गाजियाबाद:- गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) के पूर्व भू-अध्यापित अधिकारी भगवत सागर ओझा को हाल ही में आय से अधिक संपत्ति के आरोप में तीन साल की सजा सुनाई गई है। यह मामला न केवल ओझा की व्यक्तिगत गलती को उजागर करता है, बल्कि सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की गंभीरता को भी दर्शाता है।
मामला कैसे शुरू हुआ/ छापेमारी और जांच
भगवत सागर ओझा, जो मूल रूप से प्रतापगढ़ के निवासी हैं, ने 2014 में गेल में किसानों से भूमि अधिग्रहण की जिम्मेदारी संभाली थी। सीबीआई को उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की शिकायत मिली, जिसके बाद उनके नोएडा स्थित आवास पर छापा मारा गया। यह कार्रवाई एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई, जिसने इस भ्रष्टाचार के जाल को उजागर किया। सीबीआई की टीम ने ओझा के घर पर छापा मारा और उनकी संपत्तियों की जांच शुरू की। जांच के दौरान, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने ओझा के प्रयागराज स्थित पंजाब नेशनल बैंक में एक लॉकर के बारे में जानकारी हासिल की। जब लॉकर खोला गया, तो उसमें 17.83 किलो सोना पाया गया, जो उनकी ज्ञात आय से काफी अधिक था। यह खुलासा भ्रष्टाचार के खिलाफ की जा रही लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
फर्जी मूल्यांकन का खुलासा
ओझा के सोने के आभूषणों का मूल्यांकन बद्री प्रसाद वर्मा द्वारा किया गया था, जिसने इस मामले में फर्जीवाड़ा किया। ईडी ने दोनों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि ओझा की ज्ञात आय 3,90,92,736 रुपये होनी चाहिए, जबकि उनके पास इससे कहीं अधिक संपत्तियां थीं। इस प्रकार, न्यायालय में मामला दाखिल होने के बाद सुनवाई का सिलसिला शुरू हुआ।
न्यायालय का निर्णय
सोमवार को विशेष सीबीआई न्यायाधीश परमेंद्र कुमार की अदालत ने इस मामले की अंतिम सुनवाई की। अदालत ने प्रस्तुत सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर भगवत सागर ओझा और बद्री प्रसाद वर्मा को तीन-तीन साल की सजा सुनाई। यह निर्णय भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है, जो सरकारी अधिकारियों के लिए एक चेतावनी है।
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