पढ़िये दैनिक भास्कर की ये खास खबर….
भारत में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा रिपोर्ट हुए मामलों से 10 गुना ज्यादा हो सकता है। कोरोना मॉडर्न इंडिया के दौर की सबसे भयानक त्रासदी के तौर पर सामने आ सकता है। अब तक की सबसे बड़ी रिसर्च रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। मंगलवार को रिलीज हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कोरोना से 30 लाख से 49 लाख मौतें जून 2021 तक हो चुकी हैं।
खास बात ये हैं कि इस रिपोर्ट को पब्लिश करने वालों में अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम भी शामिल हैं। सुब्रमण्यम भारत सरकार के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर रह चुके हैं। उनके अलावा दो और रिसर्चर इस शोध में शामिल थे। तीनों ने वॉशिंगटन बेस्ड सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर ये रिसर्च की है।
भारत के बंटवारे के वक्त से ज्यादा मौतें कोरोना काल में हुईं
रिसर्च में कहा गया है कि 1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ, उस वक्त करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। जब देश में अलग-अलग हिंदू मुस्लिम दंगे हुए, लेकिन कोरोना आजाद भारत की सबसे जानलेवा त्रासदी साबित हुआ है।
किस आधार पर किया गया ये दावा?
भारत में हुई कोरोना से मौतों के लिए तीन कैलकुलेशन मैथड का इस्तेमाल किया है। इनमें जन्म और मौतों का रिकॉर्ड रखने वाले सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम का डेटा, भारत में वायरस के प्रसार को जानने के लिए हुए ब्लड टेस्ट और दुनियाभर में कोरोना से हो रही मौतों की दर के आधार पर और कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (CPHS) का डेटा इस्तेमाल किया गया है।
रिसर्च करने वालों ने हर मैथड की कमियों को भी बताया है। जैसे- कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे में मौत के कारण का जिक्र नहीं होता है। जबकि रिसर्च करने वालों ने हर मौत के कारण का पता लगाने की कोशिश की। इसके साथ ही कोरोना से पहले हुई मौतों के डेटा का भी एनालिसिस किया गया है।
क्या सिर्फ भारत में ही कोरोना से हुई मौतों की संख्या कम बताई गई है?
ऐसा नहीं है। दुनिया के बाकी देशों में भी कोरोना से हुई मौतों की संख्या रिपोर्ट हुई मौतों से ज्यादा हैं, लेकिन भारत में वास्तविक आंकड़े और बताई गई संख्या के बीच अंतर ज्यादा है। इसका एक बड़ा कारण देश की 139 करोड़ की आबादी भी है। .
इस रिपोर्ट पर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
न्यूज एजेंसी AP ने इस रिपोर्ट के बारे में वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर जैकब जॉन से बात की। डॉक्टर जॉन ने कहा कि इस रिपोर्ट में देश के कमजोर हेल्थ सिस्टम की वजह से कोरोना के भयानक असर के बारे में कम ध्यान दिया गया है।
वे कहते हैं कि ये एनालिसिस उन खोजी पत्रकारों की रिपोर्ट को दोहराती है जो देश में कम मौतें रिपोर्ट होने के मामले लेकर सामने आए थे।
क्या पहली लहर को लेकर भी रिपोर्ट में कुछ कहा गया है?
रिपोर्ट का अनुमान है कि पिछले साल आई कोरोना की पहली लहर ने करीब 20 लाख भारतीयों की जान ली थी। रिपोर्ट कहती है कि रियल टाइम में इन मौतों को रिपोर्ट नहीं किए जाने से दूसरी लहर भयानक हो गई। वैसे भी पिछले कुछ महीनों से कई राज्यों ने कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ाई है। इनमें कई ऐसे भी मामले हैं जो पहले के हैं, लेकिन रिपोर्ट नहीं हुए।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये नई जानकारी भारत में कोरोना के प्रसार को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगी। इसके साथ ही इस रिपोर्ट के आने के बाद ये कहा जा सकता है कि कोरोना से हुई मौतों की संख्या को कम करके बताया जाता रहा है। नया डेटा ये भी बताता है कि वायरस केवल शहरों तक ही सीमित नहीं रहा है। इसने गांवों में भी बड़े पैमाने पर असर डाला है। हालांकि ये सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि क्या ये मौतें रोकी जा सकती थीं?
मौतों की संख्या को लेकर क्या पहले भी इस तरह की कोई रिपोर्ट आई है?
दो महीने पहले द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत में मौत के सही आंकड़ों का अनुमान लगाया था। उसने इसके लिए एक दर्जन से ज्यादा एक्सपर्ट की मदद ली थी। इन एक्सपर्ट ने भारत में महामारी को तीन स्थितियों में बांटा- सामान्य स्थिति, खराब स्थिति, बेहद खराब स्थिति। बेहद खराब स्थिति वाली रिपोर्ट में संक्रमण के वास्तविक आंकड़ों से 26 गुना ज्यादा संक्रमण का अनुमान लगाया गया था।
संक्रमण से मृत्यु की दर का अनुमान भी 0.60% रखा गया। ये अनुमान कोरोना की दूसरी लहर और देश की चरमरा चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था को देखते हुए लगाया गया है। इस स्थिति में 70 करोड़ लोगों के संक्रमित होने और 42 लाख लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था। हालांकि सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) का एक अनुमान कहता है कि दुनिया में कोरोना की वजह से मौत के आंकड़े आधिकारिक संख्या से 2 से 3 गुना ज्यादा हो सकते हैं।
सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं?
सरकार के आंकड़ों की बात करें तो देश में अब तक कोरोना से 4 लाख 18 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। वहीं, कुल 3 करोड़ 12 लाख से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इस वक्त भी रोज 40 हजार के आसपास मामले आ रहे हैं। वहीं, हर रोज 500 के करीब मौतें हो रही हैं।
मौतों की अंडर रिपोर्टिंग की बात क्या सरकारों ने भी मानी है?
कोरोना से हुई मौतें अंडर रिपोर्ट होती रही हैं। इसकी वजह समय-समय पर राज्य सरकारें अपने डेटा को अपडेट भी करती रही हैं। पिछले साल 16 मई को महाराष्ट्र और दिल्ली ने मौत के पुराने आंकड़े जोड़े थे। इस तरह की एक्सरसाइज करने वाले ये पहले राज्य थे।
महाराष्ट्र ने 16 मई 2020 को 1409 मौतें रिपोर्ट की थीं। इनमें से सिर्फ 81 मौतें 16 मई की थीं, बाकी 1328 पुरानी मौतों को जोड़ा गया था। जो पहले रिपोर्ट नहीं हुई थीं। वहीं, दिल्ली में 16 मई 2020 को 437 मौतें रिपोर्ट हुई थीं। इनमें से 344 मौतें लेट रिपोर्ट की गई थीं।
महाराष्ट्र मई 2020 से लगातार पुरानी मौतों को जोड़ता रहा है। हर 15 से 30 दिन में पुरानी मौतों को अपडेट किया जाता है। जैसे- नौ जून को जब देश में पहली बार 6 हजार से ज्यादा मौतें रिपोर्ट की गईं, उस दिन भी महाराष्ट्र में 661 मौतों में से 400 मौतें ऐसी थीं जो पिछले एक हफ्ते से पहले हुईं, लेकिन रिपोर्ट नहीं की जा सकी थीं। 261 बाकी मौतों में भी सिर्फ 170 मौतें पिछले 48 घंटे के दौरान हुईं। इनमें से 91 पिछले एक हफ्ते के दौरान हुई मौतें थीं, जो पहले रिपोर्ट नहीं हुईं।
उस दिन अकेले बिहार में कुल 3,951 मौतें दर्ज की गईं। ये मौतें पहले रिपोर्ट नहीं हुई थीं। हालांकि ये मौतें कब हुईं ये नहीं बताया गया। बिहार में पहली बार राज्य सरकार ने मौतों की संख्या को दुरुस्त करने की कोशिश की थी।
मंगलवार को भी देश में 3,998 मौतें रिपोर्ट की गईं। इसमें 3,656 अकेले महाराष्ट्र में रिपोर्ट हुईं। इनमें से यहां बीते दिन कोरोना के 147 मरीजों की ही मौत हुई। जबकि 3,509 पुरानी मौतों को अपडेट किया गया। साभार-दैनिक भास्कर
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