मौलाना अरशद मदनी बोले- वलीउल्लाह की फांसी की सजा के फैसले को हाईकोर्ट में दी जाएगी चुनौती

वाराणसी/गाजियाबाद। गाजियाबाद की विशेष सेशन कोर्ट द्वारा छह जून 2006 में संकट मोचन मंदिर सीरियल बम विस्फोट मामले के एकमात्र आरोपी मुफ्ती वलीउल्लाह को फांसी की सजा सुनाने के फैसले को जमीयत उलमा-ए-हिंद हाईकोर्ट में चुनौती देगा। इन बम ब्लास्ट में 18 लोगों की मौत हुई थी।

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौदी दी जाएगी। हमें पूर्ण विश्वास है कि उच्च न्यायालय से उनको पूरा न्याय मिलेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले हैं, जिनमें निचली अदालतों ने सजाएं दीं, मगर जब वह मामले उच्च न्यायालय में गए तो पूरा इंसाफ हुआ।

उन्होंने कहा कि इसका एक बड़ा उदाहरण अक्षरधाम मंदिर हमले का मामला है। जिसमें निचली अदालत ने मुफ्ती अबदुल कय्यूम समेत तीन लोगों को फांसी और चार लोगों को आजीवन कारावास की सजा दी थी। यहां तक कि गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फैसला को बरकरार रखा था। लेकिन जमीयत की कानूनी सहायता के नतीजे में जब यह मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में गया तो यह सारे लोग न केवल सम्मानपूर्वक बरी हुए, बल्कि निर्दोषों को आतंकवाद के इल्जाम में फांसने पर अदालत ने गुजरात पुलिस को कड़ी फटकार भी लगाई थी।

बता दें 16 साल पुराने वाराणसी सीरियल ब्लास्ट केस में गाजियाबाद की जिला एवं सत्र अदालत ने शनिवार 4 जून को वल्लीउल्लाह को दोषी ठहराया था। सिलसिलेवार हुए ब्लास्ट केस के दो मामलों में जिला जज ने आतंकी वल्लीउल्लाह को दोषी माना था, जिसमे एक मामले में उम्रकैद और दूसरे मामले में फांसी की सजा सुनाई गयी जबकि एक में बरी कर दिया था।

2006 में हुए धमाके में 18 लोगों की हुई थी मौत
7 मार्च 2006 को वाराणसी के संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इस घटना में 18 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 50 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उसी शाम को दशाश्वमेध घाट पर भी विस्फोटक मिले थे। पुलिस ने 5 अप्रैल 2006 को इस मामले में इलाहाबाद के फूलपुर गांव निवासी वली उल्लाह को लखनऊ के गोसाईंगंज इलाके से गिरफ्तार किया था।

मुकदमा लड़ने से वाराणसी के वकीलों ने मना कर दिया था
वली उल्लाह पर संकट मोचन मंदिर और वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर विस्फोट की साजिश रचने व आतंकवाद फैलाने का आरोप है। वली उल्लाह का मुकदमा लड़ने से वाराणसी के वकीलों ने मना कर दिया था। इसके बाद हाई कोर्ट ने यह केस गाजियाबाद जिला जज के न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया था। तभी से केस की सुनवाई गाजियाबाद स्थित जिला जज की कोर्ट में चल रही है।

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