Falun Gong: आध्यात्म की खोज में भारत आई जर्मन महिला “क्रिस”‚ लोगों को निशुल्क दे रही हैं “फालुन गोंग” का ज्ञान

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जर्मनी की रहने वाली क्रिश का पूरा नाम क्रिश्चियन टेइक हैं लेकिन उनका परिवार उन्हें क्रिस कहकर बुलाता है। क्रिश अभी तक दुनिया भर के 55 देशों की यात्रा कर चुकी हैं। बताया जाता है कि उन्हें बचपन से प्रकृति और यात्रा से लगाव रहा है।

भारत में बौद्ध धर्म के चार प्राचीन पवित्र स्थल हैं इनमें से सारनाथ [Sarnath] एक है। सारनाथ में ही शाक्यमुनि [Shakyamuni] ने सबसे पहले अपने बौद्ध धर्म [Buddhism] का प्रचासर- प्रसार किया। यहींं पर क्रिस एक घरेलू होटल चलाती हैं। एक बड़े स्तूप के ठीक पीछे उनका छोटा ईंट का घर है जो हरे पेड़ों में छिपा है।

जर्मनी [Germany] की रहने वाली क्रिश का पूरा नाम क्रिश्चियन टेइक [Christian Teik] हैं लेकिन उनका परिवार उन्हें क्रिस [Chris] कहकर बुलाता है। क्रिश अभी तक दुनिया भर के 55 देशों की यात्रा कर चुकी हैं। बताया जाता है कि उन्हें बचपन से प्रकृति और यात्रा से लगाव रहा है। सारनाथ में रहने वाली क्रिश भारत में जब पहली बार आईं थी तब उनकी उम्र महज 21 साल थी। तब वह मूर्तिकला का अध्ययन करने वाली एक छात्रा थीं। खास बात ये है कि इस प्राचीन बौद्ध देश का उनके साथ एक अद्भुत संबंध था।

एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, क्रिस ने इथियोपिया में बड़े अकाल के दौरान सात साल तक स्वेच्छा से काम किया। बच्चों के लिए स्कूल और घर बनाने में मदद की। इसके बाद वे स्थानीय समुदाय की सेवा के लिए दक्षिण अमेरिका चले गईं। उन्होंने लोगों की पीड़ा और मृत्यु को करीब से देखा। इन अनुभवों ने उनके दिल और दिमाग को पूरी तरह से झकझोर दिया। वह मानव अस्तित्व के सही अर्थ और दुख के मूल कारण के बारे जानने के लिए उत्सुक थी।

काफी भटकने के बाद भी क्रिस की शंका दूर नहीं हुई। फिर एक बार महिला दिवस पर उन्होंने एक अमेरिकी चीनी महिला को ध्यान लगाते हुए देखा। वह तुरंत ध्यान अध्ययन से प्रभावित और आकर्षित हुई। उन्हे पता चला कि यह फालुन दाफा की एक प्राचीन साधना रही है।

क्रिस ने आध्यात्मिक साधना की सभी प्रकार की अभ्यासों और विधियों की जानकारी थी, लेकिन इस बार उनका सामना फालुन दाफा से हुआ था। इसे भी क्रिस ने परखने का निर्णय लिया। खोज और परीक्षण के बारे में जानने के बाद क्रिस ने फालुन दाफा का अभ्यास करने का कड़ा निर्णय लिया।

क्रिश को हुआ असीमित लाभ

करीब 15 साल बाद, क्रिस ने पाया कि: “इस अभ्यान ने उन्हे पूरी तरह से बदल दिया था। पहले क्रिस को की तबीयत ठीक नहीं थी और उन्हे कई बीमारियाँ थी। इस अभ्यास के बाद, उनके स्वास्थ्य में बहुत सुधार हुआ है। क्रिस कहती हैं कि “वो अब अपने दैनिक जीवन में, हर समस्या से शांति से निपटने में सक्षम हैं।”

फालुन दाफा का योगा अभ्यास करने के बाद, क्रिस ने अच्छे और बेहतर स्वास्थ्य के साथ शांत मन का अनुभव किया जिसके बाद अब वो इसे दूसरों लोगों के साथ साझा करना चाहती थी। घर-घर तक फालुन दाफा के बारे में लोगों को बताने के लिए क्रिस ने संपूर्ण भारत में अपनी यात्रा शुरू की। अब तक, वो लद्दाख, पूर्वोत्तर भारत, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और दक्षिण भारत की यात्राएं कर चुकी हैं। इसके अलावा उन्होने 60 से अधिक स्कूलों का दौरा भी किया है।

चीन में होता है आध्यात्मिकता का दमन

जब क्रिस ने स्थानीय शिक्षकों और छात्रों को इस अभ्यास से परिचय कराया तो उन्होने यह भी जानकारी दी कि यह “शांतिपूर्ण साधना अभ्यास मातृभूमि चीन में क्रूर उत्पीड़न का शिकार है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) नास्तिकता में विश्वास रखती है और आध्यात्मिकता का दमन करती है।

1999 के बाद से चीन में कई निर्दोष फालुन गोंग अभ्यासियों को यातना देकर मौत के घाट उतार दिया गया है। क्रिस कहती हैं कि जब मैंने भारतीय शिक्षकों और छात्रों को फालुन दाफा के चमत्कारी प्रभावों से परिचित कराया, तो मैंने उन्हें यह भी बताया कि कैसे सीसीपी इन अच्छे लोगों को सताती है, जबकि दुनिया भर के देशों ने इस साधना को मान्यता दी है और इसका स्वागत किया है। “

खास बात ये है कि क्रिस के चेहरे पर शांति और खुशी के भाव नजर आते है। बात-चीत के दौरान उनकी हार्दिक खुशी और दिल को छू लेने वाली सादगी को आसानी से महसूस किया जा सकता हैं। अतीत के बारे में बात करते हुए क्रिस कहती हैं कि “मैंने अब तक दुनिया भर के कई देशों की यात्रा की है, हर जगह मुझे बहुत स्नेह और प्यार मिला है – लेकिन सबसे मूल्यवान निधि आत्मा की शांति है… दुनिया की पीड़ा समाप्त नहीं हुई है और मैंने पाया कि सत्य, करुणा और सहनशीलता के साथ जीवन जीना सबसे बड़ी उपलब्धि है। क्रिस कहती हैं कि “अब मैं इस अनमोल अभ्यास को सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ। क्योंकि यह लोगों के जीवन में आशा संचार और एक बेहतर जीवन जीने की उम्मीद पैदा कर देता है।” साभार-आँखोंदेखी लाइव

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