मीट की झटका-हलाल पॉलिटिक्स:दिल्ली नगर निगम का प्रस्ताव, अब बताना होगा मीट झटका है या हलाल; विपक्ष का आरोप-भाजपा बिजनेस में भी हिंदू बनाम मुसलमान कर रही है

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अभी तक सोशल मीडिया पर जारी हलाल और झटका मीट की बहस अब मेनस्ट्रीम राजनीति में चल रही है। इसकी शुरुआत दिल्ली से हुई है। नॉर्थ दिल्ली नगर निगम मीट व्यापारियों के लिए एक प्रस्ताव लेकर आया है। इसके मुताबिक व्यापारियों को अपने ग्राहकों को अब यह बताना होगा कि परोसा जाने वाला मीट हलाल है या झटका। साउथ दिल्ली नगर निगम इस तरह का प्रस्ताव पहले ही ला चुका है। मीट व्यापारी और विपक्ष का आरोप है कि भाजपा नगर-निगम के आगामी चुनाव को देखते हुए इस तरह का मुद्दा उठा रही है।

हलाल और झटका दरअसल मीट के लिए जानवरों को जिबह करने के तरीके हैं। हलाल जिसमें मुर्गे या बकरे की गर्दन को रेतते हुए धीरे-धीरे काटा जाता है जबकि झटके में गर्दन को एक बार में ही काट दिया जाता है। मुस्लिम धर्म की मान्यता के मुताबिक हलाल मीट के सिवा दूसरे तरीके से काटे गए जानवर का मीट खाना धर्म विरुद्ध होता है। ऐसे में मीट काटने का यह तरीका धर्म से जुड़ जाता है। चूंकि मीट के कारोबार में बड़ी संख्या मुस्लिमों की है, इसलिए हलाल-झटका मीट को अलग-अलग बताने के प्रस्ताव को उनके खिलाफ माना जा रहा है।

लेकिन दिल्ली नगर निगम पर काबिज भाजपा का इस बारे में कुछ और ही सोचना है। नॉर्थ दिल्ली नगर निगम के मेयर जयप्रकाश स्पष्ट कहते हैं, ‘धार्मिक भावनाएं किसी एक खास संप्रदाय की ही नहीं होतीं। हिंदू, सिख हलाल मीट नहीं खाते तो उन्हें अनजाने में हलाल मांस खिलाना उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसा है। व्यापारी हलाल या झटका जो चाहे बेचें, लेकिन वह कौन-सा मीट है यह बताना होगा।’ साउथ एमसीडी की मेयर अनामिका भी कहती हैं, ‘दूसरे धर्म वाले अपना जानें, लेकिन हिंदू धर्म में जानवरों को क्रूरता से काटना मना है।’

मीट ट्रेडर्स एसोसिएशन एमसीडी के इस फैसले को भाजपा की परंपरागत धर्म आधारित राजनीति का हिस्सा बता रही है तो आम आदमी पार्टी ने इसे भाजपा की ‘ब्यूरोक्रेसी दखलंदाजी’ की राजनीति और भ्रष्टाचार के जरिए पैसा कमाने की रणनीति बताया है। नगर निगम में आम आदमी पार्टी के इंचार्ज दुर्गेश पाठक कहते हैं, ‘निगम का प्रमुख काम है इलाके को साफ रखना, लेकिन दिल्ली की गंदगी किसी से छिपी नहीं है। उसे साफ करने की जगह भाजपा हलाल-झटका पॉलिटिक्स में व्यस्त है।’

दुर्गेश कहते हैं, ‘यह सिर्फ पैसा कमाने का नया जरिया है। अभी तक रेस्टोरेंट, होटल के लाइसेंस के जरिए पैसा कमाते थे, अब उसके अंदर क्या खिलाया जा रहा है, इसको आधार बनाकर पैसा कमाएंगे। अगले साल चुनाव हैं और इन्हें पता है कि अब यह दोबारा जीतने वाले नहीं तो जितना हो सके कमा लो।’

हलाल-झटका पॉलिटिक्स का चुनावी कनेक्शन

फिलहाल यह बहस दिल्ली नगर निगम के प्रस्ताव के कारण है। जानकार कहते हैं कि आने वाले निगम चुनाव के मद्देनजर भाजपा किसी ऐसे मुद्दे की तलाश में है जो इस मुद्दे को भुला दे और एक नया मुद्दा खड़ा कर दे। अभी यह मसला दिल्ली नगर निगम चुनाव तक सीमित नजर आता है, लेकिन भाजपा के कई सहायक संगठनों से जुड़े लोग इस मुद्दे को उठाते रहते हैं। कुछ जानकार कहते हैं कि दिल्ली से शुरू हुई इस बहस को धीरे-धीरे पूरे देश में फैलाया जाएगा और हिंदू बनाम मुसलमान का एक नया मुद्दा खड़ा होगा।

गाजीपुर पोल्ट्री मार्केट स्लॉटर हाउस के अध्यक्ष मेराजुद्दीन कुरैशी कहते हैं कि यह सब चुनावी राजनीति का हिस्सा है। अगले साल एमसीडी के चुनाव हैं। लिहाजा वोट की खातिर फिर हिंदू-मुस्लिम शुरू हो गया। इसे और फैलाया जाएगा। यूपी में तो चुनावी राजनीति के चलते कितने स्लॉटर हाउस बंद कर दिए गए, कितने लोग मार दिए गए।’ कांग्रेस नेता अजय माकन ने इस मसले पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। वे कहते हैं कि सब जानते हैं, भाजपा कैसी राजनीति करती है।

गाजीपुर पोल्ट्री मार्केट स्लॉटर हाउस के अध्यक्ष मेराजुद्दीन कुरैशी। वे कहते हैं कि ये सब वोट की राजनीति के लिए किया जा रहा है।

मीट व्यापारी मेराजुद्दीन कुरैशी कहते हैं, ‘क्या अब झटका और हलाल मीट की दुकानों में आरक्षण लागू किया जाएगा? आज भी दुकान में हलाल और झटका लिखा रहता है। जिसको जो खाना है, खाए। अगर खटिक भाई भी झटका मीट की शॉप खोलना चाहते हैं तो खोलें। इसमें कोई हर्ज नहीं। मीट का धंधा मुसलमान ज्यादातर करते हैं। उत्तर प्रदेश में उन्हें बर्बाद कर दिया गया। अब दिल्ली में धर्म के आधार पर झटका हलाल बांट रहे हैं।’

वे कहते हैं, ‘यहां 90 फीसदी दुकानें हलाल की हैं। लेकिन झटका मीट की भी दुकानें हैं। अगर मांग बढ़े तो हम भी अपने यहां खटिक भाईयों को रखेंगे कि वे झटका बनाएं। पर हमसे किसी ने अभी तक यह नहीं कहा। जिन्हें झटका खाना होता है, हम खुद ही दूसरी दुकान की तरफ इशारा कर देते हैं। दक्षिण दिल्ली में पहले से यह नियम लागू है। पूछिए वहां कितनों के चालान अब तक काटे गए?’

दिल्ली मीट मर्चेंट एसोसिएशन के जनरल सेक्रेट्री इरशाद कुरैशी कहते हैं, ‘होटलों, रेस्त्रां और दुकानों में कहीं भी दोनों तरह के मीट को लेकर फर्क नहीं किया जाता। मीट की सबसे बड़ी मंडी गाजीपुर से आने वाला 80 प्रतिशत मीट हलाल ही होता है क्योंकि यहां ज्यादातर मुसलमान ही काम करते हैं। ऐसे मामले न के बराबर ही सामने आए, जब किसी ने पूछा हो कि मीट हलाल है या झटका। एमसीडी का यह कदम धर्म आधारित विवाद और कन्फ्यूजन ही पैदा करेगा।

स्लॉटर हाउस के लिए लाइसेंस लेना जरूरी होगा। लाइसेंस केवल मीट स्लॉटर हाउस या शॉप का मिलता है। इसमें हलाला या झटका अलग से नहीं होता है। जैसे हर शॉप को एक ट्रेड लाइसेंस लेना होता है वैसे ही मीट शॉप या स्लॉटर हाउस को भी लेना पड़ता है। Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) के Food Safety and Standards (Licensing and Registration of food businesses) Regulation, 2011 के मुताबिक अब फूड सेफ्टी लाइसेंस भी लेना पड़ता है। यह हाइजीन के लिहाज से लिया जाता है। साभार-दैनिक भास्कर

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