भारत का आयरन एंड स्टील उद्योग विश्व के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और यह देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योग न केवल बुनियादी ढांचे के विकास बल्कि रोजगार के सृजन में भी योगदान देता है। फिर भी, इस क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।
वर्तमान स्थिति भारत में आयरन एंड स्टील उद्योग तेजी से विकसित हो रहा है। वर्तमान में, भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा स्टील उत्पादक है, जिसकी वार्षिक उत्पादन क्षमता 155 मिलियन टन (2023) है। 2030 तक इसे 300 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना है। इसके बावजूद, इस क्षेत्र में श्रमिकों की मांग और उपलब्धता के बीच बड़ा अंतर है। भारतीय श्रम मंत्रालय के अनुसार, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कुशल श्रमिकों की कमी 2022 में लगभग 40% थी।
विशेष रूप से आयरन एंड स्टील उद्योग में, 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुशल श्रमिकों की मांग का केवल 60% ही पूरा हो पाता है। यह स्थिति उद्योग की क्षमता और उत्पादकता पर गंभीर प्रभाव डाल रही है।
कुशल श्रमिकों की कमी के कारण तकनीकी शिक्षा की कमी: भारत में तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं का प्रतिशत केवल 25% है, जबकि विकसित देशों में यह 50% से अधिक है। प्रशिक्षण और विकास में कमी: आयरन एंड स्टील उद्योग में करीब 70% श्रमिक अभी भी परंपरागत पद्धतियों पर निर्भर हैं। यह स्थिति नई तकनीकों के अनुकूल होने में बाधा उत्पन्न करती है। युवाओं का रुझान: 2021 के आंकड़ों के अनुसार, 70% से अधिक भारतीय युवा सफेदपोश नौकरियों या सेवा क्षेत्र की ओर आकर्षित हैं, जबकि मैन्युफैक्चरिंग और आयरन एंड स्टील उद्योग में केवल 10% की रुचि है। असंगठित क्षेत्र: भारत के 90% श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जहां उन्हें किसी प्रकार का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिलता।
प्रभाव उत्पादकता में गिरावट: कुशल श्रमिकों की कमी के कारण उत्पादन दक्षता प्रभावित हो रही है। उदाहरण के लिए, चीन में प्रति श्रमिक औसत स्टील उत्पादन 800 टन प्रति वर्ष है, जबकि भारत में यह केवल 250 टन है। लागत में वृद्धि: कुशल श्रमिकों के अभाव में, उद्योग को आउटसोर्सिंग और बार-बार प्रशिक्षण पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत में लगभग 15% की वृद्धि होती है। प्रतिस्पर्धा में कमी: वैश्विक स्तर पर भारत का आयरन एंड स्टील उद्योग प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है। भारत का निर्यात केवल 18 मिलियन टन (2022-23) रहा, जो वैश्विक निर्यात का मात्र 1.5% है। रोजगार का प्रभाव: 2023 में, आयरन एंड स्टील क्षेत्र में 1.8 लाख कुशल श्रमिकों की आवश्यकता थी, लेकिन केवल 1.2 लाख उपलब्ध हो सके।
समाधान तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा: सरकार और उद्योगों को मिलकर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए। “स्किल इंडिया मिशन” के तहत, 2024 तक 40 लाख युवाओं को मैन्युफैक्चरिंग में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार: उद्योगों को श्रमिकों के लिए ऑन-जॉब ट्रेनिंग और स्किल अपग्रेडेशन प्रोग्राम चलाने चाहिए। उदाहरण के लिए, टाटा स्टील ने 2023 में अपने कर्मचारियों के लिए 50,000 घंटे का प्रशिक्षण प्रदान किया। प्रेरणा और जागरूकता: युवाओं में आयरन एंड स्टील उद्योग के महत्व और इसमें करियर की संभावनाओं को लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए। सरकारी नीतियां: सरकार को कौशल विकास योजनाओं जैसे “स्किल इंडिया” और “मेक इन इंडिया” के तहत इस क्षेत्र को प्राथमिकता देनी चाहिए। स्वास्थ्य और सुरक्षा: उद्योगों को श्रमिकों की स्वास्थ्य और सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
आयरन एंड स्टील उद्योग भारत के विकास का मेरुदंड है, लेकिन कुशल श्रमिकों की कमी इस क्षेत्र की प्रगति में बाधा बन रही है। यदि सरकार, उद्योग, और शिक्षा संस्थान मिलकर इस चुनौती का सामना करें, तो न केवल श्रमिकों की कमी को दूर किया जा सकता है, बल्कि यह उद्योग वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान और मजबूत बना सकता है। कुशल श्रमिकों के विकास में निवेश भारत को एक आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से समृद्ध देश बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
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