दिल्ली की कनिका कूड़े-कचरे के ढेर से सालाना 50 लाख रुपए का बिजनेस कर रही हैं, 200 से ज्यादा गरीबों को रोजगार से भी जोड़ा

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दिल्ली ।  प्लास्टिक वेस्ट हम सबके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इससे पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचता ही है साथ ही कूड़े के ढेर पर कई जिंदगियां भी दम तोड़ देती हैं। कई मवेशी कचरा खाकर बीमार हो जाते हैं, उनकी जान चली जाती है। कई बार तो झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे भी इसका शिकार हो जाते हैं। इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए कुछ लोग वेस्ट मैनेजमेंट पर काम कर रहे हैं। दिल्ली की रहने वाली कनिका आहूजा भी उनमें से एक हैं, जो न सिर्फ कचरे की समस्या से छुटकारा दिलाने की पहल कर रही हैं, बल्कि इससे कमाई भी कर रही हैं। उन्होंने 200 से ज्यादा लोगों को रोजगार से भी जोड़ा है।

30 साल की कनिका दिल्ली में पली-बढ़ीं। उनके पिता शलभ आहूजा और मां अनिता आहूजा कंजर्वेशन इंडिया के बैनर तले पहले से वेस्ट मैनेजमेंट के काम से जुड़े रहे हैं। वे 20 साल से ज्यादा वक्त से इस फील्ड में काम कर रहे हैं। हालांकि कॉमर्शियल लेवल पर उनका फोकस कम रहा। दिल्ली यूनिवर्सिटी से MBA करने के बाद कनिका ने एक कंपनी में करीब 6 महीने काम किया। इसके बाद वे ऑस्ट्रेलियन हाईकमीशन के साथ जुड़ गईं और कुछ साल काम किया।

नौकरी छोड़कर प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करना शुरू किया

साल 2017 में उन्होंने तय किया कि वे भी प्लास्टिक मैनेजमेंट के फील्ड में करियर शुरू करेंगी और अपने माता-पिता के प्लान को एक बड़े कॉमर्शियल प्लेटफॉर्म के रूप में तब्दील करेंगी। कनिका बताती हैं कि कचरा बीनने वाले लोगों की जिंदगी काफी चिंताजनक है। दिनभर मेहनत के बाद भी उनकी इतनी कमाई नहीं हो पाती कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें। इसको देखते हुए मैंने तय किया कि कुछ ऐसा काम शुरू किया जाए जिससे हमें प्लास्टिक वेस्ट से भी मुक्ति मिले और स्लम एरिया में रहने वालों को भी कुछ आमदनी हासिल हो सके।

साल 2017 में कनिका ने लिफाफा नाम से खुद की कंपनी शुरू की। इसमें उन्होंने प्लास्टिक वेस्ट से फैशन से जुड़ी चीजें बनाने का काम शुरू किया। उनके पिता शलभ आहूजा ने मशीनरी और बाकी इक्विपमेंट की व्यवस्था की जबकि उनकी मां अनिता आहूजा ने मजदूरों को ट्रेनिंग देने का काम संभाल लिया।

जैसे-जैसे डिमांड बढ़ी, बिजनेस का दायरा बढ़ाते गए

इसके बाद कनिका ने कचरे से बैग, पर्स, फैब्रिक प्रोडक्ट और हैंडीक्राफ्ट बनाना शुरू किया। जल्द ही उन्हें मुंबई में आयोजित लैकमी फैशन वीक में पार्टिसिपेट करने का मौका मिला। यहां उनके प्रोडक्ट की तारीफ हुई और लोगों का बढ़िया रिस्पॉन्स मिला। इससे उनके ब्रांड को पहचान मिली।

कनिका बताती हैं कि शुरुआत में पैसा कमाना हमारा मोटिव नहीं था, आज भी नहीं है। लेकिन जब लोगों का रिस्पॉन्स मिलने लगा, हमारे प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ने लगी तो कमाई भी बढ़िया होने लगी और हम बिजनेस का दायरा भी बढ़ाते गए। हम लोगों की डिमांड के मुताबिक नए-नए प्रोडक्ट तैयार करते गए। अभी हमारे पास दो दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट हैं। इसमें डेली यूज से लेकर फैशन से जुड़े अधिकतर प्रोडक्ट शामिल हैं।

मार्केटिंग को लेकर कनिका बताती हैं कि हम फिलहाल ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही प्लेटफॉर्म से अपने सामान बेच रहे हैं। कई शहरों में हमारे रिटेलर्स हैं तो कई लोग होलसेल में भी हमसे प्रोडक्ट खरीदते हैं। हम सोशल मीडिया के साथ ही अपनी वेबसाइट और फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसे प्लेटफॉर्म से भी देशभर में मार्केटिंग करते हैं।

अब तक कनिका 360 टन से ज्यादा प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल्ड कर चुकी हैं। वे हर महीने 2 हजार बैग तैयार करती हैं। हालांकि कोरोना के चलते फिलहाल थोड़ी रफ्तार कम हुई है, क्योंकि मैनपावर के साथ ही रॉ मटेरियल को लेकर भी अभी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

कैसे तैयार करती हैं प्लास्टिक वेस्ट से उपयोगी सामान
कनिका बताती हैं कि हमारे साथ कुछ वर्कर्स और बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ी हुई हैं। स्लम एरिया में रहने वाले युवा और कचरा बीनने वाले लोग भी हमसे जुड़े हैं। वे कचरा चुनकर हमारी यूनिट में लाते हैं। यहां प्लास्टिक वेस्ट को रंग और साइज के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है। उसके बाद उनकी सफाई होती है। फिर प्लास्टिक को धूप में सुखाया जाता है।

इसके बाद जरूरत के मुताबिक कलर मिक्सिंग का काम होता है। कई प्लास्टिक को मिलाकर एक साथ मशीन में हीट किया जाता है और उन्हें लिक्विड में कनवर्ट किया जाता है। इस लिक्विड से अलग-अलग प्रोडक्ट बनते हैं। फिर प्रोसेसिंग और डिजाइनिंग का काम होता है।

प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट में करियर का कितना स्कोप है?

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सालाना 150 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60% हिस्सा भारत डालता है। जबकि अभी करीब एक चौथाई ही प्लास्टिक वेस्ट को रिसाइकिल्ड किया जा रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अभियान चला रही हैं। कई शहरों में प्लास्टिक वेस्ट कलेक्शन सेंटर भी बने हैं। जहां लोगों को कचरे के बदले पैसे मिलते हैं। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) के तहत देश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है।

अगर कोई इस सेक्टर में करियर बनाना चाहता है तो उसे सबसे पहले प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट को समझना होगा। उसकी प्रोसेस को समझना होगा। इसको लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार ट्रेनिंग कोर्स भी करवाती हैं। कई प्राइवेट संस्थान भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इस सेक्टर में काम करने वाले कई इंडिविजुअल भी इसकी ट्रेंनिग देते हैं।

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महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले प्रदीप जाधव एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनका बचपन तंगहाली में गुजरा। पिता खेती करके परिवार का खर्च चलाते थे। 10वीं के बाद उन्होंने ITI की पढ़ाई की और फिर तीन साल का डिप्लोमा किया। इसके बाद उन्होंने वायर बनाने वाली एक कंपनी में कुछ साल काम किया। कुछ पैसे इकट्ठे हो गए तो उन्होंने 2016 में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।

इसके बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में उनकी नौकरी लग गई। कुछ साल उन्होंने यहां काम किया। फिर 2018 इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसाइकल (पुरानी या बेकार चीजों की मदद से क्रिएटिव और बेहतर प्रोडक्ट बनाना) करके फर्नीचर तैयार करने का बिजनेस शुरू किया। आज उनकी कंपनी का टर्नओवर एक करोड़ रुपए है। साभार  दैनिक भास्कर

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