भारत में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। गुरु पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई सोमवार यानी आज मनाई जा रही है। गुरु पूर्णिमा अपने आध्यात्मिक या फिर अकादमिक गुरुओं के सम्मान में, उनके वंदन और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है।
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का आज से करीब 3000 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था। मान्यता है कि उनके जन्म पर ही गुरु पूर्णिमा जैसे पर्व मनाने की परंपरा को शुरू किया गया। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हैं। इनके पिता महर्षि पाराशर और माता सत्यवती थीं। इनका मूल नाम कृष्ण है। जन्म लेने के बाद द्वैपायन द्वीप चले गए। तपस्या से वे काले हो गया। इसलिए उन्हें कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। महर्षि वेदव्यास ने महत्वपूर्ण महाकाव्य महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, 18 पुराण के साथ ही वेदों का भी संकलन किया है। मान्यताओं के अनुसार वेदों का संकलन करने के कारण ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा था।
मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्यक्ति को स्नान-ध्यान करने के बाद गुरु के पास जाकर उनकी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। यदि आप किसी कारण से अपने गुरु के पास नहीं जा सकते हैं तो आप अपने घर में ही पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनके चित्र का पुष्प, चंदन, धूप, दीप आदि से पूजन करें। इस दिन गुरु वेदव्यास के साथ-साथ शुक्रदेव और शंकराचार्य आदि गुरुओं का भी आवाहन करें और ”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें।
अगर कोई गुरु न हो तो क्या करें?
जिन लोगों के गुरु नहीं हैं, उन्हें अपने इष्टदेव का पूजन करना चाहिए। आप चाहें तो शिव जी, विष्णु जी, गणेश जी, सूर्य देव, देवी दुर्गा, हनुमान जी, श्रीकृष्ण को गुरु मानकर इनकी पूजा कर सकते हैं। इनके अलावा अपने माता-पिता, घर के अन्य बड़े लोगों को गुरु मानकर उनकी पूजा की सकती है। जिन लोगों ने किसी को गुरु नहीं माना है तो वे लोग गुरु पूर्णिमा पर किसी योग्य व्यक्ति को अपना गुरु मान सकते हैं और उनसे गुरु दीक्षा ले सकते हैं।
ये हैं गुरु से जुड़ी मान्यताएं
माना जाता है कि जिन लोगों का कोई गुरु नहीं है, उनकी पूजा भगवान स्वीकार नहीं करते हैं। गुरुहीन व्यक्ति द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि पितर देवता स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए किसी योग्य व्यक्ति को गुरु बनाकर उनसे गुरु दीक्षा लेनी चाहिए। ध्यान रखें कभी भी गुरु के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। गुरु के लिए फल, वस्त्र, अन्न या कोई उपहार ले जा सकते हैं। गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जप करना चाहिए और गुरु मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। जिस तरह से मंत्री का पाप राजा को और स्त्री का पाप पति को लगता है, उसी प्रकार शिष्य का पाप गुरु को ही लगता है। ऐसा कोई काम न करें, जिसकी वजह से गुरु को अपमानित होना पड़ सकता है।