अगर किसी चुनाव में सबसे ज्यादा वोट NOTA को पड़ जाएं तो क्या होगा? मौजूदा नियमों में इसका जवाब है NOTA के बाद जिस उम्मीदवार को सबसे ज्यादा वोट मिले होंगे वो जीत जाएगा, लेकिन भविष्य में भी ऐसा ही हो ऐसा जरूरी नहीं है।
दरअसल, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। नोटिस में कोर्ट ने पूछा अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादातर लोग चुनाव के समय NOTA का बटन दबाते हैं, तो क्या उसका चुनाव रद्द होना चाहिए और नए सिरे से चुनाव कराया जाना चाहिए? ये नोटिस लोगों को राइट टु रिजेक्ट देने के लिए डाली गई एक याचिका की सुनवाई के बाद जारी किया गया है।
याचिकाकर्ता की मांग क्या है?
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की मांग है कि अगर किसी चुनाव में NOTA के पक्ष में सबसे ज्यादा वोट पड़ते हैं तो उस चुनाव में उतरे सभी प्रत्याशियों को रिजेक्टेड माना जाए। वहां नए सिरे से चुनाव हों और रिजेक्टेड प्रत्याशियों को इस चुनाव में उतरने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाए। राइट टु रिजेक्ट एंड इलेक्ट से आम लोगों को बेहतर जनप्रतिनिधि चुनने की शक्ति मिलेगी। पार्टियां भी मनमाने तरीके से उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतारेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर क्या कहा?
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि यह एक संवैधानिक समस्या है। अगर याचिकाकर्ता का तर्क मान लिया जाए और चुनाव में जनता राजनीतिक दलों के कई उम्मीदवारों को रिजेक्ट कर देती है तो ऐसे में विधानसभा और संसद का गठन कैसे होगा? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अगर NOTA पर वोट ज्यादा पड़ते हैं, कोई उम्मीदवार नहीं जीतता है। तो समय रहते दोबारा चुनाव कराए जा सकते हैं। ऐसे में सब नए उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। अब सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
NOTA तो अभी भी है, राइट टु रिजेक्ट में अलग क्या हो जाएगा?
2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में NOTA के विकल्प को जोड़ने के लिए एक याचिका लगाई। इसके बाद 2013 के चुनाव में पहली बार दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और मिजोरम के विधानसभा चुनाव में NOTA का उपयोग हुआ।
2018 के पहले तक NOTA को मिले वोट को अवैध मत की तरह माना जाता था, लेकिन अब ये एक कैंडिडेट की तरह माना जाता है। अगर NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं तो इस स्थिति में चुनाव में जो प्रत्याशी NOTA के बाद सबसे ज्यादा वोट पाता है उसे जीता हुआ माना जाता है।
इस पर वकील मनेका गुरुस्वामी ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर 99% वोटर्स NOTA का बटन दबाते हैं, तो उसका कोई महत्व नहीं है। बाकि 1% वोटर्स के वोट तय करते हैं कि चुनाव कौन जीतेगा। इस वजह से NOTA पर सबसे ज्यादा वोट पड़ने पर उस जगह का चुनाव रद्द होना चाहिए। लोगों के वोट का सम्मान होना चाहिए। चुनाव रद्द होने की इसी मांग को राइट टु रिजेक्ट कहा जा रहा है।
NOTA काे तो आज तक कभी सबसे ज्यादा वोट नहीं मिले फिर राइट टु रिजेक्ट आने से क्या बदल जाएगा?
याचिका लगाने वाले अश्विनी उपाध्याय कहते हैं ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि हमने ऐसी व्यवस्था नहीं दी। अभी NOTA का इस्तेमाल सिर्फ वो लोग कर रहे हैं जो बहुत ज्यादा फ्रस्ट्रेटेड हैं। वो लोग जाकर अपना गुस्सा EVM पर निकालकर आते हैं, लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो फ्रस्ट्रेट तो हैं लेकिन वो वोट डालने ही नहीं जाते। उन्हें लगता है कि जब NOTA पर वोट देने से कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा, तो वोट डालने जाने का क्या मतलब। क्योंकि NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिल भी गए तो दूसरे नंबर पर जो कैंडिडेट होगा वो विजेता हो जाएगा।
राइट टु रिजेक्ट आने पर इस तरह के लोग वोट डालने जाएंगे। इससे न सिर्फ वोटिंग परसेंटेज बढ़ेगा बल्कि, राजनीतिक पार्टियां भी अच्छे कैंडिडेट को टिकट देने के लिए मजबूर हो जाएंगी। इसके साथ ही इससे जातिवाद, भ्रष्टाचार खत्म होगा। प्रत्याशियों की पैराशूटिंग भी बंद हो जाएगी।
राइट टु रिजेक्ट को लेकर पहले भी कुछ हुआ है क्या?
1999 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में पहली बार राइट टु रिजेक्ट का सुझाव दिया था। इसी रिपोर्ट में कहा गया कि चुनाव लड़ने वाले जिस कैंडिडेट को 50% से अधिक वोट मिले सिर्फ उसे ही विजेता घोषित किया जाए। 2001 में चुनाव आयोग ने भी राइट टु रिजेक्ट का समर्थन किया। 2004 के इलेक्टोरल रिफॉर्म प्रपोजल में भी चुनाव आयोग ने राइट टु रिजेक्ट का जिक्र किया था। चुनाव आयोग की पहल के बाद ही NOTA आया।
क्या दुनिया में कहीं और भी NOTA जैसी व्यवस्था है?
NOTA का सबसे पहले उपयोग अमेरिका के नेवादा में वोटिंग के दौरान 1976 में हुआ। भारत के अलावा अभी ग्रीस, कोलंबिया, यूक्रेन, स्पेन और रूस जैसे देशों के चुनाव में NOTA जैसा विकल्प दिया जाता है।साभार-दैनिक भास्कर
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