गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ी, बोले- रिमोट कंट्रोल मॉडल ने पार्टी को बर्बाद किया

नई दिल्ली। कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। वे लंबे अर्से से पार्टी से नाराज चल रहे थे। आजाद ने 5 पेजों में पार्टी से इस्तीफा देकर गंभीर सवाल भी उठाए हैं। आजाद ने अपने त्यागपत्र की जो चिट्ठी लिखी है, उसमें उन्होंने राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

कांग्रेस नेता ने अपनी चिट्ठी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजी है। आजाद ने लिखा है, जनवरी 2013 में राहुल गांधी को आपके द्वारा कांग्रेस उपाध्यक्ष बनाया गया, उसके बाद पार्टी में मौजूद सलाह-मशविरे के सिस्टम को उन्होंने खत्म कर दिया। सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और बिना अनुभव वाले चाटुकारों की मंडली पार्टी को चलाने लगी। अपने पत्र में आजाद ने लिखा है, ‘सोनिया गांधी केवल नाम की अध्यक्ष हैं। सभी फैसले राहुल गांधी लेते हैं। वह बचकाना हरकत करते हैं। उन्होंने मेरे सुझावों को नजरंदाज किया।’

उन्होंने अपने इस्तीफे की चिट्ठी में लिखा कि बहुत अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने कांग्रेस से अपना आधा सदी पुराना रिश्ता तोड़ने का फैसला लिया है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में इस बात का उल्लेख किया है कि कांग्रेस को भारत जोड़ो यात्रा की जगह कांग्रेस जोड़ो यात्रा निकालनी चाहिए। आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे त्याग पत्र में लिखा, ‘पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले 23 नेताओं को अपशब्द कहे गए, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया।’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस में हालात अब ऐसी स्थिति पर पहुंच गए हैं, जहां से वापस नहीं आया जा सकता।

गुलाम नबी आजाद ने कहा कि पार्टी रिमोट कंट्रोल मॉडल चल रही है और कांग्रेस के कई बड़े नेता भी पार्टी छोड़ सकते हैं क्योंकि पार्टी में वरिष्ठ नेताओं का अपमान हुआ है। नबी ने बताया कि अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो पार्टी को और भी चुनावी हार का सामना करना होगा।

जी-23 ग्रुप के नेताओं में काफी मुखर थे आजाद
गुलाम नबी आजाद की गिनती पार्टी के बेहद सीनियर नेताओं में होती थी और वे गांधी परिवार के बेहद करीबी नेताओं में एक माने जाते थे। गुलाम कांग्रेस संगठन के बड़े पदों पर काम कर चुके है। वह इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के साथ काम कर चुके हैं। लेकिन 2019 के बाद से पार्टी के अंदर बदलाव की आवाज उठने लगी और फिर जी-23 ग्रुप का उभार हुआ। इसमें वो नेता शामिल थे जो पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन की मांग उठा रहे थे। इन नेताओं में गुलाम नबी आजाद भी बेहद मुखर थे। इससे गांधी परिवार से उनकी दूरी बढ़ती जा रही थी।

जिम्मेदारी से किया था इनकार
इससे पहले 16 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को केंद्र शासित प्रदेश में पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख नियुक्त किया, लेकिन आजाद ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया। जम्मू और कश्मीर में संगठन में सुधार के तौर पर सोनिया गांधी ने आज़ाद के करीबी माने जाने वाले विकार रसूल वानी को अपनी जम्मू-कश्मीर इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया।

पीएम मोदी ने की थी गुलाब नबी आजाद की तारीफ
पिछले साल फरवरी माह में जब गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से बिदाई हो रही थी, इस मौके पर उनके सम्मान में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में उनके राजनीतिक कार्यकाल की प्रशंसा की थी। अपने भाषण में खुद पीएम मोदी भी कई बार भावुक हुए थे।

गुलाम नबी आजाद का राजनीतिक सफर
1973 में गुलाम नबी आजाद ने भलस्वा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के बतौर राजनीति जीवन की शुरुआत की। इसके बाद उनकी सक्रियता और शैली को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। आजाद ने महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ा और विजयी हुए। 1982 में उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया।वर्ष 2005 में आजाद के लिए वह सुनहरा दौर भी आया, जब वे जम्मू कश्मीर के सीएम बने और राज्य की सेवा की। उन्होंने कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली।आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। तब कांग्रेस राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी।

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