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महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के रहने वाले संजय गंडाते एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता पारंपरिक खेती करते थे। संजय ने कुछ साल सरकारी नौकरी की तैयारी की। सफलता नहीं मिली तो मोतियों की खेती करना शुरू किया। पिछले 7 साल से वे मोतियों की फार्मिंग (Pearl Farming) और मार्केटिंग का काम कर रहे हैं। भारत के साथ ही इटली, अमेरिका जैसे देशों में भी उनके मोतियों की डिमांड है। अभी इससे वे सालाना 10 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं।
38 साल के संजय बताते हैं कि मेरा लगाव बचपन से मोतियों से रहा है। गांव के पास ही नदी होने से अक्सर हम अपने दोस्तों के साथ सीपियां चुनने जाते थे। हालांकि कभी इसके बिजनेस के बारे में नहीं सोचा था और कोई खास जानकारी भी नहीं थी। कुछ साल सरकारी टीचर बनने की तैयारी की, लेकिन जब सिलेक्शन नहीं हुआ तो प्लान किया कि कहीं कंपनी में काम करने से अच्छा है खेती बाड़ी की जाए।
नौकरी नहीं मिली तो मोतियों की खेती शुरू की
संजय पारंपरिक खेती नहीं करना चाहते थे। वे कुछ नया करने का प्लान कर रहे थे। तभी उन्हें ख्याल आया कि जो सीपें उनके गांव की नदी में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं, उनसे वे कुछ तैयार कर सकते हैं क्या? इसके बाद वे पास के कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचे। वहां से संजय को पता चला कि इन सीपियों की मदद से मोती तैयार किए जा सकते हैं। हालांकि इसकी प्रोसेस के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं मिली।
संजय ने अपने गांव की नदी के सीपियों से ही मोतियों की खेती की शुरुआत की थी। तस्वीर में वे नदी के पास खड़े हैं।
संजय कहते हैं कि सीपियों से मेरा लगाव था ही इसलिए तय किया कि अब जो भी नफा-नुकसान हो अपने पैशन को ही प्रोफेशन में बदलेंगे। इसके बाद उन्होंने इस संबंध में गांव के कुछ लोगों से और कुछ पत्र-पत्रिकाओं के जरिए जानकारी जुटाई। फिर नदी से वे कुछ सीपी लेकर आए और किराए पर तालाब लेकर काम शुरू कर दिया। तब उन्होंने ज्यादातर संसाधन खुद ही डेवलप किया था। इसलिए उनकी लगात 10 हजार रुपए से भी कम लगी थी।
शुरुआत में घाटा हुआ, लेकिन हार नहीं मानी
संजय चूंकि नए-नए थे। उन्हें इसका कोई खास तौर तरीका पता नहीं था। इसके चलते उन्हें शुरुआत में नुकसान उठाना पड़ा। ज्यादातर सीपियां मर गईं। इसके बाद भी उन्होंने इरादा नहीं बदला। उन्होंने इसकी प्रोसेस को समझने के लिए थोड़ा और वक्त लिया। इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाई। कुछ रिसर्च किया। और फिर से मोतियों की खेती शुरू की। इस बार उनका काम चल गया और काफी अच्छी संख्या में मोती तैयार हुए।
इसके बाद संजय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे वे अपने काम का दायरा बढ़ाते गए। आज उन्होंने घर पर ही एक तालाब बना लिया है। जिसमें अभी पांच हजार सीपियां हैं। इनसे वे एक दर्जन से ज्यादा डिजाइन की अलग-अलग वैराइटी की मोतियां तैयार कर रहे हैं।
मार्केटिंग के लिए क्या तरीका अपनाया?
संजय कहते हैं कि मैं अपने प्रोडक्ट किसी कंपनी के जरिए नहीं बेचता हूं। मिडिलमैन का रोल खत्म कर दिया है। क्योंकि इससे सही कीमत नहीं मिलती और वे लोग औने-पौने दाम पर खरीद लेते हैं। इससे बचने के लिए मैं खुद ही मार्केटिंग करता हूं।
वे कहते हैं कि हमने सोशल मीडिया से मार्केटिंग की शुरुआत की थी। आज भी हम उस प्लेटफॉर्म का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। साथ ही हमने खुद की वेबसाइट भी शुरू की है। जहां से लोग ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं। कई लोग फोन के जरिए भी ऑर्डर करते हैं। उसके बाद हम कूरियर के जरिए उन तक मोती भेज देते हैं। वे 1200 रुपए प्रति कैरेट के हिसाब से मोती बेचते हैं।
फार्मिंग के साथ ट्रेनिंग भी देते हैं
संजय ने अपने घर पर ही मोतियों की खेती का एक ट्रेनिंग सेंटर खोल रखा है। जहां वे लोगों को इसकी पूरी प्रोसेस के बारे में जानकारी देते हैं। उन्होंने इसके लिए अभी 6 हजार रुपए फीस रखी है। लॉकडाउन से पहले महाराष्ट्र के साथ ही बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों से लोग उनके पास ट्रेनिंग के लिए आते थे। उन्होंने एक हजार से ज्यादा लोगों को अब तक ट्रेंड किया है। वे पूरी तरह से प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देते हैं।
आप मोती की खेती कैसे कर सकते हैं?
इसके लिए तीन चीजों का होना जरूरी है। एक कम से कम 10×15 का तालाब होना चाहिए। जिसका पानी खरा नहीं होना चाहिए यानी पीने लायक पानी होना चाहिए। दूसरी चीज सीपी हैं, जिनसे मोती बनता है। यह आप चाहें तो नदी से खुद निकाल सकते हैं या खरीद भी सकते हैं। कई किसान सीपियों की मार्केटिंग करते हैं। साउथ के राज्यों में अच्छी क्वालिटी की सीपियां मिल जाती हैं। इसके बाद जरूरत होती है मोती के बीज यानी सांचे की जिस पर कोटिंग करके अलग-अलग आकार के मोती बनाते हैं।
ट्रेनिंग के लिए आप नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च के तहत एक नया विंग बनाया गया है, जो भुवनेश्वर में है। इस विंग का नाम सीफा यानी सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर है। यह फ्री में मोती की खेती की ट्रेनिंग देती है। इसके अलावा कई किसान भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।
कैसे बनता है मोती, क्या है इसकी प्रोसेस?
सीपी से मोती बनने में करीब 15 महीने का वक्त लगता है। इसके लिए सबसे पहले नदी से या खरीदकर सीपी लाई जाती हैं। उन्हें दो से तीन दिनों तक एक जाली में बांधकर अपने तालाब में रखा जाता है ताकि वो खुद को उस पर्यावरण के अनुकूल ढाल सकें। इससे उनकी सर्जरी में सहूलियत होती है।
इसके बाद उन्हें वापस तालाब से निकाला जाता है। फिर एक कॉमन स्क्रू ड्राइव और पेंच की मदद से उनकी सर्जरी की जाती है। फिर सीपी का बॉक्स हल्का ओपन कर उसमें मोती का बीज यानी सांचा डाल देते हैं। इसके बाद उसे बंद कर दिया जाता है। इस दौरान अगर सीपी को ज्यादा इंजरी होती है तो उसका ट्रीटमेंट भी किया जाता है।
इन सीपियों को एक नाइलॉन के जालीदार बैग में रखकर नेट के जरिए तालाब में एक मीटर गहरे पानी में लटका दिया जाता है। ध्यान रहे कि तालाब पर ज्यादा तेज धूप नहीं पड़े। गर्मी से बचाने के लिए आप उसे तिरपाल से कवर कर सकते हैं। बरसात के सीजन में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है। फिर इनके भोजन के लिए कुछ एल्गी यानी कवक और गोबर के उपले डाले जाते हैं। हर 15-20 दिन पर मॉनिटरिंग की जाती है। ताकि अगर कोई सीपी मरती है तो उसे निकाल दिया जाए। वरना वो दूसरे सीपियों को नुकसान पहुंचाती है। औसतन 40% सीपी इस प्रोसेस में मर जाती हैं।
मोती की खेती का गणित और कमाई
मोतियों की खेती कम लागत में कमाई का एक बेहतर विकल्प है। आप इसके जरिए कम वक्त में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। छोटे लेवल पर शुरुआत के लिए करीब एक हजार सीपियों की जरूरत होती है। अगर आप खुद नदी से सीपी लाएं तो कम खर्च होगा। हालांकि सीपी ढूंढना और उनकी पहचान करना इतना आसान नहीं होता। और आप बाहर से लाते हैं तो एक नेचुरल सीपी की कीमत 70 रुपए जबकि आर्टिफिशियल सीपी 5 से 7 रुपए में मिलती है। यानी नेचुरल मोती की खेती एक लाख और आर्टिफिशियल की 15 से 20 हजार रुपए की लागत से की जा सकती है।
तैयार होने के बाद एक डिजाइनर नेचुरल मोती की कीमत एक हजार से लेकर दो हजार तक मिलती है। जबकि नॉर्मल मोती 100 से लेकर 500 रुपए तक में बिकता है। एक सीपी से अधिकतम दो मोती बनते हैं। संजय में मुताबिक अगर प्रोफेशनल तौर पर इसकी खेती की जाए तो 9 गुना तक मुनाफा कमाया जा सकता है। कई बड़ी कंपनियां किसानों से सीधे प्रोडक्ट खरीद लेती हैं।
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