मुंबई। पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के मामले में महाराष्ट्र पुलिस और राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस द्वारा परमबीर के खिलाफ दर्ज पांच आपराधिक मामलों की जांच सीबीआई का सौंपने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आगे एफआईआर दर्ज की जाती है, तो उसे सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया जाए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह परमबीर सिंह का निलंबन रद्द नहीं कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महाराष्ट्र पुलिस की ओर से मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ दर्ज किए गए पांच आपराधिक मामलों को निष्पक्ष जांच के लिए सीबीआई को हस्तांतरित किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस को एक हफ्ते के भीतर सभी मामलों को सीबीआई को सौंपने का निर्देश दिया। साथ ही मुंबई पुलिस के सभी अधिकारियों को सीबीआई को छानबीन में पूरा सहयोग करने का भी आदेश दिया।
सर्वोच्च अदालत की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि कुछ ठोस बाते हैं जिनकी सीबीआई जांच की जरूरत है। सच्चाई क्या है, किसकी गलती है, ऐसाा परिदृश्य कैसे सामने आया। ये ऐसी चीजें हैं जिसकी छानबीन जरूरी है। सीबीआई को इन सभी पहलुओं की जांच करनी चाहिए।
क्या है पूरा मामला?
परमबीर सिंह जबरन वसूली, भ्रष्टाचार और कदाचार के कई मामलों का सामना कर रहे हैं, और उन्हें एंटीलिया बम मामले को कथित रूप से सही तरीके से संभाल नहीं पाने के लिए मुंबई पुलिस प्रमुख के पद से हटा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सिंह को 22 नवंबर को एक बड़ी राहत दी थी, जब उसने महाराष्ट्र पुलिस को उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में उन्हें गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया था।
ठाकरे सरकार के लिए झटका
शीर्ष अदालत के इस आदेश को राज्य सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। परमबीर सिंह के बयानों के कारण ही राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। परमबीर ने देशमुख पर 100 करोड़ की वसूली करवाने का आरोप लगाया था।
मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से हटाए जाने के बाद परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखा था। इसमें परमबीर सिंह ने आरोप लगाया था कि अनिल देशमुख ने कथित तौर पर एंटीलिया सुरक्षा उल्लंघन मामले में मुंबई पुलिस के बर्खास्त अधिकारी सचिन वाजे को मुंबई के बार और रेस्तरां से एक महीने में कथित तौर पर 100 करोड़ रुपये से अधिक की उगाही करने के लिए कहा था। इस आरोप के बाद अनिल देशमुख को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।