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अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले देश भर में फैले रोहिंग्या और बंग्लादेशी घुसपैठियों का पलायन यूपी की तरफ होने लगा है। प्रतिबंधित सिमी समर्थित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नेता इन विदेशी घुसपैठियों को संरक्षण दे रहे हैं। 8 जून को गाजियाबाद से पकड़े गए दो रोहिंग्या नागरिकों से पूछताछ में आतंक निरोधक दस्ता यानी ATS को ऐसी कई अहम जानकारियां मिली हैं।
यूपी एटीएस ने 8 जून को गाजियाबाद क्षेत्र से रोहिंग्या नागरिक आमिर हुसैन और नूर आलम को गिरफ्तार किया गया था। नूर आलम बंग्लादेश के रास्ते रोहिंग्या नागरिकों को देश में लाने का सबसे बड़ा दलाल है और आमिर हुसैन देश में अवैध तरीके से एंट्री करके करीब दो साल से दिल्ली के खजुरी खास थानाक्षेत्र के श्रीराम कॉलोनी में ठिकाना बनाकर रह रहा था।
यूपी की सीमा में प्रवेश करने पर एटीएस ने दोनों को दबोच लिया गया। एटीएस ने गहराई से पड़ताल के लिए दोनों को रिमांड पर लेकर पूछताछ की तो पता चला कि यह और इनके जैसे तमाम देशभर में फैले रोहिंग्या और बंग्लादेशी नागरिकों को यूपी में ठिकाना बनाने के लिए कहा गया है। विधानसभा चुनाव से पहले बसने वाली जगह का राशनकार्ड, पैनकार्ड बनवाकर वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाना इनका लक्ष्य है। इसलिए नूर आलम एक-एक करके दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान की तरफ बसे इन घुसपैठियों को यूपी में रहने वाले इनके रिश्तेदारों और करीबियों तक पहुंचा रहा है। इसके एवज में उसे अच्छी खासी रकम भी मिल रही है।
दो साल पहले यूपी में रोंहिंग्याओं की संख्या 800 थी
इंटेलीजेंस की दो साल पुरानी रिपोर्ट में यूपी में अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या नागरिकों की संख्या करीब 800 बताई गई थी। लेकिन एटीएस के मुताबिक इससे कई गुना ज्यादा रोहिंग्या मौजूदा समय में हर विधानसभा क्षेत्र में निवास कर रहे हैं। लेकिन इनकी पहचान कर पाना इसलिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि इनके पास यहां की नागरिकता प्रमाणित करने के सभी दस्तावेज मौजूद हैं। एटीएस की पड़ताल में सामने आ रहा है कि सिमी समर्थित पीएफआई इन्हें संरक्षण दे रही है। अगले साल पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, जिसमें यूपी सबसे अहम है। दूसरे राज्यों में बड़ी संख्या में अवैध रुप से रह रहे इन रोहिंग्या और बंग्लादेशियों को चुनाव से पहले यूपी में बसकर वोटर बनने का टास्क दिया गया है।
शहरों में बंग्लादेशी, गांवों में रोहिंग्या बना रहे हैं ठिकाना
एटीएस ने इसी साल 6 जनवरी को संतकबीर नगर जिले के चमरसन गांव में बसे रोहिंग्या अजीजुल्लाह को गिरफ्तार किया था। उससे पूछताछ में मिली जानकारी के बाद 28 फरवरी को अलीगढ़ के कबेला रोड पर रह रहे मोहम्मद फारुख और हसन को पकड़ा गया। इसके बाद फारुख के भाई शाहिद को 1 मार्च को उन्नाव से दबोचा गया। शाहिद के बहनोई जुबैर के बारे में भी जानकारी मिली लेकिन वह एटीएस के हाथ नहीं आया। शाहिद के पास से पांच लाख रुपये के साथ भारतीय नागरिकता से जुड़े कई दस्तावेज मिले जो फर्जी तरीके से बनाए गए थे।
इन सबसे पूछताछ में सामने आया कि बंग्लादेशी रिश्तेदारों के साथ यहां रहने आए थे। उनकी तरह हजारों रोहिंग्या यहां आए हैं जिनके बंग्लादेशी रिश्तेदार काफी पहले से यहां रह रहे हैं। बंग्लादेशियों को यहां की स्थानीय भाषा आती है और उनके रहने पर कोई रोकटोक नहीं है। इसलिए वह शहरी क्षेत्रों में रह रहे हैं। लेकिन भाषा की वजह से पकड़े जाने के डर से शुरुआत में आने वाले रोहिंग्या को यूपी के गांवों में रहने का ठिकाना यही बंग्लादेशी दिलवाते हैं। ज्यादातर रोहिंग्या नागरिक यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों या उससे सटे छोटे कस्बों में रह रहे हैं।
प्रदेश के बूचड़खाने हैं इनके रोजगार का साधन
एटीएस की छानबीन में यह भी सामने आया कि ज्यादातर रोहिंग्या पश्चिमी यूपी मे ठिकाना बनाए हुए हैं। अलीगढ़, आगरा और उन्नाव के स्लाटर हाउस में यह काम करके मोटा पैसा कमाते हैं। यहा काम दिलाने के एवज में इनके ही बीच का दलाल इनसे कमिशन लेता है। पीएफआई के लोग पर्दे के पीछे से इनकी हर तरह से मदद करते हैं।
2019 में सीएए के विरोध में देश भर में प्रदर्शन और हिंसा में इन रोहिंग्यों की भूमिका सामने आई थी। कानपुर में हिंसा भड़काने के आरोप में पीएफआई सदस्यों के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद छानबीन में पाया गया था कि कल्याणपुर और बाबूपुरवा क्षेत्र में बड़ी संख्या में बसे रोहिंग्या पीएफआई सदस्यों के कहने पर ही हिंसा कर रहे थे। एटीएस सूत्रों का कहना है कि इन जानकारियों के बाद रोहिग्या नागरिकों की निगरानी तेज कर दी गई है।
साभार दैनिक भास्कर
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