तरुण तेजपाल मामला: फ़ैसले में ‘पीड़िता अच्छे मूड में थी’ बताने पर छिड़ी बहस

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अपनी सहकर्मी का बलात्कार करने के आरोप में पकड़े गए व्यक्ति पर लगे आरोपों को ख़ारिज कर उसे बरी करने के कोर्ट के आदेश और कथित तौर पर पीड़िता के व्यवहार को लेकर सवाल किए जाने के बाद भारत में कई लोग अब यही सवाल कर रहे हैं – क्या बलात्कार पीड़िता के व्यवहार ‘उचित या अनुचित’ के पैमाने पर देखा जाना चाहिए?

जज क्षमा जोशी ने अपने फ़ैसले में लिखा कि कथित तौर पर हुए यौन शोषण के बाद की तस्वीर को देखने पर युवती “मुस्कुराती हुई, खुश, सामान्य और अच्छे मूड में दिखती हैं.”

अपने 527 पन्ने के फ़ैसले में कोर्ट ने लिखा, “वो किसी तरह से परेशान, संकोच करती हुई या डरी-सहमी हुई नहीं दिख रही हैं. हालांकि उनका दावा है कि इसके ठीक पहले उनका यौन शोषण किया गया.”

कोर्ट ने समाचार पत्रिका तहलका के संपादक रहे तरुण तेजपाल पर लगे बलात्कार के आरोपों को ख़ारिज कर दिया है.

गोवा सरकार ने इस मामले में ऊपरी अदालत में अपील की है. गुरुवार को सरकार ने इस मामले में कोर्ट से जल्द सुनवाई की गुज़ारिश की.

सरकार का कहना है आरोपों को ख़ारिज करने वाला कोर्ट का फ़ैसला ‘क़ानूनी तौर पर ग़लत है’ और ये ‘टिक नहीं सकता’. सरकार ने कहा कि “महिलाओं के हक के लिए हमें इस मामले में अपील करनी है.”

कोर्ट ने सरकार की गुज़ारिश मान ली है और अब इस मामले में दो जून को सुनवाई होगी.

‘कटघरे में महिला की नैतिकता’

महिला पत्रकार ने आरोप लगाया था कि नवंबर 2013 में गोवा में तहलका के एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस दौरान लगातार दो रातों तक होटल की एक लिफ्ट में तेजपाल ने उनका यौन शोषण किया.

पुलिस ने इस मामले में 3000 पन्नों का आरोपपत्र दाख़िल किया और तेजपाल पर ”अपने पद और ताकत का इस्तेमाल करते हुए ग़लत तरीक़े से महिला को जबरन पकड़ने, हमला, यौन उत्पीड़न और बलात्कार के आरोप लगाए.”

तरुण तेजपाल ने ख़ुद पर लगे आरोपों से इनकार किया.

पत्रकारिता जगत का जाने-माने चेहरा रहे तेजपाल पर आरोप लगने के बाद ये मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आया.

तेजपाल ने साल 2000 में तहलका न्यूज़ मैगज़ीन की शुरूआत की थी. इस घटना के वक्त तक ये मैगज़ीन खोजी पत्रकारिता के मैदान में अहम रिपोर्ट छापने वाली पत्रिका के रूप में नाम कमा चुकी थी.

साहित्य जगत के कई बड़े नाम उनकी पब्लिशिंग हाउस इंडिया इंक के साथ जुड़े थे और बुकर अवॉर्ड जीत चुकी अरुंधती राय और नोबल पुरस्कार पा चुके वीएस नायपॉल को वो अपने क़रीबी मित्रों में गिनते थे.

जिन महिला ने उन पर आरोप लगाया वो केवल उनके साथ काम करने वाली उनकी सहकर्मी ही नहीं थीं बल्कि उनके मित्र की बेटी और उनकी बेटी की सबसे अच्छी दोस्त भी थी.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि वो तरुण तेजपाल को पिता समान मानती हैं और उन पर भरोसा करती हैं.

तेजपाल के बरी करने के कोर्ट के फ़ैसले से कई लोगों को हैरानी हुई है.

कोर्ट में चले मामले के दौरान तेजपाल के बयान भी बदलते रहे.

पहले उन्होंने इसे ‘आपसी सहमति’ से हुई घटना कहा, लेकिन बाद में कहा कि “निर्णय में चूक” और “स्थिति को ग़लत तरीके से समझने के कारण” इस तरह की “दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई.”

इसके बाद उन्होंने पहले का दिया अपना वो बयान वापस ले लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि “स्पष्ट तौर पर आपकी अनिच्छा के बावजूद आपसे यौन संबंध बनाने की कोशिश की.” उन्होंने कहा कि ऐसा बयान देने के लिए उन पर ज़ोर डाला गया था.

कोर्ट में दाख़िल किए गए दस्तावेज़ों में उन्होंने इस घटना के बारे में कहा कि यह “नशे की हालत में हुआ एक हादसा था.”

अपने फ़ैसले में तेजपाल को आरोपों से मुक्त करने के बाद जज ने अपना ध्यान आरोप लगाने वाली महिला की तरफ किया.

उन्होंने पीड़िता से सवाल किया कि इस घटना के बारे में उन्होंने अपने तीन पुरुष सहयोगियों को बताया लेकिन अपनी महिला रूममेट को क्यों नहीं बताया? इस घटना से दुखी हो कर पीड़िता अपने दोस्तों के सामने क्यों नहीं रोई? पीड़िता ने किसी प्रकार का “वैसा सामान्य व्यवहार क्यों नहीं दिखाया” जो दिखाना चाहिए.

जज ने लिखा कि, “यह अविश्वसनीय है कि महिला ने पूरी ताकत के साथ संघर्ष किया लेकिन उसे कोई चोट नहीं आई.”

जज के फ़ैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है.

दिल्ली में रहने वाले वकील अपर्णा भट्ट ने इस बात को माना कि तेजपाल का बचाव कर रहे वकीलों को “अपने केस को बेहतर तरीके से रखना था” और “इसका नियंत्रण जज के हाथों में था.”

लेकिन वो कहती हैं कि इस मामले में “जज सीधे तौर पर महिला को बदनाम कर रही हैं. ऐसा लगता है कि पूरे फ़ैसले में पीड़िता को निशाना बनाया गया है.”

भट्ट कहती हैं, “महिला के बारे में कई अपमानजनक बातें कही गई हैं. इस बारे में बेतुके निष्कर्ष निकाले गए हैं कि उनका व्यवहार सामान्य नहीं था जैसे कि वो उन लोगों के साथ सहजता से बात कर रही थीं जिनके साथ उनके पहले यौन संबंध थे और भी इस तरह की कई बातें हैं.”

वो कहती हैं कि पूरे फ़ैसले में ही “महिला को यौन व्यभिचार में लिप्त रहने वाली महिला के रूप में दिखाया गया है.”

पायल चावला नाम की एक और वकील कहती हैं कि ये पूरा फ़ैसला न केवल “पीड़िता का चरित्र हनन है बल्कि उसके चरित्र को सूली पर चढ़ाने जैसा है.”

वो कहती हैं, “बार में पार्टी करने जाती महिला या फिर हाथ में शराब लेकर डांस करती महिला की छवि से जज नाराज़ लगती हैं. ऐसे लगता है कि ये मामला इस बात का नहीं था कि बलात्कार हुआ या नहीं बल्कि इस बात का था कि नैतिकता के पैमाने पर महिला खरी है या नहीं.”

‘हमारी महिलाएं ऐसी प्रतिक्रिया नहीं देतीं’

यह पहली बार नहीं है जब किसी भारतीय जज पर महिला विरोधी फ़ैसला देने का आरोप लगाया गया है.

बीते साल कर्नाटक में कोर्ट के एक फ़ैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी जिसमें जज ने कथित तौर पर महिला के व्यवहार को “अशोभनीय” कहा था.

जज ने कहा था, “महिला ने सफाई दी कि बलात्कार की घटना के बाद वो इतना थक गई थीं कि वो सो गईं. किसी भारतीय महिला के लिए ये व्यवहार अशोभनीय है. बर्बाद हो जाने के बाद प्रतिक्रिया देने का हमारी महिलाओं का ये कोई तरीका नहीं.”

उस वक्त अपर्णा भट्ट ने चीफ़ जस्टिस और सर्वोच्च अदालत की तीन महिला जजों के नाम खुला ख़त लिख कर सवाल किया था, “क्या क़ानून में बलात्कार पीड़िता के लिए ऐसा कोई नियम लिखा गया है कि उसे घटना के बाद कैसा व्यवहार करना चाहिए और जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है.”

जानेमाने कलाकार @PENPENCILDRAW ने कोर्ट के उस फ़ैसले के जवाब में एक चित्र बनाया जिसमें “आदर्श बलात्कार पीड़िता बनने के लिए एक भारतीय न्यायाधीश की मार्गदर्शिका” को दिखाया. यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इस तरह के और भी मामले हैं जिनमें ऐसे फ़ैसले दिए गए हैं. एक मामले में जज ने सामूहिक बलात्कार पीड़िता को बीयर पीने, सिगरेट पीने, ड्रग्स लेने और अपने कमरे में कॉन्डोम रखने के लिए “व्यभिचारी” कहा था.

एक अन्य मामले में जज ने अगवा किए जाने के बाद सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई एक महिला से कहा कि “घटना के बाद उसकी हरकतें और आचरण असामान्य था.”

देश की सर्वोच्च अदालत ने बार-बार इस तरह के सवालों को लेकर निर्देश जारी किए हैं और ,स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस तरह के मामलों में महिला के अतीत या उसके चरित्र को नहीं देखा जाना चहिए.

कई महत्वपूर्ण आदेशों में जजों ने कहा है कि सुनवाई के वक्त जज के सामने बस एक ही सवाल होना चाहिए- अभियुक्त ने बलात्कार किया है या नहीं?

चावला कहती हैं, “यह परेशान करने वाला है कि सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों में इसके बारे में कहा गया है फिर भी जज पीड़िता के चरित्र पर टिप्पणी करते हैं. पीड़िता के निजी जीवन के बार में विस्तृत जानकारी लेना जज के तय आचरण के ख़िलाफ़ है.”

लेकिन तरुण तेजपाल वाले मामले में दिए गए फ़ैसले को पढ़ने पर लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश हर स्तर तक नहीं पहुंच रहे हैं.

अपने फ़ैसले में एक जगह जज क्षमा जोशी ने पीड़िता की मां के व्यवहार पर भी सवाल उठाए हैं.

उन्होंने लिखा, “घटना से परेशान अपनी बेटी को सहारा देने के लिए उन्होंने स्वाभाविक तौर पर उसके पास जाने के लिए अपनी योजना नहीं बदली.”

साभार-BBC NEWS हिन्दी

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