• About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact
  • Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
    • Home – Layout 6
No Result
View All Result
  • Home
    • Home – Layout 1
    • Home – Layout 2
    • Home – Layout 3
    • Home – Layout 4
    • Home – Layout 5
    • Home – Layout 6
No Result
View All Result
No Result
View All Result
Home राष्ट्रीय

‘मैं आपसे कभी ये बातें नहीं कह पाया, 100 बरस की हुई मां के नाम पीएम मोदी ने लिखा ब्लॉग

by Hamara Ghaziabad Staff
June 18, 2022
in राष्ट्रीय
मां हीराबेन के 100वें जन्‍मदिन पर मिलने पहुंचे PM मोदी
Share on FacebookShare on Twitter

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अपनी मां के 100वें जन्मदिन के अवसर उन्हें समर्पित एक ब्लॉग लिखा। इस ब्लॉग में उन्होंने अपनी मां के बलिदानों और जीवन के ऐसे पहलुओं का जिक्र किया, जिन्होंने उनके (मोदी के) आत्म-विश्वास, मन एवं व्यक्तित्व को ‘आकार’ दिया। इस ब्लॉग में पीएम मोदी ने अपने बचपन से लेकर अब तक के जीवन के कई किस्सों का जिक्र किया। ऐसा ही एक किस्सा उस वक्त का है जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे।

पीएम मोदी ने मां के लिए अपनी आधिकारिक वेबसाइट (www.narendramodi.in) पर ‘मां’ शीर्षक से एक ब्‍लॉग भी लिखा है। इसमें मोदी ने तमाम यादें ताजा करते हुए अपने जीवन में मां के महत्‍व को समझाया है। पढ़‍िए, मां के नाम पीएम मोदी का पूरा ब्‍लॉग।

“मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है। जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है। दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है। मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है। और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है।

आज मैं अपनी खुशी, अपना सौभाग्य, आप सबसे साझा करना चाहता हूं। मेरी मां, हीराबा आज 18 जून को अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। यानि उनका जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है। पिताजी आज होते, तो पिछले सप्ताह वो भी 100 वर्ष के हो गए होते। यानि 2022 एक ऐसा वर्ष है जब मेरी मां का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है और इसी साल मेरे पिताजी का जन्मशताब्दी वर्ष पूर्ण हुआ है।

पिछले ही हफ्ते मेरे भतीजे ने गांधीनगर से मां के कुछ वीडियो भेजे हैं। घर पर सोसायटी के कुछ नौजवान लड़के आए हैं, पिताजी की तस्वीर कुर्सी पर रखी है, भजन कीर्तन चल रहा है और मां मगन होकर भजन गा रही हैं, मंजीरा बजा रही हैं। मां आज भी वैसी ही हैं। शरीर की ऊर्जा भले कम हो गई है लेकिन मन की ऊर्जा यथावत है।

वैसे हमारे यहां जन्मदिन मनाने की कोई परंपरा नहीं रही है। लेकिन परिवार में जो नई पीढ़ी के बच्चे हैं उन्होंने पिताजी के जन्मशती वर्ष में इस बार 100 पेड़ लगाए हैं। आज मेरे जीवन में जो कुछ भी अच्छा है, मेरे व्यक्तित्व में जो कुछ भी अच्छा है, वो मां और पिताजी की ही देन है। आज जब मैं यहां दिल्ली में बैठा हूं, तो कितना कुछ पुराना याद आ रहा है।

मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी। ठीक वैसे ही, जैसे हर मां होती है। आज जब मैं अपनी मां के बारे में लिख रहा हूं, तो पढ़ते हुए आपको भी ये लग सकता है कि अरे, मेरी मां भी तो ऐसी ही हैं, मेरी मां भी तो ऐसा ही किया करती हैं। ये पढ़ते हुए आपके मन में अपनी मां की छवि उभरेगी।

मां की तपस्या, उसकी संतान को, सही इंसान बनाती है। मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है। मां एक व्यक्ति नहीं है, एक व्यक्तित्व नहीं है, मां एक स्वरूप है। हमारे यहां कहते हैं, जैसा भक्त वैसा भगवान। वैसे ही अपने मन के भाव के अनुसार, हम मां के स्वरूप को अनुभव कर सकते हैं।

मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था। वडनगर से ये बहुत दूर नहीं है। मेरी मां को अपनी मां यानि मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था। एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था। उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था। मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी। उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है। आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव।

हम आज के समय में इन स्थितियों को जोड़कर देखें तो कल्पना कर सकते हैं कि मेरी मां का बचपन कितनी मुश्किलों भरा था। शायद ईश्वर ने उनके जीवन को इसी प्रकार से गढ़ने की सोची थी। आज उन परिस्थितियों के बारे में मां सोचती हैं, तो कहती हैं कि ये ईश्वर की ही इच्छा रही होगी। लेकिन अपनी मां को खोने का, उनका चेहरा तक ना देख पाने का दर्द उन्हें आज भी है।

बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं।

वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थे।
उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।

सामान्य रूप से जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी रहता है। मेरे माता-पिता की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया। दोनों ने ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियां साझा की हुईं थीं।

कोई भी मौसम हो, गर्मी हो, बारिश हो, पिताजी चार बजे भोर में घर से निकल जाया करते थे। आसपास के लोग पिताजी के कदमों की आवाज से जान जाते थे कि 4 बज गए हैं, दामोदर काका जा रहे हैं। घर से निकलकर मंदिर जाना, प्रभु दर्शन करना और फिर चाय की दुकान पर पहुंच जाना उनका नित्य कर्म रहता था।

मां भी समय की उतनी ही पाबंद थीं। उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी। सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं। गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं। काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं। नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है “जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे” वो उन्हें बहुत पसंद है। एक लोरी भी है, “शिवाजी नु हालरडु”, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं।

मां कभी अपेक्षा नहीं करती थीं कि हम भाई-बहन अपनी पढ़ाई छोड़कर उनकी मदद करें। वो कभी मदद के लिए, उनका हाथ बंटाने के लिए नहीं कहती थीं। मां को लगातार काम करते देखकर हम भाई-बहनों को खुद ही लगता था कि काम में उनका हाथ बंटाएं। मुझे तालाब में नहाने का, तालाब में तैरने का बड़ा शौक था इसलिए मैं भी घर के कपड़े लेकर उन्हें तालाब में धोने के लिए निकल जाता था। कपड़े भी धुल जाते थे और मेरा खेल भी हो जाता था।

घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।

अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया। मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं। लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो। इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं। वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी।

बारिश में हमारे घर में कभी पानी यहां से टकपता था, कभी वहां से। पूरे घर में पानी ना भर जाए, घर की दीवारों को नुकसान ना पहुंचे, इसलिए मां जमीन पर बर्तन रख दिया करती थीं। छत से टपकता हुआ पानी उसमें इकट्ठा होता रहता था। उन पलों में भी मैंने मां को कभी परेशान नहीं देखा, खुद को कोसते नहीं देखा। आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बाद में उसी पानी को मां घर के काम के लिए अगले 2-3 दिन तक इस्तेमाल करती थीं। जल संरक्षण का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है।

मां को घर सजाने का, घर को सुंदर बनाने का भी बहुत शौक था। घर सुंदर दिखे, साफ दिखे, इसके लिए वो दिन भर लगी रहती थीं। वो घर के भीतर की जमीन को गोबर से लीपती थीं। आप लोगों को पता होगा कि जब उपले या गोबर के कंडे में आग लगाओ तो कई बार शुरू में बहुत धुआं होता है। मां तो बिना खिड़की वाले उस घर में उपले पर ही खाना बनाती थीं। धुआं निकल नहीं पाता था इसलिए घर के भीतर की दीवारें बहुत जल्दी काली हो जाया करती थीं। हर कुछ हफ्तों में मां उन दीवारों की भी पुताई कर दिया करती थीं। इससे घर में एक नयापन सा आ जाता था। मां मिट्टी की बहुत सुंदर कटोरियां बनाकर भी उन्हें सजाया करती थीं। पुरानी चीजों को रीसायकिल करने की हम भारतीयों में जो आदत है, मां उसकी भी चैंपियन रही हैं।

उनका एक और बड़ा ही निराला और अनोखा तरीका मुझे याद है। वो अक्सर पुराने कागजों को भिगोकर, उसके साथ इमली के बीज पीसकर एक पेस्ट जैसा बना लेती थीं, बिल्कुल गोंद की तरह। फिर इस पेस्ट की मदद से वो दीवारों पर शीशे के टुकड़े चिपकाकर बहुत सुंदर चित्र बनाया करती थीं। बाजार से कुछ-कुछ सामान लाकर वो घर के दरवाजे को भी सजाया करती थीं।

मां इस बात को लेकर हमेशा बहुत नियम से चलती थीं कि बिस्तर बिल्कुल साफ-सुथरा हो, बहुत अच्छे से बिछा हुआ हो। धूल का एक भी कण उन्हें चादर पर बर्दाश्त नहीं था। थोड़ी सी सलवट देखते ही वो पूरी चादर फिर से झाड़कर करीने से बिछाती थीं। हम लोग भी मां की इस आदत का बहुत ध्यान रखते थे। आज इतने वर्षों बाद भी मां जिस घर में रहती हैं, वहां इस बात पर बहुत जोर देती हैं कि उनका बिस्तर जरा भी सिकुड़ा हुआ ना हो।

हर काम में पर्फेक्शन का उनका भाव इस उम्र में भी वैसा का वैसा ही है। और गांधीनगर में अब तो भैया का परिवार है, मेरे भतीजों का परिवार है, वो कोशिश करती हैं कि आज भी अपना सारा काम खुद ही करें।

साफ-सफाई को लेकर वो कितनी सतर्क रहती हैं, ये तो मैं आज भी देखता हूं। दिल्ली से मैं जब भी गांधीनगर जाता हूं, उनसे मिलने पहुंचता हूं, तो मुझे अपने हाथ से मिठाई जरूर खिलाती हैं। और जैसे एक मां, किसी छोटे बच्चे को कुछ खिलाकर उसका मुंह पोंछती है, वैसे ही मेरी मां आज भी मुझे कुछ खिलाने के बाद किसी रुमाल से मेरा मुंह जरूर पोंछती हैं। वो अपनी साड़ी में हमेशा एक रुमाल या छोटा तौलिया खोंसकर रखती हैं।

मां के सफाई प्रेम के तो इतने किस्से हैं कि लिखने में बहुत वक्त बीत जाएगा। मां में एक और खास बात रही है। जो साफ-सफाई के काम करता है, उसे भी मां बहुत मान देती है। मुझे याद है, वडनगर में हमारे घर के पास जो नाली थी, जब उसकी सफाई के लिए कोई आता था, तो मां बिना चाय पिलाए, उसे जाने नहीं देती थीं। बाद में सफाई वाले भी समझ गए थे कि काम के बाद अगर चाय पीनी है, तो वो हमारे घर में ही मिल सकती है।

मेरी मां की एक और अच्छी आदत रही है जो मुझे हमेशा याद रही। जीव पर दया करना उनके संस्कारों में झलकता रहा है। गर्मी के दिनों में पक्षियों के लिए वो मिट्टी के बर्तनों में दाना और पानी जरूर रखा करती थीं। जो हमारे घर के आसपास स्ट्रीट डॉग्स रहते थे, वो भूखे ना रहें, मां इसका भी खयाल रखती थीं।

पिताजी अपनी चाय की दुकान से जो मलाई लाते थे, मां उससे बड़ा अच्छा घी बनाती थीं। और घी पर सिर्फ हम लोगों का ही अधिकार हो, ऐसा नहीं था। घी पर हमारे मोहल्ले की गायों का भी अधिकार था। मां हर रोज, नियम से गौमाता को रोटी खिलाती थी। लेकिन सूखी रोटी नहीं, हमेशा उस पर घी लगा के ही देती थीं।

भोजन को लेकर मां का हमेशा से ये भी आग्रह रहा है कि अन्न का एक भी दाना बर्बाद नहीं होना चाहिए। हमारे कस्बे में जब किसी के शादी-ब्याह में सामूहिक भोज का आयोजन होता था तो वहां जाने से पहले मां सभी को ये बात जरूर याद दिलाती थीं कि खाना खाते समय अन्न मत बर्बाद करना। घर में भी उन्होंने यही नियम बनाया हुआ था कि उतना ही खाना थाली में लो जितनी भूख हो।

मां आज भी जितना खाना हो, उतना ही भोजन अपनी थाली में लेती हैं। आज भी अपनी थाली में वो अन्न का एक दाना नहीं छोड़तीं। नियम से खाना, तय समय पर खाना, बहुत चबा-चबा के खाना इस उम्र में भी उनकी आदत में बना हुआ है।

मां हमेशा दूसरों को खुश देखकर खुश रहा करती हैं। घर में जगह भले कम हो लेकिन उनका दिल बहुत बड़ा है। हमारे घर से थोड़ी दूर पर एक गांव था जिसमें मेरे पिताजी के बहुत करीबी दोस्त रहा करते थे। उनका बेटा था अब्बास। दोस्त की असमय मृत्यु के बाद पिताजी अब्बास को हमारे घर ही ले आए थे। एक तरह से अब्बास हमारे घर में ही रहकर पढ़ा। हम सभी बच्चों की तरह मां अब्बास की भी बहुत देखभाल करती थीं। ईद पर मां, अब्बास के लिए उसकी पसंद के पकवान बनाती थीं। त्योहारों के समय आसपास के कुछ बच्चे हमारे यहां ही आकर खाना खाते थे। उन्हें भी मेरी मां के हाथ का बनाया खाना बहुत पसंद था।

हमारे घर के आसपास जब भी कोई साधु-संत आते थे तो मां उन्हें घर बुलाकर भोजन अवश्य कराती थीं। जब वो जाने लगते, तो मां अपने लिए नहीं बल्कि हम भाई-बहनों के लिए आशीर्वाद मांगती थीं। उनसे कहती थीं कि “मेरी संतानों को आशीर्वाद दीजिए कि वो दूसरों के सुख में सुख देखें और दूसरों के दुख से दुखी हों। मेरे बच्चों में भक्ति और सेवाभाव पैदा हो उन्हें ऐसा आशीर्वाद दीजिए”।

मेरी मां का मुझ पर बहुत अटूट विश्वास रहा है। उन्हें अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा रहा है। मुझे दशकों पुरानी एक घटना याद आ रही है। तब तक मैं संगठन में रहते हुए जनसेवा के काम में जुट चुका था। घरवालों से संपर्क ना के बराबर ही रह गया था। उसी दौर में एक बार मेरे बड़े भाई, मां को बद्रीनाथ जी, केदारनाथ जी के दर्शन कराने के लिए ले गए थे। बद्रीनाथ में जब मां ने दर्शन किए तो केदारनाथ में भी लोगों को खबर लग गई कि मेरी मां आ रही हैं।

उसी समय अचानक मौसम भी बहुत खराब हो गया था। ये देखकर कुछ लोग केदारघाटी से नीचे की तरफ चल पड़े। वो अपने साथ में कंबल भी ले गए। वो रास्ते में बुजुर्ग महिलाओं से पूछते जा रहे थे कि क्या आप नरेंद्र मोदी की मां हैं? ऐसे ही पूछते हुए वो लोग मां तक पहुंचे। उन्होंने मां को कंबल दिया, चाय पिलाई। फिर तो वो लोग पूरी यात्रा भर मां के साथ ही रहे। केदारनाथ पहुंचने पर उन लोगों ने मां के रहने के लिए अच्छा इंतजाम किया। इस घटना का मां के मन में बड़ा प्रभाव पड़ा। तीर्थ यात्रा से लौटकर जब मां मुझसे मिलीं तो कहा कि “कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं”।

अब इस घटना के इतने वर्षों बाद, जब आज लोग मां के पास जाकर पूछते हैं कि आपका बेटा पीएम है, आपको गर्व होता होगा, तो मां का जवाब बड़ा गहरा होता है। मां उन्हें कहती है कि जितना आपको गर्व होता है, उतना ही मुझे भी होता है। वैसे भी मेरा कुछ नहीं है। मैं तो निमित्त मात्र हूं। वो तो भगवान का है।

आपने भी देखा होगा, मेरी मां कभी किसी सरकारी या सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं जाती हैं। अब तक दो बार ही ऐसा हुआ है जब वो किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में मेरे साथ आई हैं। एक बार मैं जब एकता यात्रा के बाद श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर लौटा था, तो अमदाबाद में हुए नागरिक सम्मान कार्यक्रम में मां ने मंच पर आकर मेरा टीका किया था।

मां के लिए वो बहुत भावुक पल इसलिए भी था क्योंकि एकता यात्रा के दौरान फगवाड़ा में एक हमला हुआ था, उसमें कुछ लोग मारे भी गए थे। उस समय मां मुझे लेकर बहुत चिंता में थीं। तब मेरे पास दो लोगों का फोन आया था। एक अक्षरधाम मंदिर के श्रद्धेय प्रमुख स्वामी जी का और दूसरा फोन मेरी मां का था। मां को मेरा हाल जानकर कुछ तसल्ली हुई थी।

दूसरी बार वो सार्वजनिक तौर पर मेरे साथ तब आईं थी जब मैंने पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। 20 साल पहले का वो शपथग्रहण ही आखिरी समारोह है जब मां सार्वजनिक रूप से मेरे साथ कहीं उपस्थित रहीं हैं। इसके बाद वो कभी किसी कार्यक्रम में मेरे साथ नहीं आईं।

मुझे एक और वाकया याद आ रहा है। जब मैं सीएम बना था तो मेरे मन में इच्छा थी कि अपने सभी शिक्षकों का सार्वजनिक रूप से सम्मान करूं। मेरे मन में ये भी था कि मां तो मेरी सबसे बड़ी शिक्षक रही हैं, उनका भी सम्मान होना चाहिए। हमारे शास्त्रो में कहा भी गया है माता से बड़ा कोई गुरु नहीं है- ‘नास्ति मातृ समो गुरुः’। इसलिए मैंने मां से भी कहा था कि आप भी मंच पर आइएगा। लेकिन उन्होंने कहा कि “देख भाई, मैं तो निमित्त मात्र हूं। तुम्हारा मेरी कोख से जन्म लेना लिखा हुआ था। तुम्हें मैंने नहीं भगवान ने गढ़ा है।”। ये कहकर मां उस कार्यक्रम में नहीं आई थीं। मेरे सभी शिक्षक आए थे, लेकिन मां उस कार्यक्रम से दूर ही रहीं।

लेकिन मुझे याद है, उन्होंने उस समारोह से पहले मुझसे ये जरूर पूछा था कि हमारे कस्बे में जो शिक्षक जेठाभाई जोशी जी थे क्या उनके परिवार से कोई उस कार्यक्रम में आएगा? बचपन में मेरी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, मुझे अक्षरज्ञान गुरुजी जेठाभाई जोशी जी ने कराया था। मां को उनका ध्यान था, ये भी पता था कि अब जोशी जी हमारे बीच नहीं हैं। वो खुद नहीं आईं लेकिन जेठाभाई जोशी जी के परिवार को जरूर बुलाने को कहा।

अक्षर ज्ञान के बिना भी कोई सचमुच में शिक्षित कैसे होता है, ये मैंने हमेशा अपनी मां में देखा। उनके सोचने का दृष्टिकोण, उनकी दूरगामी दृष्टि, मुझे कई बार हैरान कर देती है।

अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति मां हमेशा से बहुत सजग रही हैं। जब से चुनाव होने शुरू हुए पंचायत से पार्लियामेंट तक के इलेक्शन में उन्होंने वोट देने का दायित्व निभाया। कुछ समय पहले हुए गांधीनगर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में भी मां वोट डालने गई थीं।
कई बार मुझे वो कहती हैं कि देखो भाई, पब्लिक का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, ईश्वर का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, तुम्हें कभी कुछ नहीं होगा। वो बोलती हैं कि अपना शरीर हमेशा अच्छा रखना, खुद को स्वस्थ रखना क्योंकि शरीर अच्छा रहेगा तभी तुम अच्छा काम भी कर पाओगे।

एक समय था जब मां बहुत नियम से चतुर्मास किया करती थीं। मां को पता है कि नवरात्रि के समय मेरे नियम क्या हैं। पहले तो नहीं कहती थीं, लेकिन इधर बीच वो कहने लगी हैं कि इतने साल तो कर लिया अब नवरात्रि के समय जो कठिन व्रत-तपस्या करते हो, उसे थोड़ा आसान कर लो। मैंने अपने जीवन में आज तक मां से कभी किसी के लिए कोई शिकायत नहीं सुनी। ना ही वो किसी की शिकायत करती हैं और ना ही किसी से कुछ अपेक्षा रखती हैं।

मां के नाम आज भी कोई संपत्ति नहीं है। मैंने उनके शरीर पर कभी सोना नहीं देखा। उन्हें सोने-गहने का कोई मोह नहीं है। वो पहले भी सादगी से रहती थीं और आज भी वैसे ही अपने छोटे से कमरे में पूरी सादगी से रहती हैं।

ईश्वर पर मां की अगाथ आस्था है, लेकिन वो अंधविश्वास से कोसो दूर रहती हैं। हमारे घर को उन्होंने हमेशा अंधविश्वास से बचाकर रखा। वो शुरु से कबीरपंथी रही हैं और आज भी उसी परंपरा से अपना पूजा-पाठ करती हैं। हां, माला जपने की आदत सी पड़ गई है उन्हें। दिन भर भजन और माला जपना इतना ज्यादा हो जाता है कि नींद भी भूल जाती हैं। घर के लोगों को माला छिपानी पड़ती है, तब जाकर वो सोती हैं, उन्हें नींद आती है।

इतने बरस की होने के बावजूद, मां की याद्दाश्त अब भी बहुत अच्छी है। उन्हें दशकों पहले की भी बातें अच्छी तरह याद हैं। आज भी कभी कोई रिश्तेदार उनसे मिलने जाता है और अपना नाम बताता है, तो वो तुरंत उनके दादा-दादी या नाना-नानी का नाम लेकर बोलती हैं कि अच्छा तुम उनके घर से हो। दुनिया में क्या चल रहा है, आज भी इस पर मां की नजर रहती है। हाल-फिलहाल में मैंने मां से पूछा कि आजकल टीवी कितना देखती हों? मां ने कहा कि टीवी पर तो जब देखो तब सब आपस में झगड़ा कर रहे होते हैं। हां, कुछ हैं जो शांति से समझाते हैं और मैं उन्हें देखती हूं। मां इतना कुछ गौर कर रही हैं, ये देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया।

उनकी तेज याद्दाश्त से जुड़ी एक और बात मुझे याद आ रही है। ये 2017 की बात है जब मैं यूपी चुनाव के आखिरी दिनों में, काशी में था। वहां से मैं अमदाबाद गया तो मां के लिए काशी से प्रसाद लेकर भी गया था। मां से मिला तो उन्होंने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के दर्शन भी किए थे? मां पूरा ही नाम लेती हैं- काशी विश्वनाथ महादेव। फिर बातचीत में मां ने पूछा कि क्या काशी विश्वनाथ महादेव के मंदिर तक जाने का रास्ता अब भी वैसा ही है, ऐसा लगता है किसी के घर में मंदिर बना हुआ है। मैंने हैरान होकर उनसे पूछा कि आप कब गई थीं? मां ने बताया कि बहुत साल पहले गईं थीं। मां को उतने साल पहले की गई तीर्थ यात्रा भी अच्छी तरह याद है।

मां में जितनी ज्यादा संवेदनशीलता है, सेवा भाव है, उतनी ही ज्यादा उनकी नजर भी पारखी रही है। मां छोटे बच्चों के उपचार के कई देसी तरीके जानती हैं। वडनगर वाले घर में तो अक्सर हमारे यहां सुबह से ही कतार लग जाती थी। लोग अपने 6-8 महीने के बच्चों को दिखाने के लिए मां के पास लाते थे।

इलाज करने के लिए मां को कई बार बहुत बारीक पावडर की जरूरत होती थी। ये पावडर जुटाने का इंतजाम घर के हम बच्चों का था। मां हमें चूल्हे से निकली राख, एक कटोरी और एक महीन सा कपड़ा दे देती थीं। फिर हम लोग उस कटोरी के मुंह पर वो कपड़ा कस के बांधकर 5-6 चुटकी राख उस पर रख देते थे। फिर धीरे-धीरे हम कपड़े पर रखी उस राख को रगड़ते थे। ऐसा करने पर राख के जो सबसे महीन कण होते थे, वो कटोरी में नीचे जमा होते जाते थे। मां हम लोगों को हमेशा कहती थीं कि “अपना काम अच्छे से करना। राख के मोटे दानों की वजह से बच्चों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए”।

ऐसी ही मुझे एक और बात याद आ रही है, जिसमें मां की ममता भी थी और सूझबूझ भी। दरअसल एक बार पिताजी को एक धार्मिक अनुष्ठान करवाना था। इसके लिए हम सभी को नर्मदा जी के तट पर किसी स्थान पर जाना था। भीषण गर्मी के दिन थे इसलिए वहां जाने के लिए हम लोग सुबह-सुबह ही घर से निकल लिए थे। करीब तीन-साढ़े तीन घंटे का सफर रहा होगा। हम जहां बस से उतरे, वहां से आगे का रास्ता पैदल ही जाना था। लेकिन गर्मी इतनी ज्यादा थी कि जमीन से जैसे आग निकल रही हो। इसलिए हम लोग नर्मदा जी किनारे पर पानी में पैर रखकर चलने लगे थे। नदी में इस तरह चलना आसान नहीं होता। कुछ ही देर में हम बच्चे बुरी तरह थक गए। जोर की भूख भी लगी थी। मां हम सभी की स्थिति देख रही थीं, समझ रही थीं।

मां ने पिताजी को कहा कि थोड़ी देर के लिए बीच में यहीं रुक जाते हैं। मां ने पिताजी को तुरंत आसपास कहीं से गुड़ खरीदकर लाने को कहा। पिताजी दौड़े हुए गए और गुड़ खरीदकर लाए। मैं तब बच्चा था लेकिन गुड़ खाने के बाद पानी पीते ही जैसे शरीर में नई ऊर्जा आ गई। हम सभी फिर चल पड़े। उस गर्मी में पूजा के लिए उस तरह निकलना, मां की वो समझदारी, पिताजी का तुरंत गुड़ खरीदकर लाना, मुझे आज भी एक-एक पल अच्छी तरह याद है।

दूसरों की इच्छा का सम्मान करने की भावना, दूसरों पर अपनी इच्छा ना थोपने की भावना, मैंने मां में बचपन से ही देखी है। खासतौर पर मुझे लेकर वो बहुत ध्यान रखती थीं कि वो मेरे और मेरे निर्णयों को बीच कभी दीवार ना बनें। उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन ही मिला। बचपन से वो मेरे मन में एक अलग ही प्रकार की प्रवृत्ति पनपते हुए देख रहीं थीं। मैं अपने सभी भाई-बहनों से अलग सा रहता था।

मेरी दिनचर्या की वजह से, मेरे तरह-तरह के प्रयोगों की वजह से कई बार मां को मेरे लिए अलग से इंतजाम भी करने पड़ते थे। लेकिन उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं आई, मां ने कभी इसे बोझ नहीं माना। जैसे मैं महीनों-महीनों के लिए खाने में नमक छोड़ देता था। कई बार ऐसा होता था कि मैं हफ्तों-हफ्तों अन्न त्याग देता था, सिर्फ दूध ही पीया करता था। कभी तय कर लेता था कि अब 6 महीने तक मीठा नहीं खाऊंगा। सर्दी के दिनों में, मैं खुले में सोता था, नहाने के लिए मटके के ठंडे पानी से नहाया करता था। मैं अपनी परीक्षा स्वयं ही ले रहा था। मां मेरे मनोभावों को समझ रही थीं। वो कोई जिद नहीं करती थीं। वो यही कहती थीं- ठीक है भाई, जैसा तुम्हारा मन करे।

मां को आभास हो रहा था कि मैं कुछ अलग ही दिशा में जा रहा हूं। मुझे याद है, एक बार हमारे घर के पास गिरी महादेव मंदिर में एक महात्मा जी आए हुए थे। वो हाथ में ज्वार उगा कर तपस्या कर रहे थे। मैं बड़े मन से उनकी सेवा में जुटा हुआ था। उसी दौरान मेरी मौसी की शादी पड़ गई थी। परिवार में सबको वहां जाने का बहुत मन था। मामा के घर जाना था, मां की बहन की शादी थी, इसलिए मां भी बहुत उत्साह में थीं। सब अपनी तैयारी में जुटे थे लेकिन मैंने मां के पास जाकर कहा कि मैं मौसी की शादी में नहीं जाना चाहता। मां ने वजह पूछी तो मैंने उन्हें महात्मा जी वाली बात बताई।

मां को दुख जरूर हुआ कि मैं उनकी बहन की शादी में नहीं जा रहा, लेकिन उन्होंने मेरे मन का आदर किया। वो यही बोलीं कि ठीक है, जैसा तुम्हारा मन करे, वैसा ही करो। लेकिन उन्हें इस बात की चिंता थी कि मैं अकेले घर में रहूंगा कैसे? मुझे तकलीफ ना हो इसलिए वो मेरे लिए 4-5 दिन का सूखा खाना बनाकर घर में रख गई थीं।

मैंने जब घर छोड़ने का फैसला कर लिया, तो उसे भी मां कई दिन पहले ही समझ गई थीं। मैं मां-पिताजी से बात-बात में कहता ही रहता था कि मेरा मन करता है कि बाहर जाकर देखूं, दुनिया क्या है। मैं उनसे कहता था कि रामकृष्ण मिशन के मठ में जाना है। स्वामी विवेकानंद जी के बारे में भी उनसे खूब बातें करता था। मां-पिताजी ये सब सुनते रहते थे। ये सिलसिला कई दिन तक लगातार चला।

एक दिन आखिरकार मैंने मां-पिता को घर छोड़ने की इच्छा बताई और उनसे आशीर्वाद मांगा। मेरी बात सुनकर पिताजी बहुत दुखी हुए। वो थोड़ा खिन्न होकर बोले- तुम जानो, तुम्हारा काम जाने। लेकिन मैंने कहा कि मैं ऐसे बिना आशीर्वाद घर छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां को मेरे बारे में सब कुछ पता था ही। उन्होंने फिर मेरे मन का सम्मान किया। वो बोलीं कि जो तुम्हारा मन करे, वही करो। हां, पिताजी की तसल्ली के लिए उन्होंने उनसे कहा कि वो चाहें तो मेरी जन्मपत्री किसी को दिखा लें। हमारे एक रिश्तेदार को ज्योतिष का भी ज्ञान था। पिताजी मेरी जन्मपत्री के साथ उनसे मिले। जन्मपत्री देखने के बाद उन्होंने कहा कि “उसकी तो राह ही कुछ अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया है, वो वहीं जाएगा”।

इसके कुछ घंटों बाद ही मैंने घर छोड़ दिया था। तब तक पिताजी भी बहुत सहज हो चुके थे। पिताजी ने मुझे आशीर्वाद दिया। घर से निकलने से पहले मां ने मुझे दही और गुड़ भी खिलाया। वो जानती थीं कि अब मेरा आगे का जीवन कैसा होने जा रहा है। मां की ममता कितनी ही कठोर होने की कोशिश करे, जब उसकी संतान घर से दूर जा रही हो, तो पिघल ही जाती है। मां की आंख में आंसू थे लेकिन मेरे लिए खूब सारा आशीर्वाद भी था।

घर छोड़ने के बाद के वर्षों में, मैं जहां रहा, जिस हाल में रहा, मां के आशीर्वाद की अनुभूति हमेशा मेरे साथ रही। मां मुझसे गुजराती में ही बात करती हैं। गुजराती में तुम के लिए तू और आप के लिए तमे कहा जाता है। मैं जितने दिन घर में रहा, मां मुझसे तू कहकर ही बात करती थीं। लेकिन जब मैंने घर छोड़ा, अपनी राह बदली, उसके बाद कभी भी मां ने मुझसे तू कहकर बात नहीं की। वो आज भी मुझे आप या तमे कहकर ही बात करती हैं।

मेरी मां ने हमेशा मुझे अपने सिद्धांत पर डटे रहने, गरीब के लिए काम करते रहने के लिए प्रेरित किया है। मुझे याद है, जब मेरा मुख्यमंत्री बनना तय हुआ तो मैं गुजरात में नहीं था। एयरपोर्ट से मैं सीधे मां से मिलने गया था। खुशी से भरी हुई मां का पहला सवाल यही था कि क्या तुम अब यहीं रहा करोगे? मां मेरा उत्तर जानती थीं। फिर मुझसे बोलीं- “मुझे सरकार में तुम्हारा काम तो समझ नहीं आता लेकिन मैं बस यही चाहती हूं कि तुम कभी रिश्वत नहीं लेना।’’

यहां दिल्ली आने के बाद मां से मिलना-जुलना और भी कम हो गया है। जब गांधीनगर जाता हूं तो कभी-कभार मां के घर जाना होता है। मां से मिलना होता है, बस कुछ पलों के लिए। लेकिन मां के मन में इसे लेकर कोई नाराजगी या दुख का भाव मैंने आज तक महसूस नहीं किया। मां का स्नेह मेरे लिए वैसा ही है, मां का आशीर्वाद मेरे लिए वैसा ही है। मां अक्सर पूछती हैं- दिल्ली में अच्छा लगता है? मन लगता है?

वो मुझे बार-बार याद दिलाती हैं कि मेरी चिंता मत किया करो, तुम पर बड़ी जिम्मेदारी है। मां से जब भी फोन पर बात होती है तो यही कहती हैं कि “देख भाई, कभी कोई गलत काम मत करना, बुरा काम मत करना, गरीब के लिए काम करना”।

आज अगर मैं अपनी मां और अपने पिता के जीवन को देखूं, तो उनकी सबसे बड़ी विशेषताएं रही हैं ईमानदारी और स्वाभिमान। गरीबी से जूझते हुए परिस्थितियां कैसी भी रही हों, मेरे माता-पिता ने ना कभी ईमानदारी का रास्ता छोड़ा ना ही अपने स्वाभिमान से समझौता किया। उनके पास हर मुश्किल से निकलने का एक ही तरीका था- मेहनत, दिन रात मेहनत।

पिताजी जब तक जीवित रहे उन्होंने इस बात का पालन किया कि वो किसी पर बोझ नहीं बनें। मेरी मां आज भी इसी प्रयास में रहती हैं कि किसी पर बोझ नहीं बनें, जितना संभव हो पाए, अपने काम खुद करें।

आज भी जब मैं मां से मिलता हूं, तो वो हमेशा कहती हैं कि “मैं मरते समय तक किसी की सेवा नहीं लेना चाहती, बस ऐसे ही चलते-फिरते चले जाने की इच्छा है”।

मैं अपनी माँ की इस जीवन यात्रा में देश की समूची मातृशक्ति के तप, त्याग और योगदान के दर्शन करता हूँ। मैं जब अपनी माँ और उनके जैसी करोड़ों नारियों के सामर्थ्य को देखता हूँ, तो मुझे ऐसा कोई भी लक्ष्य नहीं दिखाई देता जो भारत की बहनों-बेटियों के लिए असंभव हो।

अभाव की हर कथा से बहुत ऊपर, एक मां की गौरव गाथा होती है। संघर्ष के हर पल से बहुत ऊपर, एक मां की इच्छाशक्ति होती है। मां, आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।आपका जन्म शताब्दी वर्ष शुरू होने जा रहा है। सार्वजनिक रूप से कभी आपके लिए इतना लिखने का, इतना कहने का साहस नहीं कर पाया। आप स्वस्थ रहें, हम सभी पर आपका आशीर्वाद बना रहे, ईश्वर से यही प्रार्थना है। नमन।

ShareTweetSendShare
Previous Post

काबुल में गुरुद्वारा कार्ते परवान पर हमला, दहशत का माहौल

Next Post

CAPFs और असम राइफल्स में अग्निवीरों के लिए आरक्षित होंगी 10% सीटें, उम्र सीमा में भी मिली छूट

Discussion about this post

Stay Connected test

  • 72.7k Followers
  • 23.8k Followers
  • 99 Subscribers
  • Trending
  • Comments
  • Latest
गाजियाबाद : नेहरू नगर ओमीक्रोन संभावित अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित

गाजियाबाद : नेहरू नगर ओमीक्रोन संभावित अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित

December 8, 2021
खत्म हुआ किसान आंदोलन, गाजियाबाद को मिलेगी सबसे बड़ी राहत

खत्म हुआ किसान आंदोलन, गाजियाबाद को मिलेगी सबसे बड़ी राहत

December 9, 2021
हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस बिपिन रावत के निधन पर शर्मनाक कमेन्ट करने वाला जावाद खान गिरफ्तार

हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस बिपिन रावत के निधन पर शर्मनाक कमेन्ट करने वाला जावाद खान गिरफ्तार

December 9, 2021
Ghaziabad News: हाईस्पीड ट्रेन का गाजियाबाद स्टेशन लेने लगा आकार, मेट्रो के ऊपर से गुजरेगी ट्रेन

रेलवे ने बुलेट ट्रेन को लेकर दी बड़ी जानकारी, बताया कितना पूरा हो गया का काम

August 18, 2022
परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने डिजिटलीकरण को दिया बढ़ावा – मोटर वाहन नियम, 1989 में किया बदलाव

परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने डिजिटलीकरण को दिया बढ़ावा – मोटर वाहन नियम, 1989 में किया बदलाव

0
SSC CHSL: 5000 पदों पर केंद्र सरकार में बंपर भर्तियां, 12वीं पास हैं तो ऐसे करें आवेदन

SSC CHSL: 5000 पदों पर केंद्र सरकार में बंपर भर्तियां, 12वीं पास हैं तो ऐसे करें आवेदन

0
खुशखबरी! उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल के 18912 पदों पर बंपर भर्तियां, जानें पूरी प्रक्रिया

खुशखबरी! उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल के 18912 पदों पर बंपर भर्तियां, जानें पूरी प्रक्रिया

0
बिल्डर के ख़िलाफ़ गौर सिटी 6th एवेन्यू के निवासी सड़क पर उतरे – किया रोड जाम

बिल्डर के ख़िलाफ़ गौर सिटी 6th एवेन्यू के निवासी सड़क पर उतरे – किया रोड जाम

0
16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

June 7, 2023
Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

June 7, 2023
टूटेंगे रिकॉर्ड, 2 दिन में चारधाम यात्रा के लिए 60 हजार से ज्यादा रजिस्ट्रेशन

चारधाम यात्रा में 45 दिनों में 20 लाख श्रद्धालुओं ने किए दर्शन, 119 तीर्थयात्रियों की मौत

June 7, 2023
गुजरात में एक व्यक्ति ने खुद के खिलाफ दर्ज करवाई FIR, वजह जानिए

शादी के 10 दिन बाद दुल्हन ने बच्चे को दिया जन्म, पति ने अपनाने से किया इंकार

June 7, 2023

Recent News

16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

June 7, 2023
Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

June 7, 2023
टूटेंगे रिकॉर्ड, 2 दिन में चारधाम यात्रा के लिए 60 हजार से ज्यादा रजिस्ट्रेशन

चारधाम यात्रा में 45 दिनों में 20 लाख श्रद्धालुओं ने किए दर्शन, 119 तीर्थयात्रियों की मौत

June 7, 2023
गुजरात में एक व्यक्ति ने खुद के खिलाफ दर्ज करवाई FIR, वजह जानिए

शादी के 10 दिन बाद दुल्हन ने बच्चे को दिया जन्म, पति ने अपनाने से किया इंकार

June 7, 2023
Hamara Ghaziabad

We bring you the best Premium WordPress Themes that perfect for news, magazine, personal blog, etc. Check our landing page for details.

Follow Us

Browse by Category

  • Uncategorized
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • अपराध
  • अभिव्यक्ति
  • इवेंट्स
  • उद्योग
  • एनसीआर
  • कोरोना अपडेट
  • ख़बरें राज्यों से
  • खेल
  • गाज़ियाबाद के गुनहगार
  • घटना
  • चौपाल
  • जीडीए
  • ट्रैफिक अपडेट
  • धर्म और अध्यात्म
  • नगर निगम
  • नागरिक मुद्दे
  • नियुक्तियाँ
  • पर्यावरण
  • पाठकों की कलम से
  • फेक न्यूज पोस्टमार्टम
  • फोटो / विडियो
  • मनोरंजन
  • मेरठ समाचार
  • मेरा गाज़ियाबाद
  • मेरा स्वास्थ्य
  • मौसम
  • राजनीति
  • राष्ट्रीय
  • रियल स्टेट
  • विविध
  • विशेष रिपोर्ट
  • व्यापार
  • शाबाश इंडिया
  • शिक्षा
  • शेयर बाजार
  • संक्षिप्त ख़बरें
  • संवरता गाज़ियाबाद
  • सांप्रदायिकता
  • सामाजिक

Recent News

16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

16000 लोगों को नई जिंदगी देने वाले दिल के डॉक्टर की हार्टअटैक से मौत

June 7, 2023
Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

Odisha Train Accident: 2000 रुपये के नोट बांट पीड़ितों की मदद कर रही ममता बनर्जी की पार्टी

June 7, 2023
  • About
  • Advertise
  • Privacy & Policy
  • Contact

© 2023 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

No Result
View All Result

© 2023 JNews - Premium WordPress news & magazine theme by Jegtheme.

error: Content is protected !!
Are you sure want to unlock this post?
Unlock left : 0
Are you sure want to cancel subscription?
Go to mobile version