नोएडा। नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड के एक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया। एक बच्चा के अपहरण और हत्या के मामले में सीबीआई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में कोली को बरी किया है। हालांकि, कोली को अभी जेल में ही रहना होगा। सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में सीबीआई कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई हुई है।
जानकारी के अनुसार, गाजियाबाद स्थित स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 6 साल के बच्चे के अपरहरण, हत्या और शव छुपाने से जुड़े केस में पुख्ता साक्ष्यों के अभाव में कोली को बरी कर दिया। मासूम बच्चा नोएडा के निठारी गांव से साल 2006 में लापता हो गया था। इसके बाद उसके परिजनों ने नोएडा के सेक्टर-20 थाने में उसके अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने निठारी कांड के 14वें मामले में मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को शुक्रवार को बरी कर दिया। कोर्ट ने कोली को पुख्ता साक्ष्यों के अभाव में बरी किया है। इससे पहले बीते साल 25 मार्च 2021 को 13वें मामले में भी कोर्ट ने कोली को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कोली को पुख्ता साक्ष्यों के अभाव में बरी किया है। कोली पर इस मामले में बच्ची की हत्या, दुष्कर्म और शव नाले में फेंकने का आरोप लगाया गया था।
हालाँकि कोर्ट के आदेश के बाद भी सुरेंद्र कोली को राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। उसके खिलाफ 17 मामले दर्ज किए गए थे। पिछले साल जनवरी में कोली के सहयोगी मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी कर दिया है। इस मामले में कोर्ट 16 जनवरी को सुरेंद्र कोहली को सजा सुनाएगा। मोनिंदर सिंह पंढेर पर 6 मामले दर्ज हैं। अब तक सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। वहीं, पंढेर को तीन मामलों में बरी किया जा चुका है।
जब रातोंरात टल गई थी फांसी
9 सितंबर 2014, सुरेंद्र कोली को मेरठ जेल में फांसी दी जानी थी। कोली को मेरठ जेल की एक हाई सिक्यॉरिटी वाली बैरक में रखा गया। तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी थीं। इसी बीच सुरेंद्र कोली की फांसी पर रोक से संबंधित सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर जेल प्रशासन को तड़के तकरीबन 4 बजे मेरठ के डीएम के जरिए मिला। इस बात की जानकारी खुद तत्कालीन वरिष्ठ जेल अधीक्षक मोहम्मद हुसैन मुस्तफा ने दी थी।
क्या था निठारी काण्ड
निठारी का नर पिशाच सुरेंद्र कोली उत्तराखंड के अल्मोड़ा के एक गांव का रहने वाला है। वह साल 2000 में वह दिल्ली आया था। दिल्ली में कोली एक ब्रिगेडियर के घर पर खाना बनाने का काम करता था, साल 2003 में पंढेर के संपर्क में सुरेंद्र कोली आया। उसके कहने पर नोएडा सेक्टर-31 के डी-5 कोठी में काम करने लगा। साल 2004 में पंढेर का परिवार पंजाब चला गया। इसके बाद वह और कोली साथ में कोठी में रहने लगे थे।
निठारी कांड का खुलासा 7 मई 2006 को लापता लड़की पायल की वजह से हुआ था। वह मोनिंदर पंढेर की कोठी में रिक्शे से आई थी। उसने रिक्शेवाले को कोठी के बाहर रोका और वापस आकर पैसे देने की बात कही थी। काफी देर बाद जब वह वापस नहीं लौटी तो रिक्शेवाला पैसे लेने के लिए कोठी का गेट खटखटाया। इस पर उसे सुरेंद्र कोली ने बताया कि पायल काफी देर पहले जा चुकी है। रिक्शेवाले का कहना था कि वह कोठी के सामने ही था, पायल बाहर नहीं निकली। यह बात पायल के घरवालों तक पहुंची। इसके बाद पायल के पिता नंदलाल ने एफआईआर लिखवाई कि उसकी बेटी कोठी से गायब हो गई, पुलिस पूरी तरह जांच में जुट गई।
नंदलाल लगातार पुलिस पर खोजबीन का दबाव बना रहे थे। इससे पहले निठारी से एक दर्जन से ज्यादा बच्चे गायब हो चुके थे। पुलिस को जानकारी मिली कि पायल के पास एक मोबाइल फोन था। जो घटना के बाद से स्विच ऑफ था। पुलिस ने उस नंबर की कॉल डिटेल निकलवाई, तो मुंबई से लेकर तमाम जगहों के नंबर मिले। उन नंबरों की जांच की गई जिसमें सुराग मिल गए।
जब नोएडा के निठारी गांव की कोठी नंबर डी-5 से नरकंकाल मिलने शुरू हुए तो लोगों के होश उड़ गए। 29 दिसंबर 2006 को नोएडा के निठारी में मोनिंदर सिंह पंधेर की कोठी के पीछे नाले में पुलिस को 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले थे। सीबीआई को जांच के दौरान मानव हड्डियों के हिस्से और 40 ऐसे पैकेट मिले थे, जिनमें मानव अंगों को भरकर नाले में फेंक दिया गया था। दोनों पर आरोप था कि इन्होंने छोटे बच्चे-बच्चियों और महिलाओं को अगवा करके उनके साथ रेप किया। बाद में उनकी हत्या कर उनके शरीर के टुकड़े घर के बाहर नाले में फेंक दिए।
कोली ने जुर्म कबूल करते हुए बताया था कि उसने बच्चों की हत्या करके शव नाले में फेंक दिए थे। उसने युवती के साथ बलात्कार करके हत्या का जुर्म भी कबूल किया था। गवाहों के बयान के आधार पर सीबीआई कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर को भी आरोपी बनाया था। निठारी कांड का पहला अंदेशा पंढेर के पड़ोसियों को ही हुआ था। दो लोग जिनकी बेटियां गुम गईं थीं, उन्हें पंढेर के नौकर सुरेंद्र कोली के वारदात में शामिल होने पर शक हुआ। उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस के पास भी की लेकिन पुलिस से उन्हें खास सहयोग नहीं मिला।
मेडिकल परीक्षण में इस बात की पुष्टि हुई थी कि सुरेंद्र कोली नपुंसक है। उसकी शादी भी हुई लेकिन नपुंसक होने की वजह से ही वह अपनी बीवी को घर पर छोड़कर बाहर रहता था। अपनी इस नपुंसकता की वजह से कोली पर नेक्रोफिलिया बीमारी का असर था, यह ऐसी बीमारी है जिसमें इंसान डेड बॉडी के साथ सेक्स करता है क्योंकि उसे लगता है कि वह महिला को संतुष्ट नहीं कर पाएगा। वह पास के एक मेडिकल स्टोर से यौन उत्तेजना वाली दवाइयां खरीद लाता था। उनका सेवन करने के बाद वह इतना मदांध हो जाता था कि लड़के और लड़कियों में फर्क नहीं कर पाता था।
मोनिंदर पंढेर और सुरेन्द्र कोली को पहली बार रिम्पा हालदार के केस में फांसी की सजा हुई। 4 मई 2010 को 7 साल की बच्ची आरती प्रसाद के मर्डर केस में दूसरी बार कोली को फांसी की सजा दी गई। तीसरी बार 27 सितंबर 2010 को रचना लाल, चौथी बार 12 साल की दीपाली सरकार और पांचवी बार एक 5 साल की बच्ची छोटी कविता के मर्डर केस में सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाई गई। कोली को पिंकी सरकार के मामले में छठवीं बार मौत की सजा सुनाई गई है, यह दूसरा केस है जिसमें पंढेर को फांसी हुई लेकिन रिम्पा सरकार के मर्डर केस में 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंढेर को बरी कर दिया था।
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