पुत्रदा एकादशी पर ये गलतियां पड़ सकती हैं भारी, ध्यान जरूर रखें

सावन माह में आने वाले व्रत-त्योहारों को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी तरह सावन में आने वाली एकादशी का भी विशेष माना जाता है। पंचांग के अनुसार, हर साल सावन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सावन पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। वहीं पौष मास में भी पुत्रदा एकादशी का व्रत किया जाता है। इसलिए, चलिए जानते हैं कि एकादशी पर कौन-कौन से कार्यों को नहीं करना चाहिए।

नई दिल्ली:- में, एकादशी तिथि को पूर्ण रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित माना जाता है। यह तिथि भगवान विष्णु के समर्पण में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। विष्णु जी की कृपा प्राप्ति के लिए इस दिन कई साधक एकादशी का व्रत भी करते हैं। इसलिए, विष्णु जी की पूजा के दौरान उनकी आरती और मंत्रों का पाठ अवश्य करना चाहिए।
सावन माह में पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 15 अगस्त को सुबह 10 बजकर 26 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। इसी तिथि का समापन 15 अगस्त सुबह 09 बजकर 39 मिनट तक होगा। इसलिए, सावन माह में पुत्रदा एकादशी का व्रत 16 अगस्त 2024 को शुक्रवार को किया जाएगा।
इन चीजों से करें परहेज
एकादशी व्रत के दिन भूल से भी चावल या चावल से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही व्रत करने वाले साधक को भोजन में साधारण नमक और लाल मिर्च का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जो लोग इस तिथि पर व्रत नहीं कर रहे हैं, उन्हें भी मांस, शराब, लहसुन और प्याज आदि से दूरी बनानी चाहिए।
इन कार्यों से बचें।
हिंदू धर्म में तुलसी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। लेकिन एकादशी तिथि पर तुलसी से जुड़े कुछ नियमों का खास ध्यान रखना चाहिए, तभी साधक को एकादशी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी तिथि पर तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए और न ही इस दिन तुलसी के पत्ते उतारने चाहिए। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तिथि पर मां तुलसी भगवान विष्णु के निमित्त एकादशी का व्रत करती हैं।
भूलकर भी न करें ये काम
एकादशी तिथि पर क्रोध, झूठ बोलना, किसी की बुराई या अपमान करने से बचना चाहिए। वैसे तो किसी भी दिन इन कार्यों से बचना चाहिए। इससे प्रभु श्री हरि क्रोधित हो सकते हैं। साथ ही इस दिन मन में नकारात्मक विचारों को न लाना चाहिए। इसके विपरीत, साधक को भगवान विष्णु का ध्यान और भजन-कीर्तन करना चाहिए।
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