ऑक्सीजन बंद करने से हुईं 22 मौतों का मामला:आगरा के पारस अस्पताल को क्लीन चिट देने पर उठे सवाल; आरोपियों के दावों पर बनी जांच रिपोर्ट, पीड़ितों के बयान ही नहीं लिए

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22 मौतों की मॉक ड्रिल करने वाले आगरा के पारस अस्पताल को सरकार ने क्लीन चिट दे दी है। सरकारी जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद अब पूरी जांच पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। जांच करने वाले अफसरों ने सिर्फ अस्पताल प्रशासन के बयान के आधार पर रिपोर्ट बना दी। अस्पताल में मरने वालों की डेथ ऑडिट रिपोर्ट में भी वही लिखा गया है जो अस्पताल प्रशासन ने बताया। हालांकि, इस रिपोर्ट की प्रशासन की तरफ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन उससे पहले ही यह मीडिया में सामने आ गई।

इसलिए जांच रिपोर्ट पर खड़े हो रहे सवाल

  • केवल अस्पताल प्रशासन के बयान के आधार पर रिपोर्ट क्यों तैयार की गई ?
  • मृतकों के परिजन से क्यों बातचीत नहीं की गई? उनका बयान क्यों नहीं लिया?
  • वीडियो की जांच के बगैर कैसे उसे मैनिपुलेटेड बता दिया गया?
  • अगर वीडियो मैनिपुलेटेड है तो डॉ. अरिंजय के उस बयान को उनके पक्ष में कैसे मान लिया गया जिसमें उन्होंने लोगों को ऑक्सीजन लाने के लिए अस्पताल की तरफ से पैसे और एबुलेंस मुहैया कराने की बात कही है?
  • रिपोर्ट में खुद कहा गया है कि अभी कुछ बिंदुओं पर जांच जरूरी है। ऐसे में बगैर उन बिंदुओं की जांच कराए अस्पताल प्रशासन को क्लीन चिट देने की जल्दी क्या थी?

15 से 25 अप्रैल के बीच 16 मौतें दिखाई गईं
जांच रिपोर्ट में डेथ ऑडिट की रिपोर्ट को भी शामिल किया गया है। इसमें बताया गया कि एसएन मेडिकल कॉलेज के डॉ. त्रिलोक चंद पीपल, डॉ. बलवीर सिंह, डॉ. ऋचा गुप्ता और ACMO डॉ. पीके शर्मा ने अस्पताल में 15 से 25 अप्रैल के बीच होने वाली मौतों का ऑडिट किया। इस दौरान कुल 16 मौतें बताईं गई हैं। इनमें सभी मृतकों को कोरोना के साथ अन्य बीमारी भी बताई गई हैं।

क्लीन चिट देने के लिए इन बातों को आधार बनाया
जांच टीम की रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल के रिकॉर्ड के अनुसार वहां अपर्याप्त ऑक्सीजन और मॉक ड्रिल का कोई प्रमाण नहीं है। इसके साथ ही वहां हुई 16 मौतों का समय वीडियो में कही बात के अनुसार सुबह सात बजे के आसपास न होकर अलग-अलग समय का था। वायरल वीडियो में डाक्टर की ओर से दोगुने पैसे ले लेने, सोना चांदी ले लेने, भोपाल से ऑक्सीजन लाने की बात से पता चलता है कि उनकी मंशा गलत नहीं थी। जांच टीम ने डॉक्टर अरिंजय जैन के बयान को भी पूरी जांच रिपोर्ट का आधार बनाया है।

डॉक्टर के बयान के मुताबिक, उसका मॉकड्रिल से मतलब आक्सीजन का लेवल कम कर गंभीर मरीजों को छांटना था, ताकि आक्सीजन का सही उपयोग किया जा सके। डॉक्टर के बयान के अनुसार वीडियो में कई जगह उसकी आवाज नहीं है और उसे काट कर उन्हें भेजा जा रहा था और ब्लैकमेल करने के प्रयास किए जा रहे थे। किंतु पिता की मौत के बाद होने वाले कार्यक्रमों में वे व्यस्त थे। जांच कमेटी की ओर से वायरल वीडियो की सही जांच करने और एक मीडियाकर्मी की भूमिका की जांच पुलिस की ओर से किए जाने की बात कही गई है।

पूरी रिपोर्ट में ये खामियां हैं
जांच रिपोर्ट में मृतक महिला की बहन से हुई बात की वॉट्सऐप चैट समेत सारे पीड़ितों के बयानों को कहीं भी नहीं दर्शाया गया है। इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि आखिर उस दिन CCTV क्यों बंद किए गए थे। वीडियो बनाने वाले का बयान और उसकी मंशा की कोई जानकारी जांच रिपोर्ट में नहीं है।

अस्पताल में सिर्फ उतनी ही मौतें दिखाई गई हैं जो पीड़ित परिवारों के जरिए सामने आई हैं। अस्पताल के रिकॉर्ड की जानकारी डिटेल में नहीं बताई गई है। इधर, कांग्रेस के प्रदेश सचिव अमित सिंह ने कहा कि इस जांच रिपोर्ट का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि सभी जानते थे कि जांच रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही होना था।

क्या है मामला ?
7 जून को पारस अस्पताल के संचालक डॉ. अरिंजय जैन का एक वीडियो सामने आया था। इसमें अरिंजय कबूल कर रहे हैं कि उन्होंने ऑक्सीजन बंद करके 5 मिनट में 22 लोगों की जिंदगी छीन ली थी। आगरा के जिलाधिकारी प्रभु नारायण सिंह ने उसी दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि 26 अप्रैल की रात अस्पताल में महज 3 मौतें हुई थीं। उन्होंने ऑक्सीजन की कमी से कोई भी जान न जाने की बात कही। लेकिन उसके बाद से अब तक 26-27 अप्रैल की रात पारस अस्पताल में जान गंवाने वाले 11 मृतकों के परिजन सामने आ चुके थे। इसके बावजूद जांच कमेटी ने इन 11 मृतकों के परिजन से बात करना जरूरी नहीं समझा।

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