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बात बराबरी की:औरतों का काम तो बच्चे पैदा करना है, अगर उन्हें मंत्री बना दिया गया तो रसोई में दावतों का इंतजाम और पति को संतुष्ट कौन करेगा?

by Hamara Ghaziabad
September 12, 2021
in अपराध, एनसीआर, ख़बरें राज्यों से, नागरिक मुद्दे, राष्ट्रीय, विशेष रिपोर्ट, सांप्रदायिकता
बात बराबरी की:औरतों का काम तो बच्चे पैदा करना है, अगर उन्हें मंत्री बना दिया गया तो रसोई में दावतों का इंतजाम और पति को संतुष्ट कौन करेगा?
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पढ़िये दैनिक भास्कर की ये खास खबर….

किस्सा लगभग 8 दशक पुराना है। अमेरिका तब बदलाव के दौर से गुजर रहा था। सादी-सुच्ची महिलाएं आज्ञाकारिणी बेटी, पत्नी और मां थीं, वहीं कुछ बगावती लड़कियां अपनी पसंद की पोशाक और काम पर फसाद कर रही थीं। इसी दौर में वॉशिंगटन की चौड़ी सड़कों पर एक काली कार दौड़ती दिखी। इसकी ड्राइवर महिला थी। एडिथ विल्सन नाम की ये औरत अमेरिका में ड्राइविंग लाइसेंस पाने वाली पहली महिला बनी। खूब वाहवाहियां हुईं।

अमेरिका के पास एडिथ नाम का जिंदा सबूत था कि लो देखो, औरतों के मामले में मैं कितना खुला देश हूं। यहां तक सब ठीक था। बात तब बिगड़ी, जब एडिथ के पति यानी 28वें अमेरिकी राष्ट्रपति वूड्रो विल्सन की तबीयत खराब हो गई। वे महीनों कमरे में बंद रहे। सत्ता गिरने को थी कि तभी एडिथ ने प्रेसिडेंट ऑफिस संभाल लिया। अमेरिका का दिल एकदम से सिकुड़ने लगा। हल्ला मच गया कि मिस्टर विल्सन अब बेकार हैं। असल ताकत मिसेज विल्सन ने हड़प रखी है। उस दौर को पेटीकोट गवर्नमेंट कहा गया।

वाइट हाउस में एडिथ को लेकर ये पहला बवाल नहीं था। एक बार पब्लिक मीटिंग में वूड्रो विल्सन ने ऐसी स्वेटर पहन रखी थी, जो थोड़ी उधड़ी हुई थी। इस पर एडिथ को पूरे अमेरिका ने चिट्ठियां लिख डालीं कि उनका काम पति के कपड़े सिलना है, न कि पॉलिसी बुनना। अमेरिका पर इतनी लंबी-चौड़ी गाथा इसलिए कि हाल ही में तालिबान ने अपना मंत्रिमंडल तैयार किया, इसमें एक भी महिला नहीं है। उनका मतलब साफ है कि औरत का काम बच्चे पैदा करना है, और अगर उन्हें मंत्री बना भी दिया जाए तो वे काम संभाल नहीं सकेंगी।

तालिबान के मंत्री-संतरी भले ही लगातार आड़े-तिरछे बयान दे रहे हों, लेकिन उनका ये फैसला एकदम सही है। औरतें वाकई संभाल नहीं सकेंगी! कल्पना करें, अगर तालिबान ने किसी औरत को कैबिनेट में जगह दे भी दी, तब क्या! मीटिंग चलती होगी और महिला नेता का ध्यान इस पर होगा कि कहीं, उसके शरीर का कोई हिस्सा झांकता न दिखे। लोग रेप या जबरन शादी पर बहस कर रहे होंगे, इधर कमउम्र शादी झेल चुकी मंत्री महोदया अपनी टेबल पर नाखून ठुकठुका रही होंगी। गले की नस को गुब्बारा बनाकर चीखते मंत्रियों के बीच वो चुपचाप बैठी होगी। क्यों? क्योंकि तालिबान का कानून उसे इजाजत नहीं देता कि गैरमर्द उसकी आवाज सुनें।

महिलाओं को ताकतवर पद देने के मामले में कमोबेश सारे ही मुल्क तालिबानी सोच के हैं। औरत का काम बच्चों को इस दुनिया में लाना है। इसके बाद उन्हें पढ़ाना-लिखाना, राशन-भाजियां खरीदना, रसोई में बड़ी-छोटी दावतों का इंतजाम, और पति को संतुष्ट रखना है। बीच-बीच में वे इंटरवल की तरह ब्लॉग लिख सकती हैं, चाहें तो पतली-चमकीली किताबें छपवा सकती हैं, या फिर किसी तड़क-भड़क वाली जगह सैर-सपाटा कर सकती हैं।

तब भी दिल न भरे तो क्रांति और बराबरी के नारे भी लगा सकती हैं, लेकिन इससे आगे नहीं। नारे लगाकर घर लौटो और रोते बच्चे को संभालते हुए रोटियां थापो। कहीं, कोई औरत बगावत पर तुल ही गई तो उसे बांधने के लिए प्यार और बच्चे की जंजीर तो है ही। राजनेता बनने में क्या धरा है, जब तुम्हारा बच्चा ही तुम्हें डॉक्टर, बावर्ची, थेरेपिस्ट, प्लेयर और टीचर- सारे तजुर्बे एक साथ ही दे रहा है।

महिलाएं चुनाव में खड़ी हों तो वोटरों के सोचने का ढंग बदल जाता है। वे सबसे पहले तो ये देखते हैं कि महिला नेता बाल-बच्चेदार है या नहीं। अगर नहीं है तो वह किसी काम की नहीं। ऐसी नेता खुद तो अकेली है, पूरे देश की औरतों को घरतोड़ू बना देगी। वहीं, अगर वो खुशहाल शादीशुदा जिंदगी में हो तब पेंच कहीं और जा अटकता है। वोटर परेशान रहने लगते हैं कि औरत नेतागिरी करेगी तो बच्चों का होमवर्क कौन कराएगा।

ये सारे तर्क हमारे नहीं बल्कि अमेरिकन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट से लिए हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं अगर राष्ट्रपति पद की दावेदारी करें तो वोटर को देश से ज्यादा, उसके टूटते परिवार की चिंता हो जाती है। वो उधेड़बुन में रहता है कि अगर औरत नेतागिरी करेगी तो बच्चे कौन संभालेगा या फिर सुपर बाजार से ताजा फल-सब्जियां कौन लाएगा। तो इस तरह से राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री पद की शपथ लेती महिला सीधे पंसारी की दुकान पहुंच जाती है।

90 के दशक की अमेरिकी नेता पेट्रिशिया श्रोडर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कैसे मीटिंग के बीच उनके साथी नेता पूछ लेते कि जब वे यहां हैं तो बच्चों को कौन संभाल रहा होगा! या फिर क्या वे क्लास में पिछड़ नहीं जाएंगे! पेट्रिशिया तब गुनगुनाती-सी आवाज में कुछ भी जवाब देतीं और घर जाकर तसल्ली से रोया करती थीं।

अब दौर थोड़ा सा बदला है। औरतें अपने पति के लीडर बनने के सपने में रंग भर रही हैं। चुनाव से पहले ढेर की ढेर औरतें गली-मोहल्लों में नमस्ते करती दिखती हैं। सिर पर आंचल होता है, माथे पर बड़ी-सी बिंदी और साथ में एक वाक्य- मेरे पति को वोट दीजिएगा। कहीं-कहीं बिंदीदार औरतें खुद अपने लिए भी वोट मांगती दिख जाएंगी, लेकिन परिवार और बाल-बच्चेदार होना उनके लिए भी अनिवार्य योग्यता है।

इसी साल की शुरुआत में एक तस्वीर वायरल हुई थी। इसमें अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस अपने पति डगलस एमहॉफ के गले लगी हुई हैं। साथ में लिखा है- मुझे तुम पर गर्व है। ये गर्व, डगलस को अपनी पत्नी कमला पर है। अमेरिका के पहले सेकेंड जेंटलमैन बनने के बाद उन्होंने ये पोस्ट की थी। हमारी राजनीति फिलहाल अपने डगलस को तलाश रही है। कमलाएं तो खूब मिल जाएंगी। बारिश में पकौड़ों के साथ ताजा अखबार परोसती और उचटती नजर से उसके पहले पन्ने को पढ़ती हुई। या फिर बच्चों का होमवर्क कराते हुए इतिहास-राजनीति विज्ञान को किसी कहानी की तरह सुनाती हुई। साभार-दैनिक भास्कर

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