‘ऐसे चुनाव आयुक्त की जरूरत जिसे कुचला नहीं जा सकता’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने टीएन शेषन को क्यों किया याद

नई दिल्ली। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार की सिफारिश करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त को ऐसे चरित्र का होना चाहिए, जो खुद पर बुलडोजर नहीं चलने देता। इस दौरान संविधान पीठ ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त दिवंगत टी एन शेषन का भी जिक्र किया। पीठ ने कहा कि टी एन शेषन जैसा व्यक्ति कभी-कभी होता है।

दिवंगत टीएन शेषन या तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त थे। देश के 10वें सीईसी के तौर पर उनकी नियुक्ति 12 दिसंबर, 1990 को हुई थी और उनका कार्यकाल 11 दिसंबर, 1996 यानि पूरे पांच के लिए था। उनका जन्म 15 दिसंबर, 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले के कालकाडु में हुआ था। वह 1955 बैच के तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी थे। 27 मार्च, 1989 से 23 दिसंबर, 1989 तक वह भारत सरकार के कैबिनेट सचिव रहे, जो भारतीय प्रशासनिक सेवा का सर्वोच्च पद माना जाता है।

भारत में अबतक जितने भी मुख्य चुनाव आयुक्त बने हैं, उसमें टीएन शेषन एकमात्र ऐसे हैं जिनके आने के बाद से चुनाव आयोग के काम करने का पूरा ढर्रा (कम से कम जनता की नजर में) ही बदल गया है। सीईसी के तौर पर शेषन अपने ऐतिसाहिक चुनाव सुधारों के लिए जाने जाते हैं और उनकी वजह से चुनाव आयोग की गरिमा और प्रतिष्ठा भी बढ़ी है। क्योंकि, 1950 में अपनी स्थापना के बाद से लेकर टीएन शेषन के पदभार ग्रहण करने से पहले तक भारत का चुनाव आयोग एक तरह से चुनाव पर्यवेक्षक के रोल में ही नजर आता था। वह ऐसा समय था, जब मतदाताओं को रिश्वत देना एक सामान्य व्यवस्था बना दी गई थी, लेकिन शेषन ने चुनाव आयोग का वह अधिकार सुनिश्चित करवाया, जो इसे संविधान में दिया गया था।

टीएन शेषन ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को संचालित करने के लिए चुनावों के दौरान 150 ऐसी कुप्रथाओं की सूची जारी की, जिसपर चुनाव आयोग की ओर से रोक लगा दी गई। इसमें चुनावों के दौरान शराब का वितरण, वोटरों को रिश्वत देना, दीवारों पर लिखना, चुनाव प्रचार के दौरान अनावश्यक शोर और लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल के अलावा भाषण में धर्म का इस्तेमाल आदि। शेषन ने ही वोटर आईडी कार्ड की व्यवस्था शुरू करवाई जो कि उस समय असंभव लग रहा था। कुछ राजनीतिक दल तो इसका खुलकर विरोध भी करने पर उतारू थे। यही नहीं, चुनावों से पहले आदर्श आचार संहिता नियमित रूप से और सख्ती के साथ लागू होने शुरू हो गए और चुनाव खर्चों की सीमाएं तय की जाने लगीं। उनसे पहले इस सब पर राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की मनमानी कायम थी।

टीएन शेषन ने जिस तरह से तत्कालीन केंद्र सरकार के हितों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ संविधान और चुनाव नियमों का पालन सुनिश्चित करवाना शुरू किया, उसके चलते सरकार के साथ उनका मतभेद शुरू हो गया। शेषन पर लगाम लगाने के लिए 1993 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आर्टिकल 342 (2)[3] के तहत एक अध्यादेश के जरिए सीईसी के अतिरिक्त दो चुनाव आयुक्तों एमएस गिल और जीवीजी कृष्णमूर्ति की नियुक्ति कर दी। शेषन ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने सीईसी और एक या अधिक चुनाव आयुक्त की व्यवस्था को संवैधानिक करार दिया। यही व्यवस्था आज भी चल रही है।

राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके थे टीएन शेषन
भारत में चुनाव सुधारों को अपने दम पर स्थापित करने की वजह से टीएन शेषन देश में लोकप्रिय तो हो ही चुके थे, उनकी अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि भी कायम हो चुकी थी। देश की चुनाव प्रणाली को स्वच्छ बनाने के लिए 1996 में उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया। 1997 में टीएन शेषन ने केआर नारायणमूर्ति के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था। 10 नवंबर, 2019 को 86 साल की अवस्था में चेन्नई में उनका निधन हो गया।

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