आज मैप्स का इस्तेमाल हर जगह हो रहा है। आपको कहीं जाना है तो रास्ता देखने के लिए गूगल मैप्स की मदद लेते हैं। फूड डिलीवरी ऐप पर खाना ऑर्डर करते हैं या ई-कॉमर्स ऐप पर ऑर्डर करते हैं तो उसकी ट्रैकिंग मैप्स पर होती है। इसे जियोस्पेशियल (भू-स्थानिक) डेटा और सर्विसेज कहते हैं। भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने जियोस्पेशियल (भू-स्थानिक) डेटा और सेवाओं को सार्वजनिक कर दिया है।
सरकार का कहना है कि जो सर्विसेज ग्लोबल लेवल पर उपलब्ध हैं, उन्हें रेगुलेट करने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञ सरकार के इस फैसले को देश की मैपिंग पॉलिसी में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव मान रहे हैं। अब तक निजी व्यक्तियों और कंपनियों को यह डेटा इस्तेमाल करने से पहले जियोस्पेशियल इंफॉर्मेशन रेगुलेशन एक्ट 2016 के तहत सरकार की अनुमति लेनी होती थी। पर अब इसकी जरूरत खत्म हो गई है। GPS के मुकाबले में इसरो के स्वदेशी नाविक (NavIC) के लॉन्च के बाद सरकार ने नेविगेशन, मैपिंग और जियोस्पेशियल डेटा पर आत्मनिर्भरता लाने के लिए बड़े सुधार किए हैं।
हमारे इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट्स हों या गरीबों के घर, हर प्रोजेक्ट्स की Geo Tagging की जा रही है, ताकि वो समय पर पूरे किए जा सकें।
यहां तक कि आज गांवों के घरों की मैपिंग ड्रोन से की जा रही है, टैक्स से जुड़े मामलों में भी ह्यूमेन इंटरफेस को कम किया जा रहा है: PM
— PMO India (@PMOIndia) February 17, 2021
आइए, जानते हैं कि नई मैपिंग पॉलिसी क्या है और यह आपको किस तरह प्रभावित करेगी-
जियोस्पेशियल डेटा क्या होता है?
- अगर आप किसी का घर खोज रहे हैं तो आपके पास उसका पता होना चाहिए। आप शहर, मोहल्ले और फिर उस गली या कैम्पस में पहुंचते हैं और तब घर आपको मिलता है। किसी लोकेशन का तकनीकी पता ही जियोस्पेशियल या भू-स्थानिक डेटा कहलाता है।
- जियोस्पेशियल डेटा आपको सटीक लोकेशन तक पहुंचाता है। जमीन के ऊपर और अंदर की गतिविधियों पर नजर रखने में मदद करता है। मौसम, प्राकृतिक गतिविधियों, मोबिलिटी डेटा से लेकर हर तरह की जानकारी इसमें आती है। सरल शब्दों में जमीन पर जो भी है, वह जियोस्पेशियल डेटा में आता है।
- एसरी इंडिया टेक्नोलॉजी प्रा.लि. के प्रेसिडेंट आगेंद्र कुमार के मुताबिक हर जगह की स्पेसिफिक लोकेशन अक्षांश और देशांतर रेखाओं से तय होती है। यह डेटा स्मार्ट सिटी प्लानिंग से लेकर हर तरह के लॉजिस्टिक और सप्लाई चेन मैनेजमेंट में काम आता है।
The reforms will unlock tremendous opportunities for our country’s start-ups, private sector, public sector and research institutions to drive innovations and build scalable solutions. This will also generate employment and accelerate economic growth. #Freedom2MapIndia pic.twitter.com/OoN1rDTwoW
— Narendra Modi (@narendramodi) February 15, 2021
India’s farmers will also be benefited by leveraging the potential of geo-spatial & remote sensing data. Democratizing data will enable the rise of new technologies & platforms that will drive efficiencies in agriculture and allied sectors. #mapmakingsimplified #Freedom2MapIndia
— Narendra Modi (@narendramodi) February 15, 2021
जियोस्पेशियल डेटा का इस्तेमाल कैसे और कहां होता है?
- केंद्र सरकार की माने तो नई मैपिंग पॉलिसी नदियों को जोड़ने, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने, स्मार्ट इलेक्ट्रिसिटी सिस्टम लागू करने जैसे नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, ई-कॉमर्स, ड्रोन मूवमेंट्स, सप्लाई चेन, लॉजिस्टिक्स तथा शहरी परिवहन जैसी नई टेक्नोलॉजी के लिए सटीक मैपिंग जरूरी है।
- खेती से लेकर फाइनेंस, कंस्ट्रक्शन, माइनिंग और लोकल एंटरप्राइज जैसी हर आर्थिक गतिविधि किसी न किसी हद तक मैपिंग डेटा पर निर्भर रहती है। भारत के किसान, छोटे व्यापारी और कंपनियां भी नई पॉलिसी का लाभ उठा सकते हैं।
- यह घोषणा ऐसे वक्त की गई है, जब मैपिंग टेक्नोलॉजी में एडवांसमेंट हो रहा है। ड्रोन्स, मोबाइल मैपिंग सिस्टम्स, LIDAR और RADAR सेंसर और सैटेलाइट-बेस्ड रिमोट सेंसिंग तकनीक ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और शहरी परिवहन सेक्टरों में इनोवेशन ला रही है।
नई पॉलिसी से स्टार्टअप्स को क्या लाभ होगा?
- आगेंद्र कहते हैं कि अगर कोई ब्रिज बनाना है या कोई स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट है तो जियोस्पेशियल डेटा जुटाने के लिए सर्वे करते हैं। पुरानी पॉलिसी में इसकी अनुमति में ही तीन-चार महीने लग जाते थे। इससे प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ जाती थी। प्रोजेक्ट पूरा होने में समय भी ज्यादा लगता था। अब अनुमति की जरूरत नहीं होगी।
- उनका यह भी कहना है कि नई पॉलिसी से डेटा कलेक्शन आसान होगा। इससे कई क्षेत्रों में GIS एप्लिकेशन के नए अवसर सामने आएंगे। इंश्योरेंस, मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, बैंकिंग जैसे निजी क्षेत्र भी लोकेशन एनालिटिक्स के साथ नए अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।
- लॉजीनेक्स्ट के CEO ध्रुविल संघवी का कहना है कि फर्नीचर से लेकर दूध के पैकेट तक को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में एक्युरेट मैप्स की जरूरत होती है। मूवमेंट को ट्रैक करते हैं। हम और इनोवेटिव प्रोडक्ट्स बनाना चाहते थे, पर मैपिंग डेटा हासिल करने के नियम इतने सख्त थे कि सब मुश्किल हो रहा था। अब यह डेटा उपलब्ध होने से हमारे साथ-साथ अन्य कंपनियों के लिए भी इनोवेशन का रास्ता खुल जाएगा।
- मुंबई की ग्रैफिटो लैब्स प्रा.लि. के संस्थापक और MD कपिल जैन का कहना है कि सटीक मैपिंग डेटा लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री को रुट ऑप्टिमाइजेशन में सक्षम करेगा। उनका ट्रैवल टाइम कम होगा। फ्यूल की लागत घटेगी और ड्राइवर की प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी।
इससे इकोनॉमी को क्या फायदा होगा?
- आगेंद्र कहते हैं कि इस समय जियोस्पेशियल डेटा का बाजार 25 हजार करोड़ रुपए का है। सरकार को उम्मीद है कि 2030 तक यह बाजार 99 हजार करोड़ रुपए का हो जाएगा। यानी कुछ ही साल में इसके चार गुना बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं। यह भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करेगा।
- इसी तरह, लास्ट-माइल डिलीवरी करने वाले स्टार्टअप पिकअप के फाउंडर और CEO हेमंत चंद्रा ने बताया कि भारत में सड़क के रास्ते लॉजिस्टिक्स का 150 बिलियन डॉलर (तकरीबन 11 लाख करोड़ रुपए) का बाजार है। इसमें 30 बिलियन डॉलर (करीब 2 लाख करोड़ रुपए) का बाजार तो सिर्फ अंतिम सिरे तक माल की डिलीवरी का है।
- उनका कहना है कि सरकार की नई मैपिंग पॉलिसी लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री के लिए 1991 के ग्लोबलाइजेशन जितना बड़ा सुधार है। जियोस्पेशियल डेटा का इस्तेमाल करते हुए बेहतर मैपिंग प्रोसेस, एक्सप्रेस डिलीवरी की लागत कम करने में मददगार होगी।
- वहीं, लॉजीनेक्स्ट के संघवी कहते हैं कि अब तक सरकार की नीतियां ऐसी थीं कि स्टार्टअप्स सैटेलाइट तस्वीरों का इस्तेमाल कर इनोवेशन नहीं कर सकें। अब यह मार्केट खुल गया है। निश्चित तौर पर इससे लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।साभार-दैनिक भास्कर
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