रावण जिसके एक नहीं दस मस्तक थे। हर मस्तक पर योग्यता का मुकुट था। शिव का अनादि भक्त। जिसकी भक्ति पर शिव भी मोहित थे। वह रावण कभी राम नहीं बन पाया, केवल अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के चलते। विजयदशमी के दिन हमे यह याद रखना जरुरी है कि भगवन श्रीराम ने ऐसे रावण का वध किया था जो स्त्रियों का सम्मान नहीं करता था, उनके साथ दुर्व्यवहार करता था और बलपूर्वक अपनी बात मनवाता था।
पुत्रवधू तुल्य रम्भा से दुराचार- महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी प्राधा की पुत्री रंभा का सौंदर्य अप्रतिम था। उसे देखकर बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के मन डोल जाते थे। एक दिन राक्षसराज रावण कैलाश पर्वत पर भ्रमण के लिए निकला। वहां वह रम्भा नामक अप्सरा पर मोहित हो गया। उसने रंभा को अंकशयनी बनने पर मजबूर किया। अप्सरा रंभा ने बचने की बहुत कोशिश की। रम्भा ने कहा कि ‘क्षमा कीजिए किंतु आप मेरे लिए पिता-तुल्य हैं! रंभा ने बताया कि वह कुबेर के पुत्र नल कुबेर की पत्नी हैं। कुबेर आपके भाई हैं इस नाते मैं आपकी पुत्रवधू हूं। लेकिन रावण ने तर्क को स्वीकार नहीं किया और रंभा के साथ बल प्रयोग कर बैठा।
एवमुक्त्वा स तां रक्षो निवेश्य च शिलातले ।
कामभोगाभिसंसक्तो मैथुनायोपचक्रमे ।। ७.२६.४२ ।। (उत्तरकाण्ड)
वाल्मीकी रामायण के इस श्लोक के मुताबिक राक्षसराज रावण ने रम्भा को बलपूर्वक शिला पर बिठाया और फिर कामभोग में लीन होकर बलपूवक उसके साथ समागम किया। रम्भा के पुष्पहार टूट गए, उसके द्वारा धारण किए गए आभूषण बिखर गए और व्याकुलता से वह पीड़ित हो उठी। रावण रम्भा का बलात्कार करने के बाद उसे वहीं छोड़ दिया और निकल गया। महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि उसकी हालत ऐसी हो गई थी, जैसे किसी फूलों की लता को हवा द्वारा झकझोड़ दिया गया हो। उसका श्रृंगार अस्त-व्यस्त हो गया था और उसका शरीर काँप रहा था।
बिलखती हुई रम्भा अपने प्रेमी नलकुबेर के पैरों पर गिर पड़ी थी। रम्भा ने नलकुबेर को बताया कि रावण स्वर्ग जीतने के लिए भारी संख्या में सैन्यबल लेकर आया है और इसी दौरान उसने उसका बलात्कार किया। नलकुबेर महामना थे। उनमें ब्राह्मण सी धर्मशीलता और क्षेत्रीय सी वीरता थी।
अपनी प्रेमिका के साथ हुए अत्याचार से क्रुद्ध होकर नलकुबेर ने उसी क्षण रावण को श्राप दिया कि आगे से उसने किसी भी स्त्री के साथ बलपूर्वक समागम करना चाहा तो उसके सिर के टुकड़े हो जाएँगे। अर्थात, रावण तब तक किसी स्त्री के साथ संभोग नहीं कर सकता था, जब तक वह ऐसा न चाहती हो।
यदा ह्यकामां कामार्तो धर्षयिष्यति योषितम् ।
मूर्धा तु सप्तधा तस्य शकलीभविता तदा ।। ७.२६.५७ ।।
(उत्तरकाण्ड)
वेदवती पर बुरी नजर- रावण जब पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तब उसकी नजर साधना में लीन एक सुंदर स्त्री पर पड़ी। वेदवती नामक यह स्त्री विष्णु को पति के रूप में पाने के लिए कड़ी तपस्या कर रही थी। ऐसे में रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। मना करने पर बाल पकड़कर पुष्पक तक घसीटा। तपस्विनी ने योगशक्ति के बल पर अपनी देह त्याग दी और शाप दिया कि इस कामुकता और एक स्त्री के कारण ही तुम्हारी मृत्यु होगी।
माया की माया- रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया पर भी कुदृष्टि रखी। माया के पति वैजयंतपुर के राजा शंभर थे। रावण जब शंभर राज्य गया तो माया के सौंदर्य पर मोहित हो गया। रावण से माया को बातों के जाल में फंसाने की कोशिश की। जिससे कोध्र में आए राजा शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। कुछ समय बाद शंभर राजा दशरथ से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। तब रावण ने माया को अपने साथ ले जाने की कोशिश की। माया ने पति की चिता पर सति होते हुए रावण को शाप दिया कि तुम भी युद्ध में मृत्यु के गाल में समा जाओगे।
सीता का अपमान- सीता को साध्वी वेदवती का पुनःजन्म भी माना जाता है। भगवान राम की पत्नी सीता का रावण द्वारा धोखे से हरण करना जग प्रसिद्ध है। मां सीता के हरण के कारण ही राम लंका पर चढ़ाई करते हैं। वाल्मिकी रामायण के अनुसार जब रावण सीता के पास अशोकवाटिका में विवाह प्रस्ताव लेकर गए तो मां सीता ने घास के एक तिनके का सहारा लेकर अपने सतित्व की रक्षा की और रावण को चेतावनी दी कि वे सकुशल उन्हें राम को लौटा आएं। अन्यथा राम-लखन के रूप में मृत्यु आपका बाट जोह रही है।
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