लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली चोरी के 9 मामलों में कुल 18 साल कैद और जुर्माना की सजा पाए व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने इस आदेश के पीछे निजी स्वतंत्रता और बुनियादी अधिकारों की संरक्षा की अपनी भूमिका का भी हवाला दिया है। कोर्ट ने कहा कि हम यहां ऐसे लोगों की सिसकियां सुनने के लिए ही बैठे हैं।
कैद की सजा भुगत रहा याचिकाकर्ता इकराम बिजली चोरी के अलग-अलग 9 मामलों में दोषी पाया गया था। ट्रायल कोर्ट ने सभी मामलों में इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट की धारा 136 और आईपीसी की धारा 411 के तहत अलग-अलग दो-दो साल कैद और हजार-हजार रुपए नकद जुर्माने की सजा सुनाई। इन 9 अलग-अलग मामलों में बाकी अभियुक्त तो अन्य थे सिर्फ इकराम सभी में कॉमन था। सभी अभियुक्तों के साथ उसे भी सभी 9 केसों में दो दो साल सजा हुई क्योंकि उसने भी अपना अपराध कोर्ट के सामने कबूल कर लिया था।
कोर्ट ने भी इसके बाद उसकी हिरासत की अवधि को सजा में ही एडजस्ट करते हुए आदेश में लिख दिया था कि सभी मुकदमों की सजा एक के बाद एक चलेंगी यानी 9 मुकदमों के लिए 18 साल सजा काटनी होगी।
इसके बाद इकराम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इकराम ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि सभी 9 सजाओं को एक साथ चलने दिया जाए। हालांकि यूपी सरकार ने इसका विरोध किया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आप एक बिजली चोरी के मामले की बराबरी हत्या से नहीं कर सकते।” उन्होंने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट ऐसे याचिकाकर्ताओं की पुकार सुनने के लिए मौजूद है। हमारे लिए कोई भी मामला छोटा या बड़ा नहीं होता है। हमें हर दूसरे दिन ऐसे मामले मिलते हैं। क्या हम बिजली चोरी करने के लिए किसी को 18 साल के लिए जेल भेजेंगे?”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “स्थिति पर गौर किया जाए तो उसे कुल 18 साल की कैद की सजा काटनी होगी। जबकि जिस कानून (विद्युत अधिनियम की धारा 136) के तहत उसे दोषी ठहराया गया था उसमें अधिकतम पांच साल की सजा है।
मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं और कोई राहत देते हैं तो हम यहां कर क्या रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट क्या कर रहा है? क्या यह अनुच्छेद 136 के तहत उल्लंघन नहीं है। ऐसे याचिकाकर्ताओं की पुकार सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट मौजूद है। हम ऐसे मामलों के लिए पूरी रात मेहनत करते हैं और देखते हैं कि इसमें और भी बहुत कुछ है।”
हाईकोर्ट से भी नहीं मिली थी राहत
2015 में सुनाई गई सजा के बाद अब तक इकराम सात साल सलाखों के पीछे गुजार चुका है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला दरकिनार करते हुए दोषी को रिहा करने का आदेश दिया।
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