गोरखपुर। तमिलनाडु सरकार में मंत्री और सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि के विवादित बयान बीच यूपी सीएम मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धर्म एक ही है और वह है सनातन धर्म। बाकी सब संप्रदाय और उपासना पद्धति हैं। सनातन धर्म मानवता का धर्म है। यदि सनातन धर्म पर आघात होगा तो विश्व की मानवता पर संकट आ जाएगा।
ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ के पुण्यतिथि समारोह के अंतर्गत गोरखनाथ मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञानयज्ञ के विश्राम अवसर पर सोमवार की शाम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि धर्म एक ही है, वह है सनातन धर्म। बाकी सब संप्रदाय और उपासना पद्धति हैं। सनातन धर्म मानत का धर्म है। यदि सनातन धर्म पर आघात होगा तो विश्व की मानवता पर संकट आ जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि सनातन धर्म की व्यापकता को समझने के लिए हमें श्रीमद्भागवत का सार समझना होगा। उस उस सार को समझने के लिए विचारों को संकीर्ण नहीं रखना होगा। जिनकी सोच संकुचित हाेगी, वह श्रीमद्भागवत के विराट स्वरूप का दर्शन नहीं कर सकते।
सीएम आदित्यनाथ ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1949 में श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला के प्रकटीकरण के जरिये तत्कालीन सरकार की कुत्सित मंशा को नाकाम किया और वह राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन समेत देश में हिंदुत्व से जुड़े लगभग सभी बड़े आंदोलनों का अहम हिस्सा रहे। मुख्यमंत्री ने गोरक्षपीठ के पूर्व प्रमुख महंत दिग्विजयनाथ की 54वीं पुण्यतिथि पर यहां आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि महंत दिग्विजयनाथ ने धार्मिक जागरण के लिए श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का वर्ष 1949 में श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला के प्रकटीकरण के माध्यम से तत्कालीन सरकार की कुत्सित मंशा को असफल करते हुए श्रीगणेश किया था।
उन्होंने कहा, ऐसा कोई आंदोलन नहीं था, जिसका वह (दिग्विजयनाथ) हिस्सा नहीं रहे हों। वर्ष 1920 से वर्ष 1969-70 तक देश के अंदर राष्ट्र जागरण और हिंदुत्व से जुड़ा हुआ कोई मुद्दा हो, कोई धार्मिक आंदोलन हो, कोई सांस्कृतिक जागरण का अभियान हो, शैक्षिक जगत से जुड़ा हुआ कोई बड़ा अभियान हो, देश एवं हिंदू समाज के हित में धर्म के मार्ग का अनुसरण करते हुए आयोजित हो रहा कोई भी आंदोलन या अभियान हो, हर किसी में महंत दिग्विजयनाथ जी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
योगी ने कहा कि आज यह हमारा सौभाग्य है कि गोरखपुर और उसके द्वारा संचालित संस्थाएं अपने आचार्य ब्रह्मदेव महंत दिग्विजयनाथ की प्रेरणा और उनके आशीर्वाद से न केवल बौद्धिक प्रगति की दिशा में निरंतर अग्रसर हो रही हैं, बल्कि जिन मूल्यों और सिद्धांतों के लिए उन्होंने अपना भौतिक देह समर्पित किया था, उन्हीं के लिए कार्य करते हुए वे आगे भी बढ़ रही हैं।