बिना सीमेंट के बनाया घर, पीते हैं बारिश का पानी, नहाने-धोने से बचे पानी से उगाते हैं सब्जी

पढ़िए दी बैटर इण्डिया की ये खबर…

राजस्थान के डूंगरपुर में रहने वाले सिविल इंजीनियर, आशीष पंडा और उनकी पत्नी, मधुलिका से जानिए एक इको-फ्रेंडली और स्वस्थ जीवन जीने के टिप्स।

यदि आप देश के अलग-अलग शहरों की यात्रा करेंगे, तो पाएंगे कि हर जगह लगभग एक ही जैसी इमारतें बन रही हैं। इन इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों से लेकर, इनमें लगाए जाने वाले पेड़-पौधे तक, सभी लगभग एक जैसे ही होते हैं। वहीं, अगर आप देश के छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों की यात्रा करेंगे, तो आपको उन इलाकों में संस्कृति और विरासत को दर्शाते हुए घर (Sustainable House) देखने को मिलेंगे। जैसे- कहीं पर आपको सिर्फ मिट्टी से बने घर दिखेंगे, तो कहीं पत्थरों से बने। दिलचस्प बात यह है कि अपने-अपने इलाकों में उपलब्ध संसाधनों से बने ये घर, प्रकृति के ज्यादा करीब होते हैं।

आज हम आपको एक ऐसे ही घर (Sustainable House) के बारे में बता रहे हैं, जो राजस्थान के डूंगरपुर में रहने वाले सिविल इंजीनियर आशीष पंडा और उनकी पत्नी, मधुलिका का है। मधुलिका पेशे से सॉफ्टवेयर डेवलपर हैं और समाज सेवा का भी काम करती हैं। इस घर (Sustainable House) की नींव से लेकर बाहर-भीतर तक, सबकुछ पर्यावरण के अनुकूल है।

मूल रूप से ओडिशा से संबंध रखने वाले, 40 वर्षीय आशीष बताते हैं कि स्कूल की पढ़ाई करने तक, उनका जीवन मद्रास में बीता। फिर उन्होंने बिट्स पिलानी से सिविल इंजीनियरिंग की। इसके बाद, उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में काम किया। इसी तरह, मूल रूप से विजयवाड़ा की 41 वर्षीया मधुलिका ने भी बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग की। फिर मास्टर्स की पढ़ाई के लिए, वह अमेरिका चली गयीं। उन्होंने अमेरिका में एक साल काम भी किया। मधुलिका बताती हैं, “मैं और आशीष भले ही अलग-अलग जगहों पर रहे। लेकिन, अपने कॉलेज के समय से ही हमने तय कर लिया था कि हम राजस्थान ही लौटेंगे। कॉलेज के दिनों से ही मेरा सामाजिक विषयों की तरफ और आशीष का प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की तरफ झुकाव था।”

साल 2008 में अलग-अलग जगह रहने और घूमने के बाद, यह दंपति एक बार फिर राजस्थान पहुंचा। आशीष कहते हैं कि तब तक वे दोनों यह तय कर चुके थे कि उन्हें किसी बड़े-मेट्रो शहर में नहीं रहना है। वे हमेशा से प्रकृति के करीब रहना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने कुछ महीने, अलग-अलग गांवों में रहकर भी देखा। लेकिन फिर उन्होंने तय किया कि वे ऐसी जगह रहेंगे, जहाँ कम से कम कुछ सुविधाएँ उपलब्ध हों और वहाँ से अपना काम भी कर पाएं। मधुलिका कहती हैं, “साल 2010 में डूंगरपुर में ही हमारी बेटी का जन्म हुआ और इसके बाद हमने यहीं पर बसने का फैसला किया।”

बनाया एक अनोखा घर: 

आशीष और मधुलिका ने डूंगरपुर के उदयपुरा में जमीन खरीदी और घर बनाने का काम शुरू किया। आशीष कहते हैं, “जब हमने घर बनाने का फैसला किया, तो एक बात स्पष्ट थी कि हमारा घर इस इलाके में उपलब्ध संसाधनों से बने। जो शहर के आम घरों जैसा न दिखे बल्कि इस इलाके के बाकी घरों जैसा ही दिखे। हम अपने घर को पर्यावरण के अनुकूल बनाना चाहते थे। इसलिए, हमने सिर्फ रिसर्च पर लगभग 10 महीने लगाए और फिर जमीन पर काम शुरू किया।”

साल 2017 में बनकर तैयार हुआ उनका घर (Sustainable House), पर्यावरण के अनुकूल तरीकों से बनाया गया है। घर के निर्माण के लिए, उन्होंने सभी लोकल मटीरियल का उपयोग किया है। जैसे- बलवाड़ा के पत्थर और पट्टियां (Slate Stone), घूघरा के पत्थर (Phyllite Stone) और चूना आदि। घर की सभी दीवारें पत्थर से बनाई गयी हैं और इनकी चिनाई, प्लास्टर तथा छत की गिट्टी, सभी में चूना इस्तेमाल किया गया है। वहीं छत, छज्जे, सीढ़ियों के निर्माण आदि के लिए, उन्होंने पट्टियों का इस्तेमाल किया है।

उन्होंने बताया, “आप राजस्थान में जितने भी पुराने महल, हवेलियां और घर आदि देखेंगे, वे सभी आपको पत्थर, चूने या फिर मिट्टी के बने मिलेंगे। इनकी छतों को बनाने में सीमेंट और स्टील का इस्तेमाल नहीं हुआ है। फिर भी ये इमारतें बरसों से सही-सलामत खड़ी हुई हैं। हमने भी इनके जैसा ही एक घर (Sustainable House) तैयार किया है।”

उन्होंने घर में कमरे और खिड़कियाँ बनवाते समय हवा और सूरज की रोशनी आदि का भी ख़ासा ध्यान रखा। उनके घर (Sustainable House) के पश्चिमी हिस्से में, सभी खिड़कियाँ इस तरह से बनाई गयी हैं कि इनमें से हवा और रोशनी भरपूर आए, लेकिन बहुत ज्यादा धूप कमरों के अंदर न जाए। उनके घर के दक्षिणी हिस्से में तेज धूप पड़ती है, जिसे ध्यान में रखते हुए वहां कोई खिड़की नहीं बनवाई गयी है। आशीष कहते हैं, “इन सब चीजों के लिए, आपको इलाके की समझ रखनी बहुत जरूरी है। आप देखिए कि आपके यहाँ हवा किस दिशा से बहती है और अलग-अलग मौसम में सूरज की धूप किस तरफ से पड़ती है। हमारे घर में कुल आठ कमरे, तीन बरामदे और एक बालकनी है। इनमें से जिन कमरों में सबसे कम धूप पड़ती है, उन्हें हम बेडरूम के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। सिर्फ एक ही कमरा ऐसा है, जो गर्मियों में दिन के समय थोड़ा गर्म हो जाता है।”

हालांकि, उनके घर में एसी (एयर-कंडीशनर) की कोई जरूरत नहीं है। उनके घर (Sustainable House) का तापमान बाहर के तापमान से कम से कम आठ-दस डिग्री कम ही रहता है। वे कहते हैं, “हमने अपने पहले फ्लोर की छत को ‘लाइम कंक्रीट’ से बनाया है। यह एक पारंपरिक तरीका है, जिसमें चूने में मेथी, गुड़ और रस्सी मिलाकर काम में लिया जाता है। जिससे छत ठंडी और ‘वाटर प्रूफ’ रहती है। इसके अलावा, हमने अपने घर में बहुत अलग-अलग प्रजाति के पेड़-पौधे लगाए हैं और तापमान व नमी को संतुलित करने में इनकी भी अहम भूमिका है।”

आशीष और मधुलिका कहते हैं कि बहुत से लोग उनके घर (Sustainable House) के बारे में जानने के लिए उनसे संपर्क करते हैं। आसपास के इलाकों के अलावा, गुजरात और पंजाब से भी लोग उनके घर को देखने और समझने आए हैं।

सहेजते हैं बारिश की हर बूंद: 

आशीष और मधुलिका अपने घर में बारिश के पानी को इकट्ठा करते हैं और इसे फिल्टर करने के बाद, पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं। पानी को फ़िल्टर करने के लिए वह नॉन-इलेक्ट्रिक वाटर प्योरिफायर का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें से पानी बिल्कुल भी बर्बाद नहीं होता है। उनके घर में पानी की एक बूंद भी बेकार नहीं जाती है। बारिश के पानी को सहेजने के लिए, उन्होंने अपने घर में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ और ‘स्टोरेज सिस्टम’ बनवाया है। वे बताते हैं कि उन्होंने 45 हजार लीटर पानी का एक टैंक बनवाया है, जिसमें वे घरेलू इस्तेमाल के लिए बारिश का पानी इकट्ठा करते हैं।

इसी टैंक के पानी को पीने के लिए इस्तेमाल में लिया जाता है। इसके अलावा, एक और पांच हजार लीटर का सोख्ता गड्ढा बनाया गया है, ताकि यह पानी सीधा जमीन में जाए और भूजल स्तर को बढ़ने में मदद मिले। इससे मौसम में लगभग 90 हजार लीटर पानी रिचार्ज होता है। बारिश के पानी के अलावा, वे अपने घर के ‘ग्रेवाटर’ मतलब कि बर्तन, कपड़े, और नहाने-धोने से निकलने वाले पानी को भी केली (Canna indica) पौधे के जरिए, फ़िल्टर करने बाद उपयोग करते हैं। इस पानी को पेड़-पौधों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उनका कहना है कि सालभर में इन तीनों तरीकों से, वे औसतन सवा दो लाख लीटर पानी सहेज लेते हैं।

आशीष कहते हैं कि अगर आप ग्रेवाटर को रीसायकल करके बागवानी के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो ध्यान रखें कि आप बर्तन और कपड़े धोने के लिए हर्बल उत्पाद इस्तेमाल करें। इसके अलावा, उन्होंने घर के चारों तरफ और सामने सड़क के दोनों तरफ की जमीन को कच्चा ही रहने दिया है, ताकि इससे पानी जमीन तक पहुँच सके। अक्सर घरों में लोग हर जगह को पक्का कर देते हैं, जिससे बारिश का पानी जमीन के अंदर नहीं पहुँच पाता है। आशीष कहते हैं कि पानी बचाने के अपने तरीकों से, वह प्रतिवर्ष अपनी खपत के हिसाब से, लगभग 20% पानी की बचत करते हैं और इसे वापस जमीन को दे रहे हैं। अगर हर एक घर ऐसा करे, तो कहीं भी पानी की किल्लत नहीं होगी।

घर के बगीचे से मिलती हैं 80% साग-सब्जियां: 

इस दंपति ने अपने घर की खाली जगह में तरह-तरह के फल, फूल, साग-सब्जियां और औषधीय पेड़-पौधे लगाए हैं। उन्हें इस बगिया से, उनकी जरूरत की लगभग 80% सब्जियां मिल जाती हैं। वे मौसम के अनुसार साग-सब्जियां उगाते हैं, जैसे- गिलकी, लौकी, टमाटर, मिर्च, करेला आदि। उनके बगीचे में मौसमी सब्जियों के साथ-साथ सहजन फली, अंगूर, शहतूत, आंवला, पपीता, अमरूद, पैशन फ्रूट, बादाम, नींबू, केला (तीन तरह के), सीताफल, अनार और चीकू जैसे फलों के पेड़ भी हैं।

उन्होंने लगभग 150-200 प्रजाति के पेड़-पौधे अपने घर (Sustainable House) में लगाए हुए हैं। यही वजह है कि बगीचे में तितली, चिड़िया, मधुमक्खी जैसे जीवों ने अपना बसेरा बना लिया है। आशीष कहते हैं कि उन्होंने रीठा और शिकाकाई के पेड़ भी लगाए हैं, जो कुछ सालों में फल देना शुरू कर देंगे। जिससे वह बाल, कपड़े और बर्तन आदि धोने के लिए, खुद हर्बल शैम्पू और क्लीनर बना पाएंगे।

मधुलिका अपने बगीचे के लिए जैविक खाद खुद ही तैयार करती हैं। इसके बारे में वह कहती हैं, “हमारे घर से किसी भी तरह का जैविक कचरा बाहर नहीं जाता है। किचन से निकलने वाले गीले कचरे आदि को मिलाकर, हम अपने बगीचे के लिए खाद तैयार कर लेते हैं। हमने कुछ औषधीय पौधे भी लगाए हैं। हम चाहते हैं कि जितना हो सके, प्रकृति के करीब रहा जाए।”

फल और सब्जियां उगाने के लिए कच्ची जगह के अलावा 300 गमले भी हैं

उन्होंने अपने बगीचे में गिलोय, पतरचटा, अजवाइन पत्ता, तुलसी (पांच तरह की), खस, कटकरंज, लेमन ग्रास, निर्गुडी, अडूसा, आक, गुड़हल, अश्वगंधा, शतावरी, दम बेल (dama bel), पीपली, सदाबहार और शीशम जैसे कई औषधीय गुणों वाले पौधे लगाए हैं। आशीष कहते हैं, “हमारी कोशिश है कि हम जितना हो सके प्राकृतिक तरीकों से खुद को स्वस्थ रखें। जिससे हमें प्रकृति के अनुकूल जीने में काफी मदद मिली है। हम अपने अनुभवों से कह सकते हैं कि दवाइयों पर हमारी निर्भरता बहुत हद तक कम हुई है। जैसे- मधुलिका को पहले कंप्यूटर पर काम करने के कारण, आँखों में काफी दिक्कत (dry eyes) होती थी, लेकिन अब चारों तरफ हरियाली होने के कारण, उनकी आँखों को थोड़ी राहत महसूस होती है। साथ ही, हम शुद्ध खाना खाने की कोशिश करते हैं और मधु योग भी करती हैं। जिससे उन्हें बहुत मदद मिली है।”

इन सबके अलावा, वे अपने घर के लिए अन्य चीजें जैसे अनाज, दाल, चावल आदि स्थानीय लोगों से ही खरीदते हैं। उनकी कोशिश रहती है कि वे देशी (ओपन-पॉलिनेटेड) बीजों और जैविक तरीकों से उगे अनाज ही खरीदें। उनके घर में साफ़-सफाई से लेकर चींटियों को रोकने तक और अनाज स्टोर करने के लिए, जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी कोशिश, जितना हो सके अपनी जीवनशैली को रसायनमुक्त बनाने की है।

मधुलिका और आशीष कहते हैं कि आगे उन्हें और भी कई चीजों पर काम करना है। जैसे- वह अपने घर के लिए सौर प्लांट स्थापित करना चाहते हैं। आने वाले समय में, वह ऊर्जा के मामले में भी आत्मनिर्भर होना चाहते हैं।

अंत में वे सिर्फ यही कहते हैं, “हम जिस परिवेश से हैं और जीवन में जो मौके हमें मिले हैं, उनके लिए हम खुद को बहुत खुशकिस्मत मानते हैं। क्योंकि, हर एक इंसान और परिवार की ज़िंदगी अलग है। यह सच है कि हर कोई शायद एकदम से ‘सस्टेनेबल’ और ‘इको-फ्रेंडली’ ज़िंदगी जीना शुरू नहीं कर सकता है। बहुत से लोगों के लिए, जीवन की बाकी जिम्मेदारियां पहले आती हैं। लेकिन, जिन लोगों के पास इतने संसाधन हैं कि वे पर्यावरण के अनुकूल अपनी जीवनशैली को ढाल सकते हैं, उन्हें इस दिशा में कुछ प्रयास जरूर करने चाहिए।” साभार-दी बैटर इण्डिया

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