डी गुकेश: 18 साल की उम्र में शतरंज के बादशाह

अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंग्राम में भारतीय ध्वज की गौरवमयी गूंज
18 वर्षीय डी गुकेश ने चीन के चैंपियन डिंग लिरेन को हराकर इतिहास रच दिया है। इस ऐतिहासिक जीत के साथ, गुकेश दुनिया के सबसे कम उम्र में शतरंज का विश्व चैंपियन बनने वाले खिलाड़ी बने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस उपलब्धि के लिए उन्हें बधाई दी, जिससे भारत के नाम का डंका पूरी दुनिया में बज उठा है।
विजयी अभियान और चुनौतीपूर्ण रास्ता
गुकेश ने 14वीं और अंतिम बाजी में शानदार प्रदर्शन करते हुए डिंग लिरेन को हराया। उनकी यह जीत विश्वनाथन आनंद के बाद चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी की मान्यता स्थापित करती है। आनंद ने अपना आखिरी खिताब 2013 में जीता था। डी गुकेश का मार्ग इतना सरल नहीं था। उन्होंने इस साल कैंडीडेट्स टूर्नामेंट को जीतकर विश्व चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया था। प्रारंभ में उनकी चैंपियनशिप की शुरुआत अच्छी नहीं रही थी; वह पहले कुछ राउंड में पिछड़ गए थे। तीसरे राउंड में उन्होंने शानदार वापसी की, लेकिन अगले राउंड में फिर से हार का सामना करना पड़ा।
चीन के अडिग चैंपियन के खिलाफ निर्णायक मोड़
डिंग लिरेन ने भी जीत के लिए पूरी तरह से अडिग रहते हुए चुनौती पेश की, लेकिन आखिरी राउंड में गुकेश ने बाजी मारते हुए जीत दर्ज की। इस प्रकार, गुकेश ने न केवल अपनी क्षमताओं को साबित किया, बल्कि साबित किया कि वह कठिन परिस्थितियों में भी जीत सकते हैं। उनकी जीत ने न केवल भारत को गौरवान्वित किया, बल्कि उन्हें शतरंज के विश्व चैंपियन के रूप में मान्यता दी।
आर्थिक पुरस्कार और उपलब्धियां
गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत के साथ 11.45 करोड़ रुपए की पुरस्कार राशि भी जुड़ी है। जबकि डिंग लिरेन को फाइनल तक पहुंचने पर 9.75 करोड़ रुपए का पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक बाजी में जीतने पर 1.69 करोड़ रुपए का इनाम भी प्रदान किया गया। इन पुरस्कारों के साथ, गुकेश की जीत केवल खेल की जीत नहीं है, बल्कि यह एक आर्थिक सफलता भी है।
पूर्व कम उम्र के वर्ल्ड चैंपियन के साथ तुलना
गुकेश की कम उम्र में इस सफलता को देखते हुए, उनकी तुलना रूस के गैरी कास्पारोव से की जाती है। कास्पारोव ने 1985 में अनातोली कार्पोवा को हराकर 22 साल की उम्र में वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप का खिताब जीता था। गुकेश ने अपने करियर की शुरुआत से ही अपनी प्रतिभा साबित की थी और इस जीत के साथ उन्होंने अपने नाम को शतरंज के इतिहास में दर्ज कर लिया है।
समय की कसौटी पर खरे उतरते हुए
गुकेश की जीत ने न केवल शतरंज के खेल में भारत का गौरव बढ़ाया है, बल्कि यह युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। उन्होंने साबित किया है कि कोई भी लक्ष्य प्राप्ति के लिए समर्पण, कड़ी मेहनत और दृढ़ता से काम कर सकता है। उनकी इस जीत ने शतरंज में भारत की बढ़ती ताकत को भी उजागर किया है और भविष्य के खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
डी गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत ने न केवल शतरंज की दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाया है, बल्कि यह उनके लिए व्यक्तिगत उपलब्धि और देश के लिए गर्व का क्षण है। उन्होंने न केवल एक युवा प्रतिभा के रूप में अपने भविष्य को सुरक्षित किया है, बल्कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय शतरंज की मैदान पर गौरवान्वित किया है। गुकेश की सफलता से यह स्पष्ट होता है कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
Exit mobile version