सिमरन की मेहनत: बदलते सपनों का रंग, मेडल में चमकता मान

गाजियाबाद:- सिमरन शर्मा की कहानी सिर्फ एक एथलीट की नहीं, बल्कि साहस, संघर्ष और आत्मविश्वास की है। कम उम्र में आंखों की रोशनी में कमी के बावजूद, सिमरन ने पेरिस पैरालिंपिक में कांस्य पदक जीतकर न केवल अपने सपने को साकार किया, बल्कि देश का मान भी बढ़ाया। उनका दृढ़ निश्चय बताता है कि असंभव को संभव बनाया जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान, सिमरन ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “अबकी बार मेडल का कलर बदलना है।” उनके इस संकल्प ने न केवल उन्हें, बल्कि पूरे देश को प्रेरित किया। पीएम मोदी ने भी उन्हें हौसला बनाए रखने की सलाह दी, यह दर्शाते हुए कि स्वर्ण पदक की उपलब्धि केवल समय की बात है।
सिमरन का सफर आसान नहीं था। पिता की मृत्यु के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई, लेकिन उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी भी कमजोरी नहीं माना। उनके पति, गजेंद्र शर्मा, जो सेना में तैनात हैं, ने उन्हें हर कदम पर समर्थन दिया। उन्होंने सिमरन को न केवल मानसिक रूप से प्रेरित किया, बल्कि एक प्रोफेशनल एथलीट के रूप में भी प्रशिक्षित किया।
सिमरन ने खेलों में लगातार उत्कृष्टता के साथ भाग लिया, कक्षा छह में ब्लॉक स्तर पर दौड़ प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया और इसके बाद विभिन्न प्रतियोगिताओं में नियमित रूप से टॉप पर रहीं। 2018 से पैरालंपिक में भाग लेते हुए, उन्होंने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीते और हाल ही में खेलो इंडिया 2023 में तीन स्वर्ण पदक अपने नाम किए।
सिमरन की यात्रा आसान नहीं रही। कोविड-19 के दौरान उन्होंने कई स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना किया, लेकिन हर बार उनके पति ने उन्हें सहारा दिया। आर्थिक संकट के बावजूद, गजेंद्र ने सिमरन की ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी।
अब सिमरन स्वर्ण पदक की ओर कदम बढ़ा रही हैं, उनका संकल्प और मेहनत हर दिव्यांग व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। वे साबित करती हैं कि जीवन की हर कठिनाई का सामना करते हुए आगे बढ़ना ही असली जीत है। सिमरन शर्मा की कहानी एक मिसाल है कि कठिनाइयाँ केवल मन की सीमाएँ हैं, और सच्ची जीत उसी में है जब हम अपने सपनों के लिए संघर्ष करते रहें।
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