वंदना और उस्मान के साथ शबनम का बेटा जैद। वंदना कहती हैं, ‘आज भी वो अकेले छत पर नहीं जा पाता है। ये एक स्पेशल चाइल्ड है। हमने ऐसे ही इसकी केयर की है।’
- परिवार के सात लोगों की हत्या के जुर्म में शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई है, वारदात के समय उसके पेट में बच्चा था
- शबनम के बेटे जैद को बुलंदशहर के पति-पत्नी ने गोद लिया है, दोनों करीब छह साल से बच्चे की परवरिश कर रहे हैं
‘जब हम इसे जेल से लाए थे, यह बहुत डरा-सहमा रहता था। उस समय इसकी उम्र करीब सात साल थी, लेकिन किसी तीन साल के बच्चे की तरह रहता था। अंधेरे से बहुत डरता था। रात में वो अचानक जाग जाता था। कहता था कि किसी चूहे ने मेरा पैर काटा है, जैसे जेल में काटते थे।’ यह बताते हुए वंदना थोड़ा सिहर जाती हैं।
बुलंदशहर के वंदना और उस्मान ने शबनम के बेटे जैद (काल्पनिक नाम) को जब गोद लिया था तब वो 6 साल 7 महीने का था। जैद उसी शबनम का बेटा है, जिसे अपने प्रेमी सलीम के साथ अपने ही परिवार के सात लोगों का कत्ल करने के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई गई है। अमरोहा के बावनखेड़ी गांव में अप्रैल 2008 में हुए इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड के वक्त जैद शबनम के पेट में था। उसने जेल की चारदीवार में ही आंखें खोलीं। शबनम जब भी तारीख पर जाती थी, जैद उसकी गोद में होता। कचहरी के भीड़-भड़क्के से सहमा-सहमा जैद शबनम के गले से चिपका रहता। जैद का लीगल गार्जियन बनने के लिए उस्मान और वंदना को काफी मशक्कत करनी पड़ी। आखिरकार दोनों सफल हुए और आज जैद उनकी गोद में है।
30 जुलाई 2015 को जैद जब पहली बार मुरादाबाद जेल से बाहर निकल अपने नए माता-पिता उस्मान और वंदना की गोद में आया तो उसने तीन ख्वाहिशें जाहिर कीं। आइसक्रीम खाने की, ऑफिस के कपड़े सिलवाने की और सलमान खान से मिलने की।’ उस दिन को याद करके उस्मान कहते हैं, ‘ढाई साल की मशक्कत के बाद जैद हमारी गोद में था। वो हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था। हमने उसे आइसक्रीम खिलाई। ऑफिस के कपड़ों की बात हमारी समझ में बाद में आई। वो दरअसल, किसी अधिकारी की तरह कोट-पैंट पहनना चाहता था। वो भी हमने उसे सिलवाकर दिए, लेकिन सलमान खान से हम उसे नहीं मिलवा सके हैं, उसकी ये ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश भी हम करेंगे।’
‘शबनम को पहले से जानता था, ठान लिया था कि उसके बच्चे को गोद लूंगा’
उस्मान शबनम को कॉलेज के दिनों से जानते हैं। अमरोहा के जेएस हिंदू कॉलेज में शबनम उनकी सीनियर थी। उस्मान शबनम को एक ऐसी मददगार के तौर पर याद करते हैं, ‘ उन्होंने कॉलेज में हमारी फीस भी भरी थी। बावनखेड़ी हत्याकांड के बाद की खबरें आने के बाद से ही मैं शबनम से जेल में मिलने की कोशिशें कर रहा था।’ उस्मान कहते हैं, ‘मैंने ढाई साल तक दो दर्जन बार शबनम से जेल में मिलने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। फिर किसी तरह शबनम से मुलाकात कर सका। मैंने ठान लिया था कि मैं उसके बच्चे को गोद लूंगा।’
उस्मान बताते हैं, ‘मैंने बच्चे का लीगल गार्जियन बनने के लिए कई बार अर्जी लगाई, लेकिन हर बार एप्लीकेशन रद्द कर दिया जाता था। उसके पीछे वजह यह बताई जाती थी कि किसी कुंवारे व्यक्ति को बच्चा गोद नहीं दिया जा सकता है।’ वे कहते हैं कि इसके बाद मैंने शादी करने की ठान ली। उस्मान कहते हैं, ‘कई लड़कियों से शादी की बात चली, लेकिन बच्चा गोद लेने की बात सुनकर सबने इनकार कर दिया।’ फिर उस्मान ने अपनी दोस्त वंदना के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। वो शादी करने और बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद उस्मान ने तुरंत निकाह के दस्तावेज तैयार कराए और फिर अर्जी दे दी।
उस्मान कहते हैं, ‘शुरुआत में शबनम भी मुझे बच्चा गोद देने में हिचक रही थी। एकबारगी तो उसने साफ इनकार कर दिया, लेकिन हम कोशिश करते रहे और आखिर जैद हमारी और वंदना की गोद में आ गया।’
वंदना याद करती हैं, ‘जैद के हमारे पास आने के बाद जब हम उसे दूसरी बार जेल में शबनम से मिलाने ले गए तो वो उसकी गोद में नहीं गया। उसने कहा कि मुझे वैसी ही स्मेल आ रही है जैसी जेल में आती थी। वो उस गंध से भी डरता था।’ वे कहती हैं, ‘वो हर चीज को अलग तरह से देखता था। जब हम जैद को घर लाए थे तो ये भी नहीं पता था कि भैंस क्या होती है। बहुत सारी सामान्य चीजों के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं थी। वो अब 12 साल का हो गया है, लेकिन अभी भी बच्चा ही है। किसी टीनएजर की तरह व्यवहार नहीं करता है।’
बुलंदशहर में उस्मान-वंदना के घर पहुंचने पर जैद घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था। सामान्य सा दिखने वाला जैद कैमरा देख सहम जाता है। बातचीत करने की कोशिश करने पर उसने कहा, ‘आप भी वही सवाल पूछेेंगी जो बाकी लोग पूछते हैं।’ जब मैंने कहा कि सिर्फ आपकी हॉबी के बारे में बात करूंगी तो वो बात करने के लिए तैयार हुआ। जैद ने बताया कि उसे डांस करना, गाना और खेलना अच्छा लगता है। उसने बताया कि उसे भूतों से डर लगता है। क्या उन्होंने कभी भूत देखा है इस पर वो कहता है, ‘जब मैं छोटा था, जेल में एक पागल आंटी थीं जो वॉशरूम में उल्टा लटक जाती थीं। उन्हें देखकर डर लगता था। तबसे भूत से डरता हूं।’
जैद कहता है, ‘जेल में कुछ भी अच्छा नहीं था। बस दो जेलर अंकल थे जो अच्छे से बात करते थे। बड़ी अम्मी (शबनम) हमेशा कहती थीं कि अच्छा आदमी बनना और सबकी मदद करना। वो मुझे पढ़ाती भी थीं।’ जैद शबनम को बड़ी अम्मी और वंदना को छोटी अम्मी कहता है।
जेल से बाहर उस्मान के घर आने के छह साल बाद जैद कुछ सामान्य हुआ है, लेकिन अंधेरे से उसे आज भी डर लगता है। वंदना कहती हैं, ‘आज भी वो अकेले छत पर नहीं जा पाता है। ये एक स्पेशल चाइल्ड है। हमने ऐसे ही इसकी केयर की है। एक साल तक उसकी काउंसिलिंग भी करवाई है।’
मीडिया में खुद की तस्वीरें छपने से भी जैद परेशान है। उस्मान कहते हैं, ‘कुछ पत्रकार बात करने आए थे। उन्होंने जैद की तस्वीरें न छापने का वादा किया था, लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया में सबने उसकी तस्वीरें वायरल कर दीं। हम बहुत परेशान हैं। यहां किसी को उसके बारे में पता नहीं था। कोई नहीं जानता था कि यह शबनम का बेटा है। अब सब जान गए हैं। हम इस बात को लेकर परेशान हैं कि स्कूल में क्या रिएक्शन होगा।’ वंदना कहती हैं, ‘शबनम ने जो किया वो किया। उसमें जैद की क्या गलती है। वो एक अच्छी जिंदगी का हकदार है। हम अपने बेटे को एक बेहतरीन जिंदगी देने की कोशिश कर रहे हैं।’
‘हमें शबनम की संपत्ति से कोई मतलब नहीं’
उस्मान और वंदना ने अपना बच्चा न करने का फैसला लिया है। वंदना कहती हैं, ‘मुझे डर था कि अगर मैं अपना बच्चा पैदा कर लूंगी तो जैद को लेकर मेरी ममता में फर्क ना आ जाए। मुझे ये भी डर था कि बड़े होकर कहीं वो अपने आप को अलग-थलग महसूस न करे। उस्मान भी इससे राजी हैं।’
बावनखेड़ी में शबनम के रिश्तेदारों ने फांसी के बाद उसका शव लेने से इनकार किया है। क्या उस्मान उसका शव लेंगे? इस सवाल पर वो कहते हैं, ‘हम शबनम से पूछेंगे कि वो कहां दफन होना चाहती है। जैसा वो चाहेगी वैसा ही होगा। अगर वो अपना शरीर दान करना चाहेगी तो उसकी व्यवस्था कराई जाएगी। ये फैसला शबनम और उसके बेटे का होगा कि क्या करना है, हम बस साथ देंगे।’
शबनम के परिवार में तो कोई बचा नहीं, उसकी संपत्ति का क्या होगा? क्या आप जैद को उसका हक दिलाएंगे? इस सवाल पर उस्मान कहते हैं, ‘शबनम ने हमसे वादा लिया था कि हम जैद को कभी बावनखेड़ी लेकर नहीं जाएंगे। हम उसे कभी वहां लेकर न गए हैं, न आगे लेकर जाएंगे। गांव में संपत्ति से भी हमें कोई मतलब नहीं है। हमें बेटा चाहिए था जो हमें मिल गया है।’साभार-दैनिक भास्कर
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