पढ़िए दी बैटर इण्डिया की ये खबर…
सांगली (महाराष्ट्र) के काकासाहेब ने मैकेनिक का काम छोड़, खेती से जुड़ने का फैसला किया। आज अपने 20 एकड़ के खेत में वह फलों की नर्सरी चला रहे हैं।
महाराष्ट्र के सांगली इलाके के काकासाहेब सावंत ने तकरीबन 10 सालों तक पुणे के कई बड़ी-बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में मैकेनिक के तौर पर काम किया है। लेकिन अब उनकी पहचान मैकेनिक के तौर पर नहीं होती है, बल्कि एक सफल किसान के रूप में होती है। उनकी एक नर्सरी है, जिससे उनकी सालाना कमाई 50 लाख रुपये है।
43 वर्षीय सावंत बताते हैं, “आज से 10 साल पहले, जब मैंने हापुस आम के पौधें लगाए थे, तो लोग मुझपर हंसते थे। उन्हें लगता था कि हापुस (अल्फांसो) केवल कोंकण में ही उगाए जा सकते हैं, क्योंकि कोंकण इलाका अपने हापुस आम के लिए जाना जाता है।”
सावंत के दो भाई हैं, जो प्राथमिक स्कूल शिक्षक हैं। उनके परिवार के पास महाराष्ट्र के सांगली जिले के जाट तालुका के एक गाँव में 20 एकड़ जमीन है। यह इलाका एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है।
उनका गाँव अंतरल, जाट शहर से 15 किमी दूर है जिसमें लगभग 280 परिवार रहते हैं। इस गाँव में प्राकृतिक रूप से उपजाऊ काली मिट्टी पाई जाती है। इस तालुका में 125 गाँव शामिल हैं और औसतन लगभग 570 मिमी की वर्षा हर साल होती है। इस इलाके में खेती के लिए, लोगों को बारिश पर निर्भर होना पड़ता है। जिन्हें स्थानीय लोग ‘हंगामी शेती’ कहते हैं। हंगामी का अर्थ है सीज़नल और शेती मतलब खेती।
यहां के किसान, अंगूर या अनार उगाते हैं और आम की खेती को मुश्किल समझते हैं। यहां के किसान बाजरा, मक्का, ज्वार, गेहूं, दाल आदि उगाते हैं।
सावंत ने औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) से डिप्लोमा किया था, जिसके बाद वह एक ऑटोमोबाइल मैकेनिक के तौर पर काम करने लगे। वह कहते हैं, “खेती से जुड़ने से पहले मैंने सांगली में एक तकनीकी संस्थान में फैकल्टी के रूप में भी काम किया था। लेकिन जब मेरा तबादला हुआ, तब मैंने अपने गाँव लौटने और खेती करने का फैसला किया।”
वह बताते हैं, “मुझे अपने फैसले पर कोई पछतावा नहीं है, क्योंकि मैं आज बहुत अच्छा कमाता हूँ। साथ ही, मेरी नर्सरी के पौधों के कारण मेरी तालुका भी हरी-भरी हो रही है। मेरी नर्सरी से कई किसानों के साथ स्कूल और पंचायत ऑफिस से भी लोग पौधे ले जाते हैं।”
फलों की नर्सरी
सावंत ने साल 2010 में एक आम का बगीचा बनाया और पांच साल बाद, उन्हें पौधों की नर्सरी का बिज़नेस करने का ख्याल आया। इसके बाद, उन्होंने 2015 में ‘श्री बंशंकरी रोप वाटिका’ के नाम से अपनी नर्सरी शुरू की। वह कृष्णा नदी की म्हैसल सिंचाई योजना के माध्यम से अपनी नर्सरी में पौधों की सिंचाई के लिए पानी लाते हैं, जिसके लिए उन्होंने चार किमी की दो पाइप लाइन भी लगाई हैं। इसके अलावा, उन्होंने राज्य के कृषि विभाग द्वारा प्रदान की गई सब्सिडी के साथ एक तालाब भी बनवाया है।
फिलहाल, सावंत का परिवार बनाली गाँव में रहता है, जो अंतरल से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सावंत कहते हैं, “इन दिनों अंतरल गाँव में हमारा घर बन रहा है। एक-दो महीने में घर बनकर तैयार हो जाएगा और फिर हम पूरे परिवार के साथ वहाँ शिफ्ट हो जाएंगे।”
सावंत के परिवार की कुल 20 एकड़ जमीन में नर्सरी है, जिसमें अलग-अलग फलों के पौधे लगे हैं। 10 एकड़ में सिर्फ केसर आम की किस्म लगी हैं, जबकि बाकी 10 एकड़ में चीकू, अनार, सीताफल, अमरूद, इमली आदि के पेड़ हैं।
सावंत की नर्सरी में एक एकड़ जगह में एक शेड-नेट लगी हुई है। इस शेड एरिया में आम के छोटे पौधों यानी मदर प्लांट्स लगाए जाते हैं। केसर किस्म के इन मूल पौधों से ही रायवाल आम की किस्म के लिए रूटस्टॉक्स के लिए कलमों को तैयार किया जाता है।
वह हर साल, प्रति एकड़ 2 टन आम की फसल उगाते हैं। इस तरह 10 एकड़ के हिसाब से, कुल 20 टन आम उगते हैं। वह सूखे इलाके में आम उगाकर दूसरे किसानों के लिए एक आदर्श बन गए हैं। एक ऑटोमोबाइल मैकेनिक से किसान बने सावंत, आज एक ‘कृषि-उद्यमी’ बन चुके हैं। अपने खेत और नर्सरी से वह 25 और लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
सावंत ने अपनी नर्सरी और आम बागान को बेहतर तरीके से बनाने में कई सरकारी योजनाओं से सब्सिडी का लाभ भी उठाया है। जाट तालुका के कृषि अधिकारी, तुकाराम कोलेकर कहते हैं, “जब तक सावंत ने नर्सरी शुरू नहीं की थी, तब तक कोल्हापुर या कोंकण से आम के पौधे लेने पड़ते थे। इसके अलावा, इस इलाके में आम के पौधे लगाने में लागत भी बहुत लगती थी। ज्यादातर पौधे मर भी जाते थे, जिस वजह से लोग आम के पौधे नहीं लगाते थे। वहीं, अब इस इलाके में 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर केसर आम के पेड़ लग चुके हैं।”
सावंत तक़रीबन 40 से 70 रुपये प्रति पौधे की कीमत पर आम के पौधे बेचते हैं, जिससे उन्हें सालाना लगभग 2 लाख का मुनाफा होता हैं। इसके साथ ही वह एक लाख के करीब सीताफल, जामुन, अंजीर, चीकू, अमरूद, इमली और नींबू के पौधे बेचतें हैं।
ग्राफ्टिंग करके आम का पौधा लगाना
सावंत ने कुछ ऐसे मालियों को काम पर रखा है, जो सांगली से 225 किमी दूर दापोली स्थित, नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये सारे माली जून से अगस्त तक आम के छोटे पौधों को ग्राफ्टिंग करके सैपलिंग तैयार करते हैं। वे सभी सावंत के परिवार के साथ रहते हैं। सावंत कहते हैं, “मेरे सभी माली बहुत कुशल हैं और मैंने उनसे ही पौधों की ग्राफ्टिंग की तकनीक सीखी है। ये माली हर दिन लगभग 800 से 1000 पौधे तैयार करते हैं और एक पौधे की ग्राफ्टिंग का मेहनताना तीन रुपये लेते हैं।”
उनकी नर्सरी से परभणी, बीड, उस्मानाबाद, बुलढाणा, कोल्हापुर, बीजापुर, अथानी, बेलगाम, इंडी और यहां तक कि कोंकण क्षेत्र के कुछ हिस्सों के किसान भी पौधें खरीदतें हैं। वह बताते हैं, “इस साल मुझे बुलढाणा से चार लाख पौधों का ऑर्डर मिला, जो मेरे लिए आश्चर्य की बात थी।”
सावंत को महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘उद्यान पंडित’ की उपाधि से भी सम्मानित किया गया है। वह पौधों की ग्राफ्टिंग के कुछ सुझावों के बारे में बात करते हुए बताते हैं, “किसी पौधे की ग्राफ्टिंग करते समय ध्यान रखें कि जिस शाखा को आप ग्राफ्टिंग के लिए चुनें, उसमें हरे रंग की कोमल शाखा हो। साथ ही, उस पर पत्ते चार महीने से अधिक पुराने न हो। वहीं तापमान की बात करें, तो तापमान 25 ℃ से 30 ℃ के बीच होना चाहिए, जोकि मई की शुरुआत में होता है।”
दूर-दूर से कई किसान, सावंत के बागान देखने के लिए भी आते हैं। उनके खेत में एक तीन साल पुराना आम का पेड़ है, जिसपर 22 किस्मों का ग्राफ्ट किया गया है। फ़िलहाल, इस पेड़ में 22 किस्मों के आम उगे हैं। उन्होंने सभी आमों को उनके नामों के साथ लेबल भी किया है। पेड़ में उगे आमों में सिंधु, दूधपेड़ा, क्रोटन, सोनपरी, दशहरी, वनराज, निरंजन, लालबाग, ताइवान, आम्रपाली, अल्फांसो, बारामाशी और 10 अन्य नाम शामिल हैं। सावंत हमेशा नई आम की किस्मों की तलाश में रहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि एक-दो साल के भीतर आम के इस पेड़ में ग्राफ्टिंग तकनीक से 100 किस्में उगा लेंगे। साभार-दी बैटर इण्डिया
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