दिल्ली के रहने वाले सुनील वशिष्ठ, अत्यंत गरीब परिवार में पले-बढ़े। पिता जी छोटा-मोटा काम करते थे, लंबा चौड़ा परिवार, खर्च अधिक और आमदनी न के बराबर। मजबूरन 12वीं के बाद सुनील को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। कुछ वक्त के लिए उन्होंने दूध की दुकान पर नौकरी की, प्राइवेट कंपनियों में काम किया, पिज्जा डिलीवरी बॉय की जॉब की। जब सैलरी और पोजीशन अच्छी हो गई तो नौकरी से निकाल दिया गया। एक ही झटके में वे बेरोजगार हो गए।
इसके बाद सुनील ने तय किया कि वे अब नौकरी न करके खुद का कोई काम करेंगे। उन्होंने दिल्ली में एक फूड स्टॉल लगाना शुरू किया, लेकिन उसे भी बंद करा दिया गया। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और कर्ज लेकर केक की दुकान खोली। आज दिल्ली, नोएडा, बेंगलुरु सहित देश के 15 शहरों में उनका कारोबार है। हर साल वे करोड़ों रुपए का बिजनेस कर रहे हैं। 100 से ज्यादा लोगों को उन्होंने नौकरी दी है।
10वीं के बाद करने लगे थे नौकरी
सुनील कहते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद मैं आगे पढ़ना चाहता था, लेकिन पिता जी ने मना कर दिया। उन्होंने साफ कह दिया कि अब मुझे खुद का खर्च निकालना होगा, उनकी तरफ से पैसे नहीं मिलेंगे। सुनील के लिए यह सेटबैक तो था, लेकिन उन्होंने कोशिश जारी रखी और 12वीं में दाखिला ले लिया।
इसके बाद वे दूध की दुकान में 200 रुपए महीने की तनख्वाह पर पार्ट टाइम जॉब करने लगे। इस तरह उनकी पढ़ाई का और खुद का खर्च निकलने लगा। 12वीं की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने जैसे तैसे करके ग्रेजुएशन में दाखिला तो ले लिया, लेकिन पैसों की कमी के चलते उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
दो बार रिजेक्ट हुए, फिर मिली पिज्जा डिलीवरी बॉय की जॉब
पढ़ाई छोड़ने के बाद सुनील ने एक प्राइवेट कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। कुछ साल काम करने के बाद उन्होंने पिज्जा बनाने वाली एक कंपनी में नौकरी के लिए अप्लाई किया, लेकिन कम पढ़े लिखे होने और अंग्रेजी नहीं बोल पाने के चलते उन्हें दो बार रिजेक्ट होना पड़ा। तीसरे प्रयास में आखिरकार उन्हें नौकरी मिल गई।
यहां उन्हें पिज्जा डिलीवरी का काम मिला। सुनील ने खूब मेहनत की। जो भी टास्क मिला उसे तय वक्त में पूरा कर के दिया। इससे उनकी बेहतर एम्प्लॉई के रूप में गिनती होने लगी। धीरे-धीरे उनका प्रमोशन भी होते गया और वे मैनेजर की पोस्ट तक पहुंचे। करीब 5 साल तक उन्होंने यहां काम किया।
46 साल के सुनील कहते हैं कि मेरे काम से खुश होकर मुझे मैनेजर बना दिया गया। मैं पूरे डेडिकेशन के साथ काम भी कर रहा था। पोजीशन और सैलरी सब कुछ ठीक थी। इसी बीच एक दिन मेरी पत्नी की तबीयत खराब हो गई और मुझे ऑफिस से घर जाना पड़ा। अगले दिन जब मैं काम पर गया तो इसको लेकर बॉस नाराज हुए और मुझसे जबरन इस्तीफा ले लिया गया।
सड़क किनारे फूड स्टॉल लगाना शुरू किया तो लोगों ने बंद करा दिया
वे बताते हैं कि नौकरी गंवाने के बाद कुछ दिन मैं अपसेट रहा। उसके बाद तय किया कि अब और हाथ पैर नहीं मारेंगे। किसी कंपनी में काम करने की बजाय खुद का ही कुछ शुरू करेंगे। इसी सोच के साथ 2003 में सुनील ने दिल्ली में सड़क किनारे फूड स्टॉल लगाना शुरू किया। पहले ही दिन से उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिलना शुरू हो गया। धीरे-धीरे कस्टमर्स बढ़ने लगे। उन्हें लगा कि अब चीजें वापस ट्रैक पर लौट रही हैं।
लेकिन, मुश्किलें इतना जल्दी उनका साथ कहां छोड़ने वाली थीं। आसपास के दुकानदारों ने एमसीडी से शिकायत करके उनकी दुकान बंद करा दी। सुनील एक बार फिर से सड़क पर आ गए। इस बार परेशानी ज्यादा थी, क्योंकि नौकरी भी नहीं थी और बिजनेस भी बंद करना पड़ा।
इसके बाद सुनील ने तय किया कि अब वे सड़क पर स्टॉल लगाने की बजाय खुद की दुकान ही खोलेंगे, लेकिन किसकी दुकान यह बड़ा सवाल था। उन्होंने कुछ महीने रिसर्च किया। उस लोकेशन के हिसाब से एनालिसिस किया कि कौन सा बिजनेस यहां अच्छा चल सकता है। तब नोएडा में बड़ी-बड़ी कंपनियां खुल रही थीं। उन्हें लगा कि अगर केक की शॉप खोली जाए तो बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है।
केक बेचने का आइडिया सफल रहा
साल 2007-08 में उन्होंने अपने दोस्तों और परिचितों से कर्ज लेकर फ्लाइंग केक्स नाम की एक दुकान खोली। करीब एक साल तक उन्होंने बिना मुनाफे के काम किया। वे बड़ी-बड़ी कंपनियों के ऑफिस के सामने अपने दुकान के कार्ड बांटते थे ताकि कस्टमर्स को उनके बारे में पता चले।
एक दिन एक महिला अपने बेटे के जन्मदिन के लिए उनकी दुकान में आई। उस महिला को सुनील की दुकान का केक काफी पसंद आया। अगले दिन उस महिला ने सुनील को अपने ऑफिस बुलाया और अपने पूरे स्टाफ के बर्थडे सेलिब्रेशन के लिए उनसे टाइअप कर लिया। वह महिला एक बड़ी कंपनी में सीनियर पोस्ट पर थी।
सुनील के लिए यह टर्निंग पॉइंट था। उन्हें इससे पैसे तो बहुत नहीं मिले, लेकिन बिजनेस के लिहाज से उन्हें भरपूर सपोर्ट मिला। मार्केट में उनकी अच्छी पहचान बनने लगी। धीरे-धीरे दूसरी कंपनियों से भी उन्हें ऑर्डर मिलने लगे। इस तरह उनका कारोबार बढ़ने लगा। कस्टमर्स की डिमांड के मुताबिक वे नए-नए फ्लेवर लॉन्च करने लगे।
फिलहाल सुनील के पास 30 से ज्यादा फ्लेवर के केक हैं। दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, बेंगलुरु, समस्तीपुर, कोलकाता सहित देश के 15 शहरों में उनकी दुकान है। जहां 100 से अधिक लोग काम करते हैं। वे सोशल मीडिया और रिटेलरशिप के जरिए मार्केटिंग करते हैं। कई लोगों को उन्होंने फ्रैंचाइजी भी दे रखी है। जल्द ही वे देश के दूसरे शहरों में भी अपना आउटलेट शुरू करेंगे। केक के साथ, पिज्जा, बर्गर और सैंडविच लॉन्च करने की भी वे प्लानिंग कर रहे हैं।
फिलहाल सुनील के पास 30 से ज्यादा फ्लेवर के केक हैं। वे ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों ही मोड में मार्केटिंग कर रहे हैं। साभार-दैनिक भास्कर
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