कोरोना: मुंबई में लोगों को ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए इस शख़्स ने क्या नहीं किया

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देश मे कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में बेड से लेकर ऑक्सीजन तक की कमी के चलते लोगों की जान जा रही है.

ऐसे में मुंबई के मलाड स्थित मालवणी के 32 वर्षीय शाहनवाज़ शेख़ कुछ ज़िंदगियाँ बचाने के लिए मैदान में हैं.

पैसों की कमी हुई, तो उन्होंने अपनी महंगी एसयूवी कार बेच दी और ऑक्सीजन सिलेंडर ख़रीद कर लोगों को मुफ़्त ऑक्सीजन देना शुरू कर दिया. सिलेंडर कम पड़े, तो अपनी सोने की चेन के साथ कुछ और ज़रूरी चीज़ें बेच दी.

शाहनवाज़ शेख़ ने बताया, “ऑक्सीजन की कमी से लोगों की जान जा रही है. ऐसे में हमारा प्रयास है कि जितना संभव हो, हम लोगों तक मुफ़्त ऑक्सीजन पहुँचाएँ और लोगों की जान बचाएँ. इसके लिए हमने अपनी एसयूवी कार सहित कुछ क़ीमती सामान बेच दिया.”

शाहनवाज़ से ऑक्सीजन सिलेंडर ले चुके यगणेश त्रिवेदी कहते हैं, “इस महामारी के समय मे शाहनवाज़ भाई जो कर रहे हैं, वो सराहनीय है. बहुत सारे ट्रस्ट नाम के हैं, लेकिन असल में शाहनवाज़ भाई लोगों की सेवा कर रहे हैं और बिना किसी डॉक्यूमेंट या सिक्योरिटी डिपाजिट के वो सिलेंडर दे रहे हैं.”

पिछले साल ही शुरू की थी मदद

दरअसल शाहनवाज़ ने कोरोना पीड़ितों की मदद पिछले साल ही शुरू कर दी थी, जब कोरोना की पहली लहर देश में पहुँची थी. अचानक सब कुछ बंद होने के बाद रोज़ कमाने खाने वालों के सामने दो वक़्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो गया था. मुंबई के मलाड स्थित मालवणी में ज़यादातर ग़रीब लोग झोपड़पट्टियों में रहते हैं.

घरों की मरम्मत और इंटीरियर डिज़ाइनिंग का काम करने वाले शाहनवाज़ ने जब मालवणी में लोगों को परेशान देखा, तब अपनी जमा कमाई से पैसे निकाले और ग़रीबों के घरों तक राशन पहुँचाने का काम शुरू किया. प्रवासी मज़दूर, जो गाँव जाने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे, उन्हें खाना खिलाया.

शाहनवाज़ कहते हैं, “जब पहली बार लॉकडाउन लगा, तब मालवणी इलाक़े में रोज़ कमाने खाने वालों के लिए रोज़ी रोटी का रास्ता बंद हो गया था. हमारे पास जो भी पैसे थे उनसे लोगों की मदद करनी शुरू की. राशन देना शुरू किया. इसी बीच मालवणी के एक मैदान में प्रवासी मज़दूरों को बैठे देखा. उन दिनों मज़दूर अपने गाँव जाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. उन्हें रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता था और इस प्रक्रिया में वो खुले आसमान के नीचे अपनी औरतों और बच्चों के साथ गर्मी में बैठ कर भूखे प्यासे इंतज़ार करते थे. उस समय मुझे बहुत तकलीफ़ हुई और हमने उन मज़दूरों के लिए नाश्ते और खाने का प्रबंध किया.”

उसी दौर में उनके दोस्त अब्बास रिज़वी की 27 वर्षीय बहन आसमां बानो माँ बनने वाली थी. लेकिन मुंबई से सटे मुंब्रा में उनकी तबीयत ख़राब हुई और साँस लेने में तकलीफ़ शुरू हुई और अस्पताल के चक्कर लगाते लगाते आसमां ने मुंब्रा स्थित कलसेकर अस्पताल के बाहर दम तोड़ दिया.

जब अब्बास ने अपनी रिश्तेदार की कहानी शाहनवाज़ को बताई, तभी शाहनवाज़ ने योजना बनाई कि वो ज़रूरतमंदों को मुफ्त ऑक्सीजन पहुँचाएँगे, क्योंकि कोरोना काल में अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की वजह से लोगों की जानें जा रही थीं.

शाहनवाज़ ने कहा कि ‘स्थिति ख़राब थी और जब अब्बास ने आसमां की कहानी बताई तभी मेरे ध्यान में आया कि लोगों को ऑक्सीजन मुफ़्त देना चाहिए क्योंकि कई बार हॉस्पिटल में बेड नहीं मिलता है तब भी ऑक्सीजन अगर समय पर मिल जाए तो जान बचाई जा सकती है. उस समय हमें ये भी पता चला कि ऑक्सीजन की बहुत कमी है. हमने कुछ लोगों से और कुछ डॉक्टरों से ऑक्सीजन सिलेंडर के बारे में बात की और जाना कि हम कैसे सिलेंडर हासिल कर सकते हैं और कैसे लोगों की मदद कर सकते हैं

हमने योजना बनाई कि हम सिलेंडर लाएँगे और उन लोगों को उस समय तक ऑक्सीजन देंगे, जब तक उन्हें हॉस्पिटल से नहीं मिल जाता. हमारे पास जितने पैसे थे उससे क़रीब 30-40 ऑक्सीजन के सिलेंडर ख़रीदे. सोशल मीडिया पर इसका प्रचार किया. लोगों ने हमसे संपर्क करना शुरू किया. ज़रूरत इतनी बढ़ी कि 30-40 सिलेंडर कम पड़ने लगे, तभी हमने अपनी एसयूवी कार और कुछ सोने के सामान बेच दिए और क़रीब 225 सिलेंडर ख़रीद लिया. उस दौरान हमारे पास जो भी फोन आता था हम तुरंत उन्हें ऑक्सीजन देते थे. हर रात एक टीम ख़ाली सिलेंडर को रिफिल करवाती थी, ताकि ऑक्सीजन की कमी ना पड़े’

शाहनवाज़ के दोस्त सैय्यद अब्बास रिज़वी ने बताया, “हम दोनों साथ मिलकर लोगों की मदद करते थे. कुछ व्यस्तताओं के कारण मैं शाहनवाज़ के साथ लगातार काम नहीं कर पाया, लेकिन वो अब भी ज़रूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. बहुत ख़ुशी होती है उनका ये काम देख कर. मेरी रिश्तेदार की मौत के बाद ऑक्सीजन सप्लाई करने की योजना उन्होंने बनाई और अब भी वो लोगों को साँसें दे रहे हैं.”

लॉकडाउन से काम पर असर

लॉकडाउन ने शाहनवाज़ के काम पर भी असर डाला. इनका ऑफ़िस बंद हो गया. घर से थोड़ा बहुत काम कर रहे हैं. गाड़ी बिक गई. हिम्मत नहीं टूटी है. कोरोना की दूसरी लहर और बड़ी क़हर बनकर आई, तब भी शाहनवाज़ ज़रूरतमंदों तक मुफ़्त में ऑक्सीजन पहुँचा रहे हैं.

पिछले साल सैकड़ों लोगों की जान बचाने वाले शाहनवाज़ कोरोना की दूसरी लहर में भी वे कई लोगों की जान बचाने में कामयाब हो चुके हैं. क़रीब 4000 रुपए की क़ीमत वाले 225 छोटे सिलेंडर हैं, शाहनवाज़ के पास, जिसे वो बार बार भरवाते हैं और ज़रूरतमंदों तक पहुँचाते हैं. एक सिलेंडर को भरवाने में क़रीब 300 रुपये ख़र्च होते हैं. शाहनवाज़ चाहते हैं ज़यादा से ज़यादा लोगों की सहायता करने के लिए, लेकिन ऑक्सीजन की कमी होने की वजह से दिन में 40 से 50 सिलेंडर ही रिफिल हो पाता है.

शाहनवाज़ ने कहा, “हम और ज़्यादा लोगों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन ऑक्सीजन नही मिल रहा है. बहुत मुश्किल से जद्दोजहद करके दिन में 40 से 50 सिलेंडर ही रिफिल हो पाता है. अगर सारे सिलेंडर रिफिल हो जाएँ, तो हम और लोगों की मदद कर सकते हैं. कभी कभी 80 से 90 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है सिलेंडर भरवाने के लिए. बढ़ती ज़रूरत के हिसाब से रिफिल की क़ीमत भी बढ़ गई है. पिछले साल 150 से 180 रुपए में एक सिलेंडर भरा जाता था, जिसकी क़ीमत इस साल 400 से 600 रुपए हो गई है, लेकिन मुझे 300 रुपए में मिल जाता है क्योंकि वो जानते हैं कि मैं लोगों की सेवा सेवा कर रहा हूँ.”

कोरोना की दूसरी लहर में मुंबई के बांद्रा स्थित हिल रोड के रहने वाले एजाज़ फ़ारूक़ पटेल के 67 वर्षीय पिता फ़ारूक़ अहमद की तबीयत बिगड़ी, तब किसी हॉस्पिटल में जगह नहीं मिल रही थी. फ़ारूक़ पटेल को शुगर और दिल की बीमारी पहले से ही थी.

एजाज़ पटेल हॉस्पिटल का चक्कर लगा रहे थे, लेकिन कहीं कुछ हासिल नही हो रहा था. ऑक्सीजन की सख़्त ज़रूरत थी, तभी एजाज़ को किसी ने शाहनवाज़ के बारे में बताया. एजाज़ ने तुरंत शाहनवाज़ से संपर्क किया और एक घंटे के भीतर ऑक्सीजन सिलेंडर मिल गया. एजाज़ पटेल के पिता आज स्वस्थ हैं.

कई लोगों को मिल रही है मदद

एजाज़ फारूक पटेल ने बताया, “मेरे पिता डायबिटिक हैं, दिल की बीमारी भी है. जब उनकी तबीयत 8 अप्रैल 2021 को ख़राब हुई तो हॉस्पिटल में ना ही बेड मिल रहा था और ना ही ऑक्सीजन. उनका ऑक्सीजन लेवल 80-81 पर था. जब हॉस्पिटल में बेड नही मिला, तब घर पर ही अलग रखा. मैं पैसों से भी ऑक्सीजन ख़रीदना चाहता था, लेकिन नही मिल रहा था. फिर मुझे शाहनवाज़ भाई के बारे में पता चला और तुरंत उन्होंने ऑक्सीजन उपलब्ध कराया. 3 दिनों तक ऑक्सीजन सिलेंडर मेरे पास ही था. मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ. शाहनवाज़ बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. वो मुझसे कोई पैसे नहीं ले रहे थे लेकिन मैंने ज़ोर देकर रिफिल का पैसा दिया ताकि सिलेंडर किसी और तक पहुंचे.’

मुंबई के मलाड ईस्ट स्थित काठियावाड़ी चौकी के यगणेश त्रिवेदी ने आधी रात को शाहनवाज़ का दरवाज़ा खटखटाया और उन्हें ऑक्सीजन का सिलेंडर मिला. यगणेश अपनी 75 वर्षीय नानी कंचन बेन डेडिया के इलाज के लिए भटक रहे थे. कई संस्था के भी चक्कर काटे लेकिन ऑक्सीजन शाहनवाज़ शेख़ ने दिया

यगणेश त्रिवेदी कहते हैं, “मेरी नानी बीमार पड़ी. हॉस्पिटल में जगह नही मिल रही थी. और जिस हॉस्पिटल में बेड मिल रहा था उसके पैसे हम नही दे पाते. हमने कई संस्थाओं के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन सब दिखावे के निकले. वो संस्थाएं बहुत सारे डॉक्यूमेंट मांग रही थी. फिर मैंने 21 अप्रैल 2021 को शाहनवाज़ भाई के पास गया.बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने, सिर्फ़ आधार कार्ड की कॉपी लेकर रात के साढ़े बारह बजे मुझे ऑक्सीजन सिलेंडर दिया.”

इतना ही नहीं, कुछ स्थानीय नेता भी शाहनवाज़ की मदद ले रहे हैं कोरोना पीड़ित की मदद के लिए. उत्तर मुंबई के कार्यकारी ज़िला अध्यक्ष, कांग्रेस के राजू सिरसट ने बताया कि ‘हमने पेंडिमिक टास्क फोर्स के लिए हेल्पलाइन नंबर डाला था. जिसके बाद हमारे पास मदद के लिए फोन आते हैं. अगर किसी को ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है तो हम शाहनवाज़ भाई से ऑक्सीजन दिलवाते हैं. मैंने अभी कुछ ही दिनों में कई लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाया है. हमने रात में एक बजे फोन किया तब भी शाहनवाज़ भाई ने फोन उठाया और हमारी मदद की’.

दिनेश अन्नप्पा देवाडिगा के 63 वर्षीय पिता जब कोरोना से संक्रमित हुए तब भी शाहनवाज़ की मदद वहाँ तक पहुँची. करवाडी, मलाड के रहने वाले दिनेश कहते हैं कि ‘मेरे पिता जब कोरोना संक्रमित हुए तब उन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ी. अस्पताल में जगह नहीं मिल रही थी. मेरे पड़ोसी ने शाहनवाज़ भाई के बारे में बताया और 16 अप्रैल को हमने उनसे संपर्क किया. बिना कुछ लिए उन्होंने मेरी मदद की. अब मेरे पिता को अस्पताल में जगह मिल चुकी है लेकिन मुसीबत की उस घड़ी में शाहनवाज़ भाई ने हमारी बड़ी मदद की.”

हारिश शेख कहते हैं कि ‘बहुत सारे लोग सोशल मीडिया पर मदद का वादा करते हैं लेकिन ज़्यादातर फोन बंद होते हैं. हमने जब मोबाइल पर संदेश भेजा तब 15 मिनट के अंदर जवाब आया. जब हमने ऑक्सीजन की ज़रूरत बताई तब 15 मिनट के अंदर मुझे सिलेंडर मिला.”

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के एक परिवार में शाहनवाज़ का जन्म मुंबई में हुआ. ये अपने भाई, बहन, पत्नी और बेटी के साथ मुंबई में रहते हैं. पहले से ही यूनिटी एंड डिग्निटी नाम की एक संस्था बना चुके थे, लेकिन कोरोना की महामारी में लोगों की बेबसी ने शाहनवाज़ को पूरी तरह से मैदान में खींच लिया ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए.साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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