बाबरी विध्वंस मामला: आडवाणी, जोशी व उमा को बरी करने के खिलाफ याचिका खारिज

लखनऊ। अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत सभी आरोपियों को बुधवार को बड़ी राहत मिल गई। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत अन्य आरोपियों को बरी करने के खिलाफ दाखिल याचिका को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने अपना निर्णय 31 अक्टूबर को सुरक्षित कर लिया था।

अयोध्या विवादित ढांचा मामले में लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य आरोपियों को बरी करने के खिलाफ याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर की गई थी। याचिका अयोध्या के रहने वाले हाजी महमूद अहमद और सैयद अखलाक अहमद की तरफ से दायर की गई थी। दावा किया गया कि वह दोनों 6 दिसंबर 1992 विवादित ढांचा मामले के गवाह हैं, उस घटना में उनका घर भी जल गया था, ऐसे में वह इसके शिकार भी हैं। उन्होंने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसी ने आरोपियों को बचाने की भूमिका निभाई। जबकि पीड़ित पक्ष को राज्य सरकार, पुलिस और सीबीआई से मदद नहीं मिली।

मामले में सीबीआई की तरफ से भी आपत्ति दाखिल की गई थी। सीबीआई का कहना था कि अपील करने वाले विवादित ढांचा गिराए जाने के इस मामले के पीड़ित नहीं हैं। लिहाजा सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक के तहत वर्तमान अपील दाखिल नहीं कर सकते। अपीलार्थियों का कहना है कि वे इस मामले में विवादित ढांचा गिराए जाने की वजह से पीड़ित पक्ष में हैं। लिहाजा उन्हें सत्र अदालत के फैसले को चुनौती देने का अधिकार है।

1990 का वीडियो हो रहा वायरल
1990 के इस वीडियो में आडवाणी रात के वक्त एक सभा को संबोधित कर रहे हैं। लोगों को संबोधित करते हुए आडवाणी कह रहे हैं, ‘लोग कहते हैं कि आप अदालत का फैसला क्यों नहीं मानते? अदालत क्या इस बात का फैसला करेगी कि यहां पर राम का जन्म हुआ था कि नहीं हुआ था। आप से इतनी आशा है, बीच में मत पड़ो। रास्ते में मत आओ। क्योंकि ये जो रथ है, लोक रथ है, जनता का रथ है। जो सोमनाथ से चला है, और जिसने मन में संकल्प किया हुआ है कि 30 अक्टूबर को वहां पर पहुंचकर कार सेवा करेंगे और मंदिर वहीं बनाएंगे उसको कौन रोकेगा? कौन सी सरकार रोकने वाली है?’

बाबरी मस्जिद से मामला
हिंदू और मुस्लिम समुदायों में अयोध्या की बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद था। हिंदूवादी नेताओं का दावा था कि मस्जिद श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़कर बनी है। मस्जिद को 1528 में बाबर के कमांडर मीर बाकी ने बनवाया था। इस पर हिंदू और मुस्लिम दोनों ही अपना दावा ठोंकते थे। 1885 से ही यह मामला अदालत में था। 1990 के दशक में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा। 6 दिसंबर 1992 को उन्मादी भीड़ ने मस्जिद को तोड़ दिया। इस मामले में आडवाणी, जोशी समेत कई बीजेपी नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज है। बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई।

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