‘इकसठ दिन उनसठ पत्र’ रिश्तों की गरिमा के निर्वहन की यात्रा है: उमाकांत शुक्ल

गाजियाबाद। डॉ. अशोक मैत्रेय के उपन्यास ‘इकसठ दिन उनसठ पत्र’ का रविवार को विमोचन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात संस्कृत विद्वान साहित्याचार्य डाॅ. उमाकांत शुक्ल ने कहा कि आज के दौर में हमारे आत्मिक संबंध भी प्रदूषित हो गए हैं। यह प्रदूषण हमारे साहित्य में भी तेजी से पांव पसार रहा है और साहित्य से होता हुआ यह प्रदूषण हमारे रिश्तों को भी विषाक्त करता है। अपने संबोधन में डा. शुक्ल ने कहा कि डा. अशोक मैत्रेय की पुस्तक ‘इकसठ दिन उनसठ पत्र’ रिश्तों की गरिमा के निर्वहन की यात्रा है।

वरिष्ठ नागरिक केंद्र, कवि नगर में आयोजित विमोचन समारोह के विशिष्ट अतिथि चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डा. नवीन चंद्र लोहनी ने उपन्यास की समीक्षा करते हुए कहा कि डा. अशोक मैत्रेय का उपन्यास एक नई और अनूठी विधा की शुरुआत है। आने वाले समय में लेखक इस प्रयोग को उदाहरण के तौर पर लिया करेंगे।

प्रख्यात व्यंग्यकार एवं आलोचक सुभाष चंद्र ने कहा कि ऐसे लोग जो शिल्प के बोझ से दबी पुस्तकों से ऊब गए हैं जिन्हें सरल सहज शब्दों में जिंदगी को कहानी उपन्यासों के रूप में पढ़ना अच्छा लगता है और जिनकी प्रेम की कोमल अनुभूतियों को जानने समझने में भी रुचि है तो ऐसे लोगों को किताब जरूर पढ़नी चाहिए।

सुप्रसिद्ध कवियत्री एवं साहित्यकार डॉक्टर रमा सिंह ने कहा कि डॉक्टर अशोक मैत्रेय द्वारा सत्यता पर आधारित इस उपन्यास को सामने आने में साठ वर्ष लग गए। साठ वर्ष तक एक कहानी को अपने अंत: में दबाए रखना डॉ अशोक मैत्रेय के व्यक्तित्व की सहजता के साथ उनकी गंभीरता को भी व्यक्त करता है। डा. रमा सिंह ने कहा कि उपन्यास का कलेवर भी लगभग 60 वर्ष पहले का है। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास को पढ़ते पढ़ते वह स्वयं उन दिनों का स्मरण करने लगीं जब इस भौतिकता से दूर एक सहज जिंदगी थी। न घर घर टेलीफोन हुआ करते थे और न ही टीवी।

जामिया मिल्लिया के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉक्टर के.के. कौशिक ने पुस्तक की समीक्षा करते हुए कहा कि इकसठ दिन उनसठ खत के मुखपृष्ठ पर उपन्यास लिखा होना रचना के भाव को ठेस पहुंचाता प्रतीत होता है। डा. अशोक मैत्रेय को यह निर्णय पाठकों पर छोड़ देना चाहिए था कि इसे उपन्यास का नाम दें अथवा कोई और। उन्होंने कहा कि विधाएं साहित्य की जननी नहीं है साहित्य ही विधाओं का जनक है।

डा. दीपक पांडे सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने अपनी समीक्षा में कहा कि पत्रात्मक शैली में लिखा यह उपन्यास रोचक है और पठनीयता के गुणों से भरपूर है । उपन्यास का अंत बहुत गंभीर और संवेदना के साथ हुआ है। भाई-बहन के असीमित अदृश्य प्रेम को लेखक ने बहुत ही बारीकी से बुना है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे धामपुर से पधारे हिन्दी के विद्वान और सेवानिवृत्त हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने कहा वस्तु नेता और रस के पारस्परिक आधार पर यह उपन्यास नहीं लगता। पाश्चात्य दृष्टि से भी यह नॉवल की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। हिंदी में उपलब्ध पत्र साहित्य में इसे रखा नहीं जा सकता क्योंकि पत्र तो लेखक की आत्मकथा या जीवनी का अंश होते हैं रचनाकार की इस कृति को किस काव्य रूप में रखा जाए या क्या अभिधान दिया जाए यह हमारे लिए विचार का विषय है।

कार्यक्रम को अर्चना चतुर्वेदी, आलोक यात्री, राम किशोर उपाध्याय, डा. पुष्पा जोशी, कमला सिंह ‘जीनत’, उमेश कुमार शर्मा, डॉ. गीता नेगी मैत्रेय आदि ने भी संबोधित किया। पुस्तक के लेखक डॉ. अशोक मैत्रेय ने आगंतुकों का आभार जताते हुए कहा कि इस पुस्तक के लेखन के बाद से वह इकसठ साल की प्रसव पीड़ा से मुक्त हो गए। उन्होंने उन सभी पाठकों और समीक्षकों के प्रति भी आभार प्रकट करते हुए कहा कि लोगों ने पुस्तक को जिस तरह से हाथों-हाथ लेते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की है, वह नीधि सौभाग्य से ही किसी लेखक को नसीब होती है।

कार्यक्रम में वनिता की मुख्य उप संपादक रूबी मोहंती, गोविंद गुलशन, मीरा शलभ, कमला सिंह ज़ीनत, महावीर वर्मा मधुर, योगेंद्र दत्त शर्मा, राजीव सिंघल, डा. तूलिका सेठ, नंदिनी श्रीवास्तव, मनोज अबोध, प्रेम शुक्ला, ओम प्रकाश प्रजापति, सुशीला जोशी, कमलेश त्रिवेदी फर्रुखाबादी, मुशर्रफ चौधरी, नीरज मित्तल, सोनम यादव, जगदीश मीणा, अजय पाठक, डॉ. आरती स्मित, डॉ. भावना शुक्ल, अनिल मीत, राज चैतन्य, श्रेयस्कर गौड़, डा. श्याम कुमार, फसीह चौधरी, मनोज कामदेव, रामकिशोर उपाध्याय, कौशल कुमार, महेश वर्मा, विजय कुमार वत्स, एम. एल. तेजियान, आशुतोष आज़ाद, डा. राकेश अग्रवाल, रामवीर आकाश, डा. निशा रावत रैन, ज्योत्सना वर्मा, उमेश कुमार शर्मा, सुभाष चंद महेश, इंदु मित्तल, पूनम अग्रवाल, कंचन शर्मा, पूजा महेश, देवेंद्र कुमार, सुभाष चंद्र यादव, दिनेश त्यागी, गीत, सविता शुक्ला, विजेंद्र कुमार गर्ग, ओम प्रकाश सिंघल सहित साहित्यकार एवम अन्य साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

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