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छोटे से कमरे में जहां भी जगह है वहां कुछ न कुछ रखा है। गुड़िया के पिता सुनहरे मोतियों वाली सफेद जूतियां दिखाते हुए सिसकने लगते हैं। कहते हैं कि ‘उसने बहुत खोजकर खरीदी थीं। वो हमारी इकलौती बेटी थी।’ रो-रो थक गई आखों से एकटक देखती गुड़िया की मां सविता एकाएक फफक पड़ती हैं और सुनहरे मोतियों वाली जूतियां अपने सीने से लगा लेती हैं।
दिल्ली के ओल्ड नांगल गांव में किराए के एक छोटे से कमरे में रहने वाले सुनील और सविता (बदला हुआ नाम) उस गुड़िया के मां-बाप हैं जो अब दुनिया में नहीं है। 9 साल की बच्ची गुड़िया की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। 1 अगस्त को हुई इस वारदात में आरोपियों ने हत्या के बाद बच्ची की लाश को भी जला दिया।
दलित परिवार की बच्ची के साथ इस वारदात के तूल पकड़ने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पीड़ित परिवार से मिल कर संवेदना जता चुके हैं। वारदात का मुख्य आरोपी ओल्ड कैंट के नांगल श्मशान स्थित मंदिर का पुजारी है। पुलिस ने पुजारी समेत चार आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, लेकिन, बच्ची को इंसाफ दिलाने के लिए नांगल गांव के लोगों का प्रदर्शन जारी है।
दिल्ली कैंट के नांगल गांव में किराए के एक छोटे कमरे में रहने वाले सविता और सुनील तड़के उठकर कबाड़ बीनते और फिर दिन में पास यहीं पीर बाबा के मजार पर साफ-सफाई का कम कर देते हैं। जिसके बदले मजार पर आने वाले लोग उन्हें कुछ न कुछ दे देते हैं। इस गुरबत भरी जिंदगी में उनके लिए खुशी के नाम पर सिर्फ उनकी बेटी गुड़िया ही थी।
सविता कहती हैं, ‘मुझे अपनी बेटी को लेकर डर लगा रहता था कि कहीं कोई उसके साथ कुछ गलत न कर दे। मैं लड़कियों के साथ हुई घटनाओं की खबरें सुनकर बहुत डरती थी। इसी डर से मैंने अपनी बेटी को स्कूल भी नहीं भेजा।’
लेकिन, सविता का अपनी बेटी को लेकर यह डर हकीकत बन गया। एक अगस्त को दिल्ली कैंट के श्मशान में उनकी 9 साल की बेटी को रेप के बाद जबरदस्ती जला दिया गया।
वारदात वाले दिन क्या हुआ था?
सविता बताती हैं, ‘उस दिन इतवार था। साढ़े पांच बजे तक मेरी बेटी बिल्कुल ठीक थी। उसके पापा सब्जी लेने गए थे। मैं मजार पर चल रहे भंडारे से घर आ गई थी। तभी श्मशान से पुजारी ने आकर बताया कि तेरी बेटी को करंट लगा और वह खत्म हो गई।’
गुड़िया श्मशान कैसे चली गई? यह पूछने पर मां सविता बताती हैं, ‘मेरी बेटी वहां रोज पानी लेने के लिए जाती थी।’ फिर रोते हुए कहने लगीं, ‘पहले तो कभी उसे करंट नहीं लगा, फिर उसी दिन कैसे करंट लग गया। श्मशान पहुंचने पर मैंने देखा कि मेरी बेटी की लाश को जलाने की कोशिश की जा रही है।’
सविता कहती हैं, ‘मैंने पंडित से कहा कि मेरी बेटी की लाश ही मुझे दे दो तो उन्होंने कहा कि तू मजार पर भीख मांगती है, तेरे पास अंतिम संस्कार के पैसे होंगे। तू कैसे करेगी? पुलिस आएगी तो तेरी बेटी की चीरफाड़ होगी।’
यह सब बताते सविता फफक पड़ती हैं। फिर खुद को संभालते हुए बताती हैं, ‘उसकी आंखें बंद थीं, बाल खुले थे, नाक से खून बह रहा था, हाथ में चोट लगी थी। होंठ काले पड़ गए थे और बंद थे। मैं उनसे अपनी बेटी की लाश देने की गुहार लगाती रही। लेकिन, उन्होंने उसे जबरदस्ती जला दिया। मैंने चिता पर पानी डालने की कोशिश की। लाश बाहर खींचने की कोशिश करने लगी तो मुझे धकेल दिया गया। चिता पर मेरी बच्ची की लाश उन्होंने उल्टी डाल रखी थी ताकि सबसे पहले उसके प्राइवेट पार्ट जल जाएं।’
सविता की सहेली मीनू बताती हैं, ‘जब सविता श्मशान से बाहर निकलीं तो बिल्कुल बदहवास थीं। बस बार-बार यही कह रही थीं कि मेरी गुड़िया चली गई, उसे फूंक दिया।’
सविता और उसकी सहेली मीनू के शोर मचाने पर लोग इकट्ठा हुए। भीड़ श्मशान का ताला तोड़कर वहां दाखिल हुई। तब तक गुड़िया की लाश का अधिकतर हिस्सा जल चुका था।
मीनू सिसकते हुए बताती हैं, ‘पुजारी ने सविता को धमकाया था कि चुपचाप जाना, रोते हुए मत जाना, किसी को बताना मत। वो तो उसने हमें बता दिया और लोग जैसे तैसे श्मशान में घुस गए। नहीं तो कुछ पता ही नहीं चल पाता।’
वारदात स्थल पर सन्नाटा
सविता के घर और आसपास के लोगों से बात कर हम श्मशान स्थल पर पहुंचते हैं। जहां यह वरदात हुई है। वहां सन्नाटा पसरा हुआ है। बाहर पुलिस का सख्त पहरा है। जिस चिता पर गुड़िया को जबरदस्ती जलाया गया था, वह अब क्राइम सीन है। पुलिस ने उसे पीली पट्टियों से घेर लिया है।
जिस वॉटर कूलर से करंट लगने का दावा पुजारी ने किया था वो अब हटा लिया गया है। श्मशान में कुछ कमरे भी बने हैं। जिनमें सामान बिखरा पड़ा है। बरामदे में कई कप रखे हुए हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि उनमें चाय पी गई होगी।
श्मशान के पुजारी पर मां को था भरोसा
सविता अपनी बेटी को अपने आपसे अलग नहीं होने देती थीं, लेकिन, श्मशान के पुजारी पर उन्होंने भरोसा कर लिया था। बच्ची वहां लगे वॉटर कूलर से पानी लेने जाती थी। कभी-कभी वो पुजारी को चाय बनाकर भी दे दिया करती थी। सविता कभी-कभी श्मशान में बने कमरों की साफ-सफाई कर देती थी। कई बार पुजारी उन्हें खाने का कुछ सामान भी दे देता था।
पांच दिन से जारी है प्रदर्शन
गुड़िया की मौत के बाद स्थानीय लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। नांगल गांव के लोगों ने मुख्य गेट के बाहर सफेद पंडाल लगवा दिया है, जहां लोग गुड़िया को इंसाफ दिलाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली के कोने-कोने से लोग यहां आ रहे हैं। बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पीड़ित परिवार से मुलाकात की थी।
सामाजिक कार्यकर्ता टीना वर्मा भी यहां आई हुईं थीं। वे कहती हैं, ‘मैं हर गुरुवार को यहां पीर बाबा के मंदिर पर आती थी। ये लड़की मुस्कुराती हुई दिखती थी। बड़ी मासूम सी बच्ची थी, उसके साथ ऐसी दरिंदगी की गई। ये सब कब रुकेगा?’
33 साल के रोहित का जन्म यहीं नांगल गांव में हुआ है। वो कहते हैं कि जैसे ही गुड़िया के बारे में पता चला लोग इकट्ठा हो गए। पूरा नांगल गांव इस बच्ची के लिए खड़ा हो गया।
प्रदर्शन में 15-16 साल की नांगल गांव की दो लड़कियां भी आईं हैं। वे गुड़िया को याद करती हैं कि हमेशा हंसते हुए मिलती थी और तुरंत नमस्ते दीदी कहती थी। जिस तरह लोग मिलकर इस मामले में सामने आए हैं, उससे उम्मीद है कि इंसाफ मिलेगा।
पुलिस ने अब तक क्या किया है?
पुलिस ने श्मशान के 55 वर्षीय पुजारी और उसके तीन साथियों को गिरफ्तार किया है। चारों अभियुक्तों पर रेप, हत्या और धमकाने से जुड़ी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। इसके अलावा पोक्सो एक्ट और SC-ST एक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया है।
मामले की जांच अब दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के हाथ में है। चारों अभियुक्तों ने जो कपड़े पहने थे, उनसे DNA सैंपल ले लिए गए हैं। जलने से बचे बच्ची के शरीर के बचे हुए हिस्से की जांच करने वाले तीन सदस्यीय मेडिकल बोर्ड ने पुलिस को बताया है कि जांच के लिए सिर्फ शव के जले हुए अवशेष थे, जिनके आधार पर किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है।
इस घटना के एक आरोपी लक्ष्मी नारायण के भाई सुनील कहते हैं, ‘मेरे भाई का इस मामले से कोई संबंध नहीं हैं। वो श्मशान स्थल पर था, इसलिए उसे वहां से पकड़ लिया गया। हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। जो भी होगा सही होगा।’
दूसरी ओर,स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि श्मशान स्थल पर नशेड़ियों का जमावड़ा लगता है। लक्ष्मी नारायण भी वहां नशा करने जाता था।
दिल्ली कैंट की एक मुख्य सड़क को अब बंद कर दिया गया है। यहां चप्पे-चप्पे पर दिल्ली पुलिस और केंद्रीय बलों के जवान तैनात हैं। प्रदर्शन स्थल पर दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से लोग पहुंच रहे हैं। किराए के कमरे में रहने और कूड़ा बीनने वाले एक गरीब दलित परिवार के पीछे पूरी दिल्ली खड़ी हो गई है।
रात के दस बजते-बजते प्रदर्शन स्थल से लोग छंटने लगे हैं, लेकिन वहां लगी मोमबत्तियां अभी भी जल रही हैं। एक बच्ची हमें मोबाइल में गुड़िया की तस्वीर दिखाते हुए कहती है, ‘देखो दीदी, वो हमेशा हंसती ही रहती थी।’
गुड़िया के माता-पिता सविता और सुनील भी रात बढ़ने पर प्रदर्शन स्थल से उठकर सहमे कदमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगते हैं। मैं भी उनके पीछे-पीछे हो लेती हूं। उनका पूरा कमरा अपनी बच्ची गुड़िया की यादों से भरा है।
एक स्टील की गुल्लक कुछ दिन पहले ही गुड़िया ने ये कहते हुए खरीदी थी कि अब मैं अपने लिए पैसे जोड़ूंगी। सविता हमें दिखाने के लिए गुल्लक को उठाती हैं तो उसमें भरे सिक्के खनखनाने लगते हैं। लेकिन, सविता और सुनील के चेहरे बताते हैं कि इन सिक्कों खनक अब उन्हें चुभ रही है।
रात हो रही है, सन्नाटा गहराने लगा है। मैं वहां से निकलती हूं, लेकिन इसी सन्नाटे में प्रदर्शन स्थल की तरफ से आ रही आवाजें गूंज रही हैं, ‘गुड़िया को इंसाफ दो, दरिंदों को फांसी दो।’ साभार-दैनिक भास्कर
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