नई दिल्ली । लगभग एक शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद, विश्व के अधिकांश देशों ने महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में एक दिन समर्पित किया है। महिला शिक्षा, मातृत्व सुरक्षा और स्वच्छता आदि विषय को यदि छोड़ दिया जाएं तो ऐसा एक भी देश नहीं है जहां पूर्ण रूप से लैंगिक समानता (जेंडर इक्वेलिटी) को प्राप्त कर लिया गया हो। महिलाओं के पक्ष में देखे जाने वाले सकारात्मक बदलाव की गति विश्व भर में बहुत कम है। विकासशील देशों में यह बात अधिक सही साबित होती है जहां महिलाओं की तरक्की को अनादि काल से सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों से रोका गया है या बाधित किया गया है।
11 साल पहले हमने जब वी कनेक्ट इंटरनेशनल की शुरूआत की तब हमने ऐसे संसार की कल्पना की जहां महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए पुरूषों के सामान ही आर्थिक अवसर प्राप्त हों। विशेष रूप से व्यवसायों को डिज़ाइन करने और समस्याओं के समाधान के उन्हें ऐसे अवसर मिले, जिससे वह अपने समूह के बीच आर्थिक तरक्की कर आजीविका को बेहतर कर सके। हालांकि अभी विश्व भर में निजी क्षेत्र के केवल 30 प्रतिशत व्यवसाय ही महिला स्वामित्व वाले हैं। हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि वर्ष 2021 में महिला उद्यमिता की यह हिस्सेदारी बड़े कारपोरेट और सरकारी क्षेत्र के आपूर्तिकर्ताओं के बीच केवल एक प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है, आप समझ रहे हैं तीस प्रतिशत आबादी और उद्यमिता में केवल एक प्रतिशत की हिस्सेदारी।
निश्चित रूप से हम इससे कहीं बेहतर कर सकते हैं और हमें यह करना चाहिए। इसके लिए हर साल केवल एक ही दिन अपनी इच्छानुसार आवाज़ बुलंद करने से कहीं अधिक प्रयास की आवश्यकता है। लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए हमें साल भर एक साथ मिल कर काम करना होगा। यदि हम यूनाइटेडनेशन सस्टनेबल डवलपमेंट गोल पांच (एसडीजी पांच)को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा, तब ही वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता को प्राप्त किया जा सकेगा।
निश्चित रूप से हम इससे कहीं बेहतर कर सकते हैं और हमें यह करना चाहिए। इसके लिए हर साल केवल एक ही दिन अपनी इच्छानुसार आवाज़ बुलंद करने से कहीं अधिक प्रयास की आवश्यकता है। लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए हमें साल भर एक साथ मिल कर काम करना होगा। यदि हम यूनाइटेडनेशन सस्टनेबल डवलपमेंट गोल पांच (एसडीजी पांच)को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा, तब ही वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता को प्राप्त किया जा सकेगा।
महिला स्वामित्व वाले व्यवसायों को व्यापक बाजार उपलब्ध कराने और व्यवसाय में लिंग आधारित अंतर (महिला-पुरूष) को दूर कर, समान अवसर उपलब्ध कराने की यह रणनीति महिलाओं को स्वालंब बनाने में कारगर होगी, कल्पना कीजिए यह कितना प्रभावकारी होगा जबकि महिला स्वामित्व वाले व्यवसायों की भागीदारी बढ़ेगी और महिलाएं आठ मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार देने में सक्षम होगीं।
ऐसा करने से महिलाओं में नेतृत्व की भूमिका मजबूत होगी और वह अधिक चुनौतियों को स्वीकार करेगीं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आरबीआई द्वारा 2019 में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के सरकार के राजनीतिक उद्देश्यों के बावजूद देश के सूक्ष्म, मध्यम और छोटे व्यवसायों में महिलाओं की भागीदारी केवल 14 प्रतिशत ही है, कुल स्टार्ट अप मे केवल 5.9 प्रतिशत महिला स्वामित्व वाले स्टार्टअप हैं। इसलिए महिलाओं के पास आगे बढ़ने के अपार अवसर हैं।
स्पष्ट है कि महिला स्वामित्व वाले व्यवसायों में निवेश करना बड़े स्तर के आपूर्तिकर्ताओं को अब फायदे का सौदा लग रहा है। लेकिन व्यक्तिगत रूप से उपभोक्ताओं के लिए यह एक बुद्धिमान भरा निर्णय होगा, यदि वह स्थानीय स्तर पर महिला स्वामित्व वाले व्यवसायों को बढ़ावा देगें, इससे पूरे समुदाय को लाभ मिलेगा।
(लेखिका -एलिज़ाबेथ वाज़क्वेज, वी कनेक्ट इंटरनेशनल की कार्यकारी अधिकारी और सह संस्थापक हैं। वी कनेक्ट वैश्विक स्तर पर आर्थिक सशक्तिकरण और महिला आपूर्तिकर्ताओं का नेतृत्व करता है। एलिज़ाबेथ वाज़क्वेज, बाइंग फॉर इंपैक्ट किताब की लेखिका भी हैं, जिसमें उन्होंने बताया है कि महिला आपूर्ति कर्ता से ख़रीददारी करना विश्व की तस्वीर को बदल सकता है।) साभार दैनिक जागरण
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