पढ़िए बीबीसी न्यूज़ की ये खबर…
“जिस दिन बच्चा पैदा होता है, दरअसल उस दिन बच्चे के साथ-साथ माँ का भी जन्म होता है.
तो क्या हुआ कि मेरे गर्भ से निकला बच्चा अब इस दुनिया में नहीं. लेकिन हूँ तो मैं भी एक माँ ही. अपनी कोख में, मैं उसे 40 हफ़्ते नहीं रख पाई तो क्या?
क्या बच्चे को 20 हफ़्ते गर्भ में रखने वाली माँ, माँ नहीं होती.”
एक प्राइवेट कंपनी में अपनी एचआर से फ़ोन पर लड़ती हुई प्रिया (बदला हुआ नाम) इस बातचीत के ख़त्म होने से पहले ही अपना फ़ोन ग़ुस्से से काट देती हैं. अनायास ही उनकी आँखों से आँसू फिर से बहने लगते हैं. बगल में खड़े रवि (उसका पति) उन आँसुओं को रोकने की कोशिश भी नहीं करते.
सिर्फ़ कंधे पर हाथ रख कर कहते हैं, “मत जाओ कुछ दिन दफ़्तर. तुम्हारी सेहत मेरे लिए तुम्हारी नौकरी से ज़्यादा ज़रूरी है.”
भारत में छह हफ़्ते की छुट्टी
लेकिन प्रिया के फ़ोन काटते ही, दूसरे ही पल उनके फ़ोन पर एक मैसेज आया. मैसेज उनकी कंपनी के एचआर का ही था.
“आप छह हफ़्ते घर पर रह सकती हैं. इस दुख की घड़ी में आपकी कंपनी आपके साथ हैं.”
प्रिया को इस तरह की किसी छुट्टी के बारे में जानकारी ही नहीं थी. वो बस मान बैठी थीं कि कंपनी उन्हें नौकरी पर आने के लिए पूछ रही थी.
लेकिन प्रिया के पास खड़े रवि अब भी मायूस ही थे. वो इस दुख की घड़ी में प्रिया के साथ रहना चाहते थे. लेकिन भारत के श्रम क़ानून में इस तरह की छुट्टी के प्रावधान पार्टनर के लिए नहीं हैं.
हालाँकि रवि अपनी सलाना छुट्टी लेकर ऐसा कर सकते थे. जो उन्होंने किया भी.
प्रिया पिछले पाँच महीने से गर्भवती थीं. अचानक एक रात सोते समय लगा जैसे पूरा बिस्तर गीला हो गया. अस्पताल पहुँची, तो पता चला मिसकैरिज हो गया है.
वो तो उसे देख भी नहीं पाई. बार-बार रवि से पूछ रही थी कि शक्ल किस पर गई थी. कुछ तो बताओ. लड़की थी ना, मेरी तरह!!! रवि उनके पास नि:शब्द खड़े थे.
वो शनिवार का दिन था. अगले 48 घंटे दोनों ने एक-दूसरे को केवल देखा. दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई. सोमवार को जब वो दफ़्तर नहीं पहुँचीं, तो मंगलवार को एचआर का ख़ुद ही फ़ोन आ गया.
दोनों इतने ग़मगीन थे कि ना तो दफ़्तर ना तो घरवालों को ही कुछ बता पाए. संभलने का मौक़ा ही नहीं मिला.
दिल्ली में प्रिया घर पर छह हफ़्ते तक अकेले ख़ुद को संभालती रहीं और रवि दफ़्तर में अपने चेहरे पर दर्द को ख़ुशी से ढँकने की कोशिश के साथ पहले की ही तरह काम करते थे.
दोनों अगर न्यूज़ीलैंड में होते, तो शायद रवि प्रिया के साथ कुछ दिन और रहते.
न्यूज़ीलैंड सरकार ने बुधवार को एक ऐतिहासिक फै़सला किया, न्यूज़ीलैंड ने मिसकैरिज और स्टिलबर्थ के दौरान कपल को तीन दिन की पेड लीव की इजाज़त दी. ऐसा करने वाला संभवत: वो दुनिया का पहला देश है.
भारत में क्या कहता है क़ानून
भारत में मिसकैरिज के लिए अलग से ‘मिसकैरिज लीव’ का प्रावधान तो है, लेकिन महिला के पार्टनर के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
इसलिए रवि, प्रिया के साथ छुट्टी पर घर पर नहीं रह सके. रवि के मुताबिक़, “उन 20 हफ़्तों में मैंने पूरे 20 साल के साथ के बारे में सोच लिया था. उसका नाम, उसकी पहले ड्रेस, उसका पालना, डिज़ाइनर जूते, यहाँ तक कि उसके कमरे की दीवारों के रंग तक सोच लिया था. आख़िर क्यों सरकारें बच्चे को केवल माँ से जोड़ कर देखतीं हैं. पिता का भी उस पर उतना ही हक़ होता है.”
प्रिया जैसी कई महिलाएँ हैं, जिन्हें ये नहीं मालूम कि भारत के श्रम क़ानून में महिलाओं के लिए इस तरह की छुट्टी का प्रावधान सालों से है.
भारत का मैटरनिटी बेनिफ़िट एक्ट 1961 के तहत मिसकैरिज के बाद वेतन सहित छह हफ़्ते की छुट्टी देना अनिवार्य है. महिला छह हफ़्तों तक ना तो काम पर लौट सकती है और ना ही कंपनी उनको ऐसा करने के लिए मजबूर कर सकती है.
इसके लिए महिला को डॉक्टरी सर्टिफ़िकेट दिखाने की ज़रूरत होगी. इस क़ानून को बाद में 2017 में संशोधित किया गया है, लेकिन मिसकैरिज से जुड़ा प्रावधान अब भी है.
ये क़ानून भारत में हर फ़ैक्टरी, माइन्स, बागान, दुकान या संस्थान, जहाँ 10 से ज़्यादा महिला कर्मचारी काम करती हैं, उस पर लागू होता है.
हालाँकि सच्चाई ये भी है कि कई प्राइवेट संस्थानों में इस पर अमल नहीं किया जाता. कई बार महिलाएँ ख़ुद इस पर बात करना पसंद नहीं करतीं, इसलिए चुपचाप कुछ दिन की ‘सिक लीव’ लेकर काम पर लौट जाती हैं.
लेकिन न्यूज़ीलैंड में पास इस नए क़ानून को लेकर लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, जिन दफ़्तरों में ऐसी छुट्टियों का प्रावधान है.
Proud to say NDTV has for long had 6 weeks paid leave after miscarriage! @PrannoyRoyNDTV @soniandtv @Suparna_Singh https://t.co/YgPPHWDGMa
— Sonal MehrotraKapoor (@Sonal_MK) March 25, 2021
न्यूज़ीलैंड का क़ानून ऐतिहासिक क्यों है?
न्यूज़ीलैंड में इस बिल को पेश करते हुए वहाँ की सांसद ने कहा, “मिसकैरिज किसी तरह की बीमारी नहीं, जो इसके लिए ‘सिक लीव’ लेने की ज़रूरत पड़े. ये एक तरह की अपूरणीय क्षति है, जिससे संभलने का मौक़ा सभी को मिलना चाहिए.”
इस वजह से न्यूज़ीलैंड सरकार ने दोनों पार्टनर के लिए मिसकैरिज लीव का प्रावधान किया है.
मिसकैरिज के बाद पुरुष पार्टनर के लिए इस तरह से ‘पेड लीव’ का प्रावधान करने वाला न्यूज़ीलैंड संभवत: पहला देश है.
Final reading of my Bereavement Leave for Miscarriage Bill. This is a Bill about workers’ rights and fairness. I hope it gives people time to grieve and promotes greater openness about miscarriage. We should not be fearful of our bodies. pic.twitter.com/dwUWINVjLm
— Ginny Andersen (@ginnyandersen) March 24, 2021
ये प्रावधान स्टिलबर्थ के मामले में भी लागू होगा. इतना ही नहीं सरोगेसी से बच्चा पैदा करने की सूरत में मिसकैरिज होता है, तो दोनों पार्टनर पर भी इसे लागू करने की बात कही गई है.
मिसकैरिज और स्टिलबर्थ आख़िर क्या हैं?
न्यूज़ीलैंड में मिसकैरिज कितना आम है, इसका अंदाजा आँकड़ों से लगाया जा सकता है.
बिल पेश करते समय सांसद जिनी एंडरसन ने बताया कि वहाँ हर चार में से एक महिला ने ज़िंदगी में मिसकैरिज का सामना किया है.
अमेरिकन सोसाइटी फ़ॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया भर में कम से कम 30 फ़ीसदी प्रेग्नेंसी मिसकैरिज की वजह से ख़त्म हो जाती है.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के मुताबिक़ भारत में ये आँकड़ा 15 फ़ीसदी है.
मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ‘स्पॉन्टेनस अबॉर्शन’ या ‘प्रेग्नेंसी लॉस’ भी कहते हैं.
गाइनोकॉलजिस्ट डॉ. अनीता गुप्ता के मुताबिक़ मिसकैरिज दो स्थितियों में हो सकता है. पहला, जब भ्रूण ठीक हो, लेकिन दूसरी वजहों से ब्लीडिंग हो जाए. दूसरी स्थिति में, अगर भ्रूण की गर्भ में मौत हो जाए, तो अबॉर्शन करना ज़रूरी हो जाता है. मिसकैरिज तब होता है, जब भ्रूण की गर्भ में ही मौत हो जाती है. प्रेग्नेंसी के 20 हफ़्ते तक अगर भ्रूण की मौत होती, तो इसे मिसकैरिज कहते हैं.
कुछ महिलाओं में गर्भ नहीं ठहरता और उनमें ऐसा होने की संभवाना ज़्यादा होती है. ब्लीडिंग, स्पॉटिंग (बहुत थोड़ा-थोड़ा ख़ून निकलना), पेट और कमर में दर्द, ख़ून के साथ टिश्यू निकलना- मिसकैरिज के आम लक्षण माने जाते हैं.
हालाँकि ये ज़रूरी नहीं कि प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग या स्पॉटिंग के बाद मिसकैरिज हो ही जाए, लेकिन ऐसा होने के बाद सतर्क ज़रूर हो जाना चाहिए.
डॉ. अनीता के मुताबिक़ मिसकैरिज के बाद अमूमन महिला की बॉडी को स्वस्थ होने में महीने भर का समय लगता है. ब्लड लॉस कितना होता है, ये उस पर निर्भर करता है. इसलिए भारतीय क़ानून में छह हफ़्ते की छुट्टी का प्रावधान किया गया है.
‘स्टिलबर्थ’ का मतलब है बच्चा जब पैदा हुआ, तो उसमें जान नहीं थी. इसे बच्चा पैदा होना ही माना जाता है और डिलीवरी की कैटेगरी में ही रखा गया है. चूँकि अगर बच्चा स्वस्थ होता है, तो माँ को उसको स्तनपान कराना होता है, उसकी केयर करनी होती है, इसलिए 6 महीने के मातृत्व अवकाश का प्रावधान भारत में है.
डॉ. अनीता कहती हैं कि ‘स्टिलबर्थ’ में इस अवकाश को कम किया जा सकता है. अलग-अलग कंपनियों में इसका अलग-अलग प्रावधान है.
न्यूज़ीलैंड में महिलाओं के लिए अधिकार
महिलाओं के हित के लिए क़ानून बनाने में न्यूज़ीलैंड हमेशा से आगे रहा है.
घरेलू हिंसा से प्रभावित महिलाओं के लिए वहाँ 10 दिन की सालाना अतिरिक्त छुट्टी का प्रावधान है. फिलीपींस के बाद ऐसा करने वाला वो दूसरा देश है.
40 साल तक वहाँ अबॉर्शन को अपराध की श्रेणी में रखा गया था, जिसे पिछले ही साल हटाया गया है. अब इसे ‘हेल्थ कंडीशन’ मानते हुए इस पर फ़ैसला लेने की अनुमति दी गई है.
ऐसे ज़्यादातर क़ानून का श्रेय न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डन को जाता है. साल 2016 में जब जेसिंडा प्रधानमंत्री चुनी गईं, तो वो देश की सबसे युवा प्रधानमंत्री बनीं.
प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने 2018 में बच्ची को जन्म दिया. ऐसा करने वाली वो दुनिया की दूसरी नेता थीं. उसी साल वो अपने बच्चे के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा भी पहुँची. कोरोना महामारी के दौरान भी उन्होंने अच्छा काम किया, जिसकी दुनिया भर में प्रशंसा हुई.साभार- बीबीसी न्यूज़
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