मुरादाबाद, जेएनएन। कांठ रोड स्थित काजीपुरा गांव का साबिर अली दिल्ली में पेंटर का काम करता था। कोरोना की पहली लहर से राहत मिलने के बाद वह फिर से अपने परिवार के साथ दिल्ली रवाना हो गया। लेकिन, दूसरी लहर आई तो वहां फिर से रोजी रोटी का संकट पैदा होने लगा। लाकडाउन लगते ही काम नहीं मिला, जो कमाया था उसे खर्च करने के बाद खाली हाथ घर लौटना पड़ा।

यह सिर्फ साबिर की पीड़ा नहीं है। कोरोना ने मजदूरों पर बड़ी चोट की है, संक्रमण के खौफ से मजदूरों ने फिर बड़े शहरों से अपने घरों के लिए पलायन शुरू कर दिया है। यही वजह है कि बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों पर भीड़ बढ़ने लगी है। पिछले साल कोरोना के कहर से खौफजदा मजदूर अपने परिवार को लेकर पैदल की घर चल पड़े थे। इस बार अभी उतने खराब हालात तो नहीं है। लेकिन, प्रवासी मजदूर बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। सैकड़ों किलोमीटर से तो उन्हें पैदल नहीं आना पड़ रहा है। लेकिन बस अड्डे और रेलवे स्टेशन से इन दिनों भी घर तक पैदल ही जाना पड़ता है। रात के समय में कोई अपनी बाइक पर भी कोरोना के खौफ से मजदूरों को बैठाना पसंद नहीं करता है।

यूपी में तीन दिन के लाकडाउन का असर भी सीधी मजदूर पर ही पड़ेगा। उधर, पंचायत चुनाव होने की वजह से गांव-गांव मनेरगा का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। मजदूरों के परिवार दो वक्त की रोटी के लिए परेशान होने लगे हैं। कोरोना का यही हाल रहा तो हालत और खराब होने के आसार हैं। इसलिए सरकार को मजदूरों की हाल पर विचार करके मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने की जरूरत है। समाजसेवी संगठन भी मई दिवस पर मजदूरों के लिए कुछ करने का संकल्प लें। इससे ही मजदूर और उनके परिवार का भला होगा। साभार-दैनिक जागरण

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