Ghaziabad news: गाजियाबाद में बर्न यूनिट नहीं, भटकते रहे गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल एरिया की आग में झुलसे लोग

2007 में 22 लाख रुपये की लागत से गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल में एक बर्न यूनिट तैयार की गई थी। झुलसे मरीजों को भर्ती करने के लिए छह बेड, एयर कंडीशन के साथ इसे शुरू किया गया। गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल एरिया में झुलसे लोगों को कहीं भर्ती नहीं मिली।

गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल एरिया में गुरुवार रात फैक्ट्री में लगी आग के बाद एक बार फिर जिले की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े हो गए हैं। हालत इतनी खराब है कि यहां आगजनी में झुलसे मरीजों के इलाज की व्यवस्था नहीं है। उन्हें दिल्ली रेफर कर दिया जाता है।

गुरुवार रात साइट-4 में फैक्ट्री में हुए हादसे के दौरान गंभीर रूप से झुलसे लोगों को कौशांबी के यशोदा अस्पताल और वैशाली के मैक्स अस्पताल लाया गया, लेकिन बर्न यूनिट की सुविधा न मिलने पर इन्हें दिल्ली में रेफर कर दिया गया। दिल्ली के अस्पतालों में एक घायल को बेड नहीं मिलने पर उसे वापस टीएचए के अस्पताल लाया गया। इस बीच सामने आया कि जिले में कहीं सरकारी स्तर पर बर्न यूनिट की व्यवस्था नहीं है, जिससे झुलसे लोगों को इलाज के लिए भटकना पड़ता है।

धूल खा रही 22 लाख की बर्न यूनिट
2007 में 22 लाख रुपये की लागत से एमएमजी अस्पताल में एक बर्न यूनिट तैयार की गई थी। झुलसे मरीजों को भर्ती करने के लिए छह बेड, एयर कंडीशन के साथ इसे शुरू किया गया। शुरुआत में एक नर्स और एक वॉर्ड बॉय की तैनाती की गई, जबकि वॉर्ड के लिए एक सर्जन, एक प्लास्टिक सर्जन, तीन नर्स, दो वॉर्ड बॉय की जरूरत थी। बर्न यूनिट को स्टाफ मिल न सका और इस पर ताला लगा दिया गया। इसे हर दीवाली शुरू करने की बात तो चलती है, लेकिन काम कुछ नहीं किया जाता। ऐसे में यहां आने वाले गंभीर मरीजों को दिल्ली रेफर कर दिया जाता है।

हर महीने आते हैं 20 से 25 केस
गाजियाबाद में महीने में 20 से 25 बर्न केस आते हैं। ऐसे में झुलसे लोगों को तत्काल उपचार के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल और जीटीबी अस्पताल के लिए रेफर किया जाता है।

जिले में बर्न यूनिट नहीं है। एमएमजी में जो यूनिट है, वह भी नॉन फंक्शनल है। जैसे ही स्टाफ या अन्य सुविधाएं मिलेंगी, इसे शुरू किया जाएगा, लेकिन फिलहाल केस दिल्ली रेफर किए जाते हैं

डॉ. एनके गुप्ता, सीएमओ

छह साल में हुए हादसे…
नवंबर-2016: शहीद नगर में जैकेट फैक्ट्री में लगी भीषण आग। हादसे में 13 मजदूर जिंदा जले।
अप्रैल-2017: फर्रुखनगर में पटाखा फैक्ट्री में रखी आतिशबाजी में आग से 5 लोगों की हुई मौत।
जून-2019: खोड़ा में 11 हजार केवी लाइन की चपेट में आने से 34 वर्षीय युवक की मौत। युवक के 4 साल के बेटे को दिल्ली ले जाना पड़ा।
जुलाई-2018: शालीमार गार्डन एक्सटेंशन 2 में संविदाकर्मी ट्रांसफॉर्मर पर काम करने के दौरान करंट की चपेट में आने से झुलसा, जिसे जीटीबी में भर्ती किया गया।
नवंबर-2020: खोड़ा के सुभाष पार्क में तीन लोग करंट की चपेट आने से झुलसे, जिन्हें दिल्ली के अस्पताल ले जाया गया, लेकिन एक ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
सितंबर-2020: अर्थला में परिवार के तीन सदस्य करंट की चपेट में आए, जिन्हें दिल्ली में भर्ती किया गया था।साभार-दैनिक जागरण

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