हिंदुओ के खिलाफ साजिश, धर्म परिवर्तन कराने वालों को दी जाए फांसी: शंकराचार्य

करनाल। हरियाणा के करनाल में पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि देश में हिंदुओं को धर्मच्युत करने की साजिश रची जा रही है। धर्म परिवर्तित करने के ऐसे कुत्सित प्रयास राजनीतिक शह के बिना संभव नहीं हैं। हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने वालों को फांसी की सजा दी जाए।

मंगलवार को अपने करनाल प्रवास के दौरान पत्रकारों से वार्ता में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि हिंदुओं का लक्ष्य अखंड भारत है, ताकि सभी को प्यार और सम्मान मिले। हिंदुओं को लक्ष्य से दूर नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गो हत्या और धर्म परिवर्तन के लिए राजा ही दोषी होता है। गो रक्षकों को गुंडा कहना गलत है। उन्होंने कहा कि राजनीति धर्म के अधीन होनी चाहिए। देश में राज धर्म का प्रयोग धर्म के अनुसार होता है। राजनीति और धर्म एक-दूसरे के पर्याय हैं। अधर्मी राजा हमेशा देश और समाज के लिए खतरनाक होता है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों की आयु दो सौ साल से अधिक नहीं है लेकिन गुरु और सनातन परंपरा एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार एक सौ 22 वर्ष पुरानी है।

स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि सौ वर्ष की अवधि में ही भारत से पाकिस्तान, बंगलादेश और बर्मा आदि देश अलग हुए। इसी विखंडन को देखते हुए हम श्रीमन नारायण की परंपरा के वाहक होने के नाते अखंड भारत की परिकल्पना साकार करना चाहते हैं। संत राजनीति व राजनेताओं के मार्गदर्शन करते हैं। नीति और धर्म पर्यायवाची हैं। राजनीति धर्म का अतिक्रमण करके नहीं बच सकती। इसलिए सभी को अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। महाभारत में द्रौपदी का वस्त्र हरण करने वालों का पतन धर्मोन्मुख होने के कारण हुआ। भेद का नाम ही सृष्टि है लेकिन द्वेषमूलक भेद नहीं होना चाहिए। भेद होने के बावजूद सभी का लक्ष्य एक रहे, यही संदेश पूरे हिंदू समाज में जाना चाहिए।

राजनेता व्यास पीठ से ऊपर नहीं
स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि कोई भी संस्था या राजनेता व्यास पीठ से ऊपर नहीं होता है। प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ उनके प्रिय हैं लेकिन वह भी व्यास पीठ से ऊपर नहीं हैं। हिंदुओं का सशक्त होना संसार के हित में है। सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति संसार के उद्गम के साथ ही शुरू हो गई थी। हिंदू संस्कृति के तहत विज्ञान और राष्ट्र के उत्कर्ष के साथ अखंड भारत का स्वरूप विश्व के हित में है, जो अहंकार के वशीभूत होकर जो काम करते हैं वही, असफल होता है। संत को धन की आशक्ति से दूर रहना चाहिए।

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