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तारीख़ थी पांच मई. समय रात के तकरीबन 12.30 बज रहे थे. पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर के एक गांव में रहने वाली बुज़ुर्ग महिला अपने नाती के साथ घर पर अकेली थीं.
अकेली इसलिए क्योंकि उन्हें आशंका थी कि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कार्यकर्ता उनके दामाद को मार देंगे, बेटी के साथ दुर्व्यवहार करेंगे या उनके घर में तोड़फोड़ करेंगे. अपने पति को कुछ साल पहले खो चुकीं ये महिला इस बात से अनजान थीं कि जिसके बारे में सोचकर वो अपनी बेटी के लिए डर रही हैं, वो उनके साथ भी हो सकता है.
इस पूरी घटना के बारे में इस महिला के दामाद ने वकील मोनिका अरोड़ा से बात की.
दिल्ली हाई कोर्ट में भारत सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा उस पांच महिलाओं की फ़ैक्ट चेक टीम की सदस्य हैं जो पश्चिम बंगाल में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा और बलात्कार की घटनाओं की पड़ताल कर रही है.
वो बताती हैं, “ये पड़ताल हम पीड़ित महिलाओं या उनके परिवार के लोगों से फ़ोन पर बात करके या जहां संभव हो वीडियो रिकॉर्डिंग के ज़रिए कर रहे हैं और साक्ष्य इकट्ठा कर रहे हैं.”
एफ़आईआर दर्ज करने में पुलिस की आनाकानी
उस बुज़ुर्ग महिला के दामाद ने मोनिका अरोड़ा को बताया, ‘’उन्होंने पहले गाली देना शुरू किया और फिर घर का दरवाज़ा खोलने को कहा. जब मेरी सास ने उनकी बात नहीं मानी तो देसी बम घर के बाहर फोड़कर लात मारकर दरवाज़ा खोल दिया. इसके बाद टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने लूटपाट की, सोना और घर में पड़ा कैश लिया, घर की प्रॉपटी के काग़ज़ छीन लिए और फिर मेरी सास का बलात्कार किया. वे वहीं यहीं नहीं रुके, बलात्कार के बाद तीन लोगों ने उनके मुंह में जबरन ज़हर डाल दिया.’’
दामाद का आरोप था कि मेरे कहने पर पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज नहीं की फिर बाद में मेरी पत्नी के कहने पर एफ़आईआर दर्ज हुई और आईपीसी की धारा 443/376/323/30 के तहत मामला दर्ज हुआ.
उनका कहना है कि ‘मैंने पुलिस से कहा कि वे रेप टेस्ट करवाएं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. मैंने अपनी सास को अपोलो में भर्ती कराया था जहां मेडिकल दस्तावेज़ दायर हुआ तब भी मैंने पुलिस से कहा कि रेप टेस्ट करवा लीजिए लेकिन पुलिस ने नहीं किया.’
इस मामले में सात लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. इस परिवार का कहना है कि छह साल का बच्चा जो इस पूरी घटना का गवाह है, अब उसकी जान को ख़तरा है.
इसी दस्तावेज़ में 9 मई को हुई एक दूसरी घटना के बारे में भी बताया गया है. यह एक नाबालिग लड़की के साथ गैंग रेप का मामला है.
परिवारवालों का आरोप है कि टीएमसी के लोगों ने ही लड़की का गैंग रेप किया है और ये इसलिए किया गया क्योंकि उनका परिवार बीजेपी का समर्थन करता है.
परिवार का कहना है कि जब हम घटनास्थल पर पहुंचे तो पुलिस वहां मौजूद थी. पुलिस ने आईपीसी की धारा 376-D/506 , पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है.
इस मामले में तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और एक व्यक्ति फ़रार है. लड़की नाबालिग है इसलिए उसे चाइल्ड शेल्टर होम में रखा गया है.
दस्तावेज़ के अनुसार, परिवार का आरोप है कि ‘पुलिस शेल्टर होम में उन्हें बच्ची से मिलने नहीं दे रही है. उन्हें डराया जा रहा है और पुलिस कह रही है कि तुम्हारी एक और बेटी है उसका रेप हो गया तो कल हमारे पास मदद के लिए मत आना. हम लाचार और नाउम्मीद हो चुके हैं. हम अपनी बच्ची के लिए न्याय और सुरक्षित ज़िंदगी चाहते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट से मांगी मदद
बुज़ुर्ग महिला और नाबालिग लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी टीएमसी के सदस्यों पर गैंग रेप का आरोप लगाया है.
उन्होंने याचिका में आरोप लगाया है कि हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन करने के कारण टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने उनका गैंगरेप किया और पुलिस उचित कार्रवाई नहीं कर रही है.
इस बुज़ुर्ग महिला ने याचिका में कहा है कि गोधरा दंगों के बाद जैसे सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित कार्रवाई की थी और विशेष जाँच दल (एसआईटी) की जांच के आदेश दिए गए थे, वैसे ही राज्य में टीएमसी के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद हुए गैंगरेप और हत्याओं की भी जांच होनी चाहिए.
एक तीसरी घटना
वहीं, चार मई को एक और घटना की ख़बर आई. बारातला इलाके में रात के समय कथित टीएमसी कार्यकर्ताओं ने एक महिला बीजेपी कार्यकर्ता के साथ गैंगरेप किया और उसके बाद उसे ज़हर पिलाने की कोशिश की.
घटना सामने आने के बाद इलाके के लोगों ने इसके विरोध में सड़क जाम की और विरोध प्रदर्शन किया था.
इस महिला ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ”टीएमसी के संरक्षण में पलने वाले गुंडे मुझे घर से जबरन उठाकर ले गए थे और एक सुनसान जगह पर मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया. उसके बाद मुझे जबरन ज़हर पिलाकर जान से मारने की भी कोशिश की गई. किसी तरह अंधेरे का फ़ायदा उठाकर वहां से भागकर मैंने अपनी जान बचा बचाई. मेरा कसूर यही था कि मैं बीजेपी की समर्थक थी.”
टीएमसी ने आरोपों को किया ख़ारिज
हालांकि, टीएमसी इस पूरे मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए कहती है कि यह सारी घटनाएं मनगढ़ंत हैं.
पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष का कहना है, ”बीजेपी अपनी हार को पचा नहीं पा रही है इसलिए टीएमसी को बदनाम करने के लिए वह ऐसे निराधार आरोप लगा रही है.”
वो इस मामले में बीरभूम ज़िले के नानूर में चार मई को हुई घटना का हवाला देते हैं.
कुणाल घोष का कहना था कि बीजेपी के कई नेताओं ने वहां पार्टी के चुनाव एजेंट समेत दो महिलाओं के साथ गैंगरेप का आरोप लगाया था लेकिन अगले ही दिन उन महिलाओं और पुलिस अधीक्षक ने ऐसी किसी घटना से इनकार कर दिया था.
उधर मोनिका अरोड़ा का कहना है कि उनकी टीम ने जो दस्तावेज़ तैयार किया है वो गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय महिला आयोग, ह्यूमन राइट्स वॉच, अनुसूचित जाति आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग और नेशनल कमीशन फ़ॉर प्रोटेक्शन आफ़ चाइल्ड राइट्स को सौंप चुके हैं.
‘बंगाल में ज़िंदा रहना है तो टीएमसी के ख़िलाफ़ खड़े नहीं हो सकते’
बीबीसी से बातचीत में मोनिका अरोड़ा ने कहा, ”जो हमने साक्ष्य इकठ्ठा किए हैं, उसमें हमने यही पाया कि जैसे किसी महिला का रेप हुआ तो यौन हमले का मामला दर्ज किया जा रहा है, गहरी चोट लगी है तो उसमें हल्की हाथापाई की धाराएं लग रही हैं. रेप और यौन हिंसा को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा.”
“ताकि उन्हें पाठ पढ़ाया जा सके कि अगर आप टीएमसी के ख़िलाफ़ बोलेंगे, अगर बीजेपी का झंडा उठाओगे, समर्थन या वोट करोगे तो तुम्हारे आदमी को मार देंगे, तुम्हारा घर जला देंगे और तुम्हारा बलात्कार करेंगे. यानी तुम्हारा मान भंग करेंगे, राशन कार्ड ले लेंगे ताकि खाना न खा पाओ, तुम्हारी आईडी ले लेंगे, तुम्हारे पति के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज करा देंगे और पुलिस तुम्हारा केस नहीं लेगी.”
वो कहती हैं कि ‘इन सबके ज़रिए ये बताने की कोशिश है कि अगर आपको बंगाल में ज़िंदा रहना है तो आप टीएमसी के ख़िलाफ़ नहीं खड़े हो सकते.’
कोलकाता में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्यामालेंदु मित्रा ने बीबीसी को बताया कि बंगाल में सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका पर चर्चा चल रही है और इस मामले की पूरी जांच नहीं हुई है और ये बहुत बुरी घटना है.
वो कहते हैं, ”इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि पश्चिम बंगाल की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने कार्यकर्ताओं या लोगों को बीजेपी की महिलाओं के साथ ऐसा करने का आदेश दिया होगा. ये सच नहीं है लेकिन ये साफ़ है कि निचले स्तर पर कार्यकर्ता ऐसे काम करते हैं. ये सच है कि पुलिस वाले ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज नहीं करते.”
लोगों के नाम के पर्चे बांटने के भी मामले
टीएमसी सांसद और अभिनेता दीपक अधिकारी के चुनाव क्षेत्र घाटाल इलाके में 18 लोगों के ख़िलाफ़एक पर्चा बांटा गया था और इसमें इन लोगों के समाजिक बहिष्कार की बात कही गई थी.
इसी पर्चे का ज़िक्र बीजेपी की महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष अग्निमित्रा पॉल ने एक वीडियो में किया था
उन्होंने कहा था कि “2 मई से बीजेपी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं. अब टीएमसी के ज़रिए खड़गपुर में पोस्टर के ज़रिए महिलाओं के नाम बताए जा रहे हैं. बीजेपी के कार्यकर्ता होने के कारण इनको ‘विधिवत दंडित’ करने की ज़रूरत बताई जा रही है.”
बीजेपी ने इस पर्चे को लेकर टीएमसी पर आरोप लगाया और इसकी शिकायत की लेकिन टीएमसी ने इसका खंडन किया है.
बीजेपी के नेता अनूप चक्रवर्ती आरोप लगाते हैं, ”चुनावी नतीजे के बाद से ही इलाके में टीएमसी का अत्याचार बढ़ गया है. वह खेजुरी सीट गंवाने के बाद अपनी नाराज़गी महिलाओं और बेकसूर लोगों पर उतार रही है. प्रशासन भी इन मामलों में चुप्पी साधे बैठा है.’’
वहीं एक सीपीआईएम नेता नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से कहते हैं, ”टीएमसी पहले भी इलाके में पार्टी के काडरों पर अत्याचार करती रही है. अब खासकर शुभेंदु अधिकारी, जो खेजुरी से सटे कांथी के हैं, उनके बीजेपी में जाने के बाद भगवा पार्टी से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए ही टीएमसी कार्यकर्ता इलाके में अपनी ज़मीन मजबूत करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं.’’
राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन सभी मामलों का संज्ञान लिया है.
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने बीबीसी को बताया है, ”हमने कई महिलाओं से वहां पर बात की है और उनके बयान की रिकॉर्डिंग की है. जहां रेप हुआ है उन मामलों को पुलिस टॉर्चर या छोटा-मोटा मामला बताकर केस दर्ज कर रही है. औरतों को मारा-पीटा जा रहा है, रेप की धमकियां दी जा रही हैं.”
“लेकिन मेरे सामने किसी ने आकर ये नहीं कहा कि उनका रेप हुआ है पर उन्हें ये डर था कि ये सब कहा तो आगे न जाने उनके साथ क्या होगा? लेकिन हमने भी सुप्रीम कोर्ट में जो बुज़ुर्ग महिला और नाबालिग लड़की ने याचिका डाली है उसमें हलफ़नामा दायर किया है.”
बिश्वनाथ चक्रवर्ती, रबिंद्रनाथ भारती यूनिवर्सिटी में राजनैतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने फ़ोन पर बीबीसी से बात करते हुए कहा कि ‘अगर ममता बनर्जी राज्य में इस तरह से हिंसा और घटनाओं को रोक पातीं तो और इज्ज़त पातीं. ये देखा जा रहा है कि जिन पर बीजेपी को वोट देने का शक भी था उन पर भी हमले हो रहे हैं.’
वो कहते हैं कि पश्चिम बंगाल के लोग राजनीति को लेकर काफ़ी प्रतिबद्ध रहे हैं लेकिन अभी सब चुप हैं.
उनके अनुसार, ”मैंने बंगाल के समाज को इतना उदासीन और चुप कभी नहीं देखा. यहां महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध हो रहे हैं, रेप हो रहे हैं. लोग बोलते हैं बंगाली बुद्धिमान होते हैं, हम क्या बुद्धिमान हैं? विपक्षी पार्टी को लेकर हम चुप हैं. नागरिक समाज पहले आवाज़ें उठाते थे लेकिन आजकल वो सो रहे हैं.”
“जैसे सत्ताधारी पार्टी ने चुनाव में जीत हासिल करने के बाद विपक्षी पार्टी को घेरा है उसकी तुलना मध्ययुग से की जा सकती है. जैसे जीतने के बाद बादशाह जीतता था तो पराजित सैनिकों के जीवन पर नियंत्रण कर लेते थे वैसा ही पश्चिम बंगाल में हो रहा है. सत्तारूढ़ पार्टी ने पहले विपक्षी पार्टियों के तन और मन पर पूरी तरह कब्जा किया और अब उन पर अत्याचार कर रही है उसमें महिलाएं भी हैं, एक के बाद एक महिलाओं के साथ अत्याचार किया गया या हो रहा है. नहीं होना चाहिए.”
उनका कहना था कि वो आज भी एक समाचार देख रहे हैं कि बीरभूम ज़िले के नानूर इलाके में जिन लोगों ने बीजेपी को समर्थन किया है उनसे सार्वजनिक तौर पर बुलवाया जा रहा है कि उन्होंने बीजेपी का समर्थन करके सही नहीं किया, उन्होंने भूल की है, ऐसे सैकड़ों लोग सार्वजनिक तौर पर माफी मांग कर टीएमसी में लौटे हैं.
वो आगे कहते हैं, ‘’एक लोकतंत्र में विपक्षी पार्टी के ख़िलाफ़ ऐसा हो रहा है. पहले लेफ्ट के लोग भी करते थे लेकिन इतना नहीं था. ये इस तरह के अन्याय का पहला मौका है, पुलिस सत्ताधारी पार्टी के ख़िलाफ़ एक कदम भी नहीं चलना चाहती है.’’
ममता ने महिलाओं के लिए योजनाएं भी चलाईं
राज्य में महिलाओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों की बात की जाए तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार साल 2017 में 30992, 2018 में 30394 और 2019 में 30394 मामले दर्ज किए गए. यानी दो सालों में संख्या एक ही जैसी रही है.
हालांकि राज्य में ममता बनर्जी महिलाओं के कल्याण के लिए कई योजनाएं जैसे द्वारे सरकार, कन्याश्री और स्वास्थ्य साथी ला चुकी है और चुनावों से पहले इन्हें लेकर खुब प्रचार-प्रसार भी हुआ.
आंकड़े और विश्लेषण बताते हैं कि महिलाओं के एक बड़े तबके को अपनी ओर खींचने में ममता बनर्जी कामयाब रहीं और 50 प्रतिशत (लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे) महिलाओं के वोट लेने में कामयाब रहीं. लेकिन महिलाओं की सुरक्षा और बलात्कार और ख़ासकर चुनावों के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं या उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोगों या परिवारों पर हमले की ख़बरें लागातार आ रही हैं.
कोलकाता में मौजूद पत्रकार पृथा लाहिड़ी बीबीसी से बातचीत में कहती हैं कि ‘ख़बरों में हमने भी देखा कि चुनावों के नतीजे आने के बाद कुछ घटनाएं हुई हैं और ऐसी भी ख़बरें आ रही थीं कि विपक्ष फेक वीडियो भी चल रहा था. सोशल मीडिया पर ख़बरें आती रहती हैं और ये पता चलाना मुश्किल होता है कि क्या सही और क्या फेक है.’
उनके अनुसार, ”मैंने जितनी महिलाओं से बात की है और मैं अपनी निजी राय बताऊं तो साल 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बदलाव आए हैं. कई ऐसी जगहें थीं जहां दिन छिपने के बाद महिलाएं जाना पसंद नहीं करती थीं, उन्हें अपनी सुरक्षा का डर रहता था कि कोई छेड़छाड़ होगी लेकिन अब उन इलाकों में जाने लगी हैं और मैं भी अब वहां अकेले जाने में बहुत सहजता और स्वतंत्र महसूस करती हूं’’.
वो आगे कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाली ग़रीब और विधवा औरतों के लिए लाई गई ममता बनर्जी की कन्याश्री, शुभश्री और विधवा पेंशन जैसी कई योजनाओं ने महिलाओं को मदद दी है और वो सुरक्षित महसूस करती हैं.
कहां है बीजेपी
वरिष्ठ पत्रकार श्यामालेंदु मित्र ये सवाल उठाते हैं कि राज्य में महिलाओं के ख़िलाफ़ ये घटनाएं हो रही हैं लेकिन बीजेपी के नेता इस मुद्दे को कहां उठा रहे हैं? वे कहां है?
वे कहते हैं, ‘’बीजेपी के 77 विधायक यहां जीत कर आए थे. हालांकि अब यह संख्या घटकर 74 रह गई है. लेकिन वो चाहते तो टीएमसी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. चुनाव के नतीजों के बाद वे कहाँ गायब हैं? उन्हें तो सुरक्षा मिल गई है लेकिन कोई भी बीजेपी नेता उन महिलाओं से मिलने नहीं गया जिन्हें धमकी दी गई थी. बस ये ख़बरे मीडिया में चल रही हैं, सत्ताधारी पार्टियां ऐसी ख़बरों को निराधार बता रही हैं और पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है.”
वे कहते हैं, ”राज्य में 34 साल से वामपंथी सरकार भी सत्ता में रही है और उस समय टीएमसी विपक्ष में थी. उस ज़माने में ममता बनर्जी अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं की शिकायत लेकर प्रेस और पुलिस में जाया करती थीं लेकिन वामपंथी सरकार भी उनका संज्ञान नहीं लेती. दअरसल ये राजनीति का पाखंड है और बुरी संस्कृति का प्रतीक है.”