दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिदिन निकलने वाले ठोस और तरल कचरे के हिसाब से उसके शोधन के बीच गैप के अभी भी बने होने को एनजीटी ने गंभीरता से लिया। ‘आपात समस्या’ के समय से समाधान में दिल्ली सरकार को विफल मानते हुए उस पर 3132 करोड़ का जुर्माना लगाया।
उपराज्यपाल की अध्यक्षता में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट कमिटी का गठन करते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट के स्तर पर 18 सालों तक और एनजीटी के स्तर पर पिछले नौ सालों से लगातार निगरानी के बाद भी ‘आपात स्थिति’ का समाधान न हो पाए, तो ऐसे में दिल्ली के सर्वोच्च प्रशासनिक स्तर पर इसकी निगरानी कराए जाने की जरूरत है, जिसमें संबंधित सभी विभागों की बराबर की भागीदारी हो।
एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने निर्देश दिया कि यमुना निगरानी समिति की तर्ज पर परिभाषित लक्ष्यों और जवाबदेही की साप्ताहिक समीक्षा के लिए दिल्ली सरकार, एमसीडी, डीडीए समेत संबंधित विभागों वाला मजबूत निगरानी तंत्र बनाया जाए। समिति में दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी भी अन्य सदस्यों के साथ शामिल रहेंगे।
ट्रिब्यूनल ने कहा कि समिति की सफलता लैंडफिल साइट से कचरे के पहाड़ की ऊंचाई में कमी, कचरे से मुक्त कराई गई जमीन पर पर्यावरण की बहाली और मौजूदा कचरे के उत्पादन के हिसाब से उसके शोधन के बीच अंतर को तेजी से कम करने के आधार पर आंकी जाएगी। चीफ सेक्रेटरी से इनोवेटिव अप्रोच के साथ इस दिशा में कदम उठाने की उम्मीद जताते हुए एनजीटी ने कहा कि दिल्ली में सफल कोशिशें, पूरे देश के लिए नजीर बन सकती हैं।
जुर्माने की वसूली जनता से! : ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में अभी भी लंबे गैप को देखते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा कि इसके लिए दिल्ली सरकार पर 3131 करोड़ मुआवजे की देनदारी बनती है। एक महीने के भीतर इस रकम के भुगतान की जिम्मेदारी चीफ सेक्रेटरी को दी गई है। एनजीटी के आदेश के मुताबिक इन पैसों का इस्तेमाल गैप को कम करने के लिए होना चाहिए। साथ में यह भी कहा कि सरकार इस रकम की वसूली घरों, कॉरपोरेट, बिजनेस सेक्टर, कमर्शल इस्टैब्लिशमेंट और टूरिस्ट से वसूली करने के लिए एक तंत्र विकसित कर सकती है, जिनकी कचरे के उत्पादन में अहम भूमिका है।