भारत में न्यायपालिका ने ब्रिटिश युग को पीछे छोड़ते हुए एक नया और प्रगतिशील कदम उठाया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में स्थापित की गई न्याय की देवी की नई मूर्ति में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।
इस नई मूर्ति में न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और उनके हाथ में पारंपरिक तलवार के स्थान पर संविधान दिया गया है। इससे साफ संदेश मिलता है कि अब “कानून अंधा” नहीं है, बल्कि न्याय की देवी को स्पष्ट दृष्टि दी गई है, जिससे वह निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ न्याय कर सके।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर किए गए इस बदलाव का उद्देश्य है भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक प्रासंगिक और संवैधानिक बनाना। मूर्ति में एक हाथ में तराजू है, जो यह दर्शाता है कि न्याय की देवी मामले के सबूतों और तथ्यों का तौल करती है, जबकि संविधान का होना दर्शाता है कि अब न्याय केवल तेज और अंतिम नहीं, बल्कि संवैधानिक और नैतिक भी होगा।
यह बदलाव न केवल एक प्रतीक है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। न्याय की देवी की मूर्ति, जिसे ग्रीक देवी थेमिस और मिस्र की देवी मात के रूप में भी जाना जाता है, न्याय, कानून और शांति व्यवस्था का प्रतीक है।
इस परिवर्तन के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है कि न्याय का निर्णय अब केवल प्रक्रिया पर नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों पर भी आधारित होगा। यह भारत में न्याय प्रणाली के विकास और संवेदनशीलता की एक नई शुरुआत का संकेत है।
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