गोबर से बनाई चप्‍पलें और डिवाइस, मिलिए गाय के गोबर पर रिसर्च कर रहे दिव्‍यकांत दुबे से

दिव्‍यकांत दुबे बताते हैं कि वे रोजाना गौशालाओं में जाकर गोबर (Cow Dung) पर अपने रिसर्च का काम करते हैं. उन्‍होंने कई उत्‍पाद बनाने के साथ ही अब गोबर से सामान बनाने वाली कई मशीनें भी बना ली हैं. धीरे-धीरे लोग उनके काम से जुड़ भी रहे हैं.

नई दिल्‍ली. गोबर का नाम सुनते ही अधिकांश लोग नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं. वहीं जब कोई कहे कि वह गोबर (Cow Dung) पर रिसर्च कर रहा है तो न केवल लोग उस पर हंसेंगे, बल्कि उसको गोबर गणेश जैसे तमाम ताने भी दे देंगे. लेकिन एक ऐसे भी शख्‍स हैं जो न केवल गाय के गोबर पर रिसर्च कर रहे हैं, बल्कि गोबर से ऐसे-ऐसे उत्‍पाद भी बना रहे हैं, जिन्हें देखकर हर कोई अचंभित हो जाएगा.

आइये मिलाते हैं आपको अहमदाबाद के रहने वाले दिव्‍यकांत दुबे से. दुबे 55 साल के हैं और पिछले 8-10 साल से गोबर पर काम कर रहे हैं. महज दसवीं पास दिव्‍यकांत पेशे से एक पेंटर हैं. साइन बोर्ड पेंट करके, मूर्तियां बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं लेकिन गोबर पर काम करके उन्‍हें खुशी मिलती है. इन्‍होंने गोबर से कई उत्‍पाद बनाए हैं. हाल ही में इन्‍होंने गाय के गोबर से चप्‍पलें बनाई हैं. मजबूत, टिकाऊ और स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपयोगी इन चप्‍पलों को बहुत ज्‍यादा पसंद किया जा रहा है.

दुबे बताते हैं कि गोबर की बनी ये चप्‍पलें स्‍वास्‍थ्‍य के लिहाज से बेहद अच्‍छी हैं. इसके पीछे उनका तर्क है कि पुराने समय में लोग गोबर से लिपे घरों में नंगे पांव रहते थे जिसका सीधा फायदा उनकी सेहत को होता था. अब घरों का लीपना तो संभव नहीं है, लेकिन गोबर की बनी चप्‍पलें पहनने से ये सभी फायदे शरीर को मिल सकते हैं. इसके साथ ही अगर इन चप्‍पलों को आधे घंटे तक पानी में भी रखा जाता है तो वे खराब नहीं होती और न ही टूटती हैं.

चप्‍पलों के अलावा दिव्‍यकांत ने गोबर की प्रतिमाएं बनाई हैं. गोबर के गणेश, लड्डू गोपाल, राधा कृष्‍ण, सरस्‍वती, राम सीता आदि की मूर्तियां बनाई हैं. वे कहते हैं कि गोबर से बनी होने के कारण से मूर्तियां वातावरण को शुद्ध करती हैं. साथ ही ये पूरी तरह ईको फ्रेंडली, ऑर्गनिक होती हैं. इन्‍हें जहां भी विसर्जित किया जाता है ये उस जमीन को फायदा ही पहुंचाती हैं. ये छह इंच से लेकर कई फुट तक की हैं.

गोबर की बनी ये मूर्तियां न केवल ईको फ्रेंडली हैं बल्कि विसर्जन के बाद जमीन को फायदा पहुंचाती हैं.इनके अलावा जो सबसे जरूरी और लाभदायक चीज इन्‍होंने बनाई है वह है मोबाइल फोन के पीछे लगाई जाने वाली एंटी रेडिएशन डिवाइस. बेहद छोटी गाय के गोबर से बनी इस डिवाइस को फोन के पीछे चिपकाने से मोबाइल से निकलने वाला रेडिएशन प्रभावहीन हो जाता है. इसकी कीमत भी सिर्फ 10 रुपये रखी  है. दुबे बताते हैं कि एंटी रेडिएशन को गुजरात यूनिवर्सिटी ने भी प्रभावशाली माना है. साथ ही इस रिसर्च को मंजूरी दे दी है.

इनके अलावा गोबर से धूपबत्‍ती, चटाई, दीए, सजावटी सामान भी बना रहे हैं. दिव्‍यकांत दुबे बताते हैं कि वे रोजाना गौशालाओं में जाकर गोबर पर अपने रिसर्च का काम करते हैं. उन्‍होंने अब गोबर से सामान बनाने वाली कई मशीनें भी बना ली हैं. धीरे-धीरे लोग उनके काम से जुड़ रहे हैं. हालांकि अभी बाजार में ये चीजें पहुंचना बाकी है. यहां तक कि अहमदाबाद में कई जगहों पर अब गोबर से चीजें बनाने का काम हो रहा है.

दुबे कहते हैं कि उन्‍हें गायों से प्रेम है. दूध न देने वाली गायों को बेकार समझकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसलिए उन्‍होंने गोबर पर काम करना शुरू किया कि गाय को कम से कम गोबर के लिए ही लोग पाल लें और उसे लावारिस न छोड़ें. वे कहते हैं कि कुछ सरकारें गाय को लेकर नीतियां बना रही हैं लेकिन अभी इन नीतियों को लोगों तक पहुंचाने और आगे बढ़ाने की जरूरत है.

दुबे कहते हैं कि गोबर को सब कचरा समझते हैं लेकिन ये उतनी ही कीमती चीज है. उन्‍हें उम्‍मीद है कि धीरे-धीरे ही सही लोग गाय के गोबर के महत्‍व को समझेंगे और इसकी बनी चीजों का लाभ लेंगे. दुबे कहते हैं कि इस रिसर्च के लिए उन्‍हें बहुत पढ़ाई की भी जरूरत नहीं पड़ी. अब जब सोशल मीडिया पर वे गोबर से बनी चीजें डालते हैं तो लोग काफी पसंद करते हैं. हालांकि अन्‍य चीजों की तरह अभी गोबर उत्‍पादों की डिमांड बनने में समय लगेगा.साभार- न्यूज़18

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