AMU का अल्पसंख्यक दर्जा: सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट:- शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले की ओर अग्रसर है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है। इस फैसले का न सिर्फ एएमयू, बल्कि जामिया मिलिया इस्लामिया जैसी अन्य संस्थानों पर भी गहरा असर पड़ेगा।
यह विवाद 1981 में एएमयू एक्ट में संशोधन के बाद शुरू हुआ, जब विश्वविद्यालय को एक प्रकार से अल्पसंख्यक दर्जा देने का रास्ता खोला गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस संशोधन को “आधा अधूरा” मानते हुए एएमयू को 1951 की स्थिति में बहाल नहीं किया था। इससे पहले केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि एएमयू का गठन 1920 में हुआ था और यह न तो अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किया गया था, न ही उनका इस पर नियंत्रण है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में यह भी कहा कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित करने से संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन हो सकता है, जो किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, या भाषा के आधार पर भेदभाव को असंवैधानिक मानता है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले पर अपना अंतिम निर्णय सुनाएगी। इस फैसले से न सिर्फ एएमयू की स्थिति स्पष्ट होगी, बल्कि यह देशभर के शैक्षिक संस्थानों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है। यह फैसला संविधान के मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ का ऐतिहासिक योगदान
यह फैसला जस्टिस चंद्रचूड़ के लिए एक खास मायने रखता है, क्योंकि वह 10 नवंबर को अपने कार्यकाल के समापन पर हैं। उनके नेतृत्व में ही अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में ऐतिहासिक निर्णय आया था। इस प्रकार, उनका यह अंतिम कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के लिए एक यादगार क्षण बन सकता है।
नतीजा क्या हो सकता है?
अगर एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिलती है, तो यह भारतीय शैक्षिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को नया दिशा दे सकता है। यह न सिर्फ शैक्षिक संस्थानों के प्रशासन और अधिकारों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा, बल्कि इससे संविधान की व्याख्या में भी बदलाव आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय संविधान और समाज के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकता है।
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