संत जैसी जीवनशैली अपनानी चाहिए और पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। साथ ही, उन्हें इंटरनेट मीडिया के उपयोग से बचने की सलाह दी गई। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों को अपने निर्णयों पर सार्वजनिक राय व्यक्त करने से परहेज करना चाहिए।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान की। पीठ ने कहा कि न्यायपालिका में दिखावे या प्रदर्शनकारी प्रवृत्तियों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
फेसबुक पोस्ट पर उठे सवाल
बर्खास्त महिला न्यायाधीशों में से एक के पक्ष में वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने पीठ के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि किसी भी न्यायिक अधिकारी या जज को अपने न्यायिक कार्य से जुड़ी कोई भी पोस्ट फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर साझा नहीं करनी चाहिए। यह टिप्पणी तब आई जब वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, जो न्यायमित्र के रूप में कार्य कर रहे थे, ने पीठ को बताया कि बर्खास्त महिला न्यायाधीश ने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा की थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर, 2023 को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा छह महिला सिविल न्यायाधीशों की बर्खास्तगी का स्वतः संज्ञान लिया था। हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने अपने पूर्व के प्रस्तावों पर पुनर्विचार करते हुए चार महिला अधिकारियों को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया था। हालांकि, दो न्यायिक अधिकारियों अदिति कुमार शर्मा और सरिता चौधरी को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया। सुप्रीम कोर्ट फिलहाल इन्हीं दोनों मामलों की सुनवाई कर रहा है।
धार्मिक स्थलों पर मुकदमेबाजी पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की अदालतों को निर्देश दिया है कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून के मामले में निर्णय होने तक धार्मिक स्थलों पर दावे से जुड़े नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे। साथ ही, लंबित मामलों में किसी भी प्रकार का प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश नहीं दिया जाएगा। अदालतों को सर्वेक्षण के आदेश जारी करने से भी मना किया गया है।
यह निर्देश चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने कहा कि पूजा स्थल कानून की वैधानिकता और इसे लागू करने से संबंधित मुद्दे सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। चूंकि यह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामला है, इसलिए न्यायिक अनुशासन के तहत अदालतों को कोई भी प्रभावी आदेश पारित करने से बचना चाहिए।
पूजा स्थल कानून की संवैधानिकता पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट मुख्य रूप से पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धारा 3 और 4 की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा। यह अधिनियम 15 अगस्त, 1947 की स्थिति को स्थिर रखने के उद्देश्य से पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा लागू किया गया था। इस पर विभिन्न याचिकाओं में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 17 फरवरी को करेगा।
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